बिहार चुनाव में हार के बाद राजद, कांग्रेस के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर

बिहार चुनाव में हार के बाद राजद, कांग्रेस के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर

बिहार चुनाव में हार के बाद राजद, कांग्रेस के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर
Modified Date: November 30, 2025 / 04:38 pm IST
Published Date: November 30, 2025 4:38 pm IST

पटना, 30 नवंबर (भाषा) बिहार में हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों में अपमानजनक हार का सामना करने वाले विपक्षी खेमे, महागठबंधन, में आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है। चुनावों में सत्तारूढ़ राजग ने 243 सदस्यीय विधानसभा में 200 से अधिक सीटें जीतकर सत्ता बरकरार रखी थी।

इस सप्ताह की शुरुआत में उस समय सनसनी फैल गई जब आलाकमान द्वारा बुलाई गई समीक्षा बैठक में भाग लेने के लिए दिल्ली आए कांग्रेस के नेताओं ने सार्वजनिक रूप से कहा कि पार्टी नेताओं का एक वर्ग अपने पुराने, लेकिन प्रभावशाली सहयोगी राजद के साथ गठबंधन करने के बजाय अकेले चुनाव लड़ने के पक्ष में था।

जिन लोगों ने “61 उम्मीदवारों में से अधिकांश की भावनाओं” का खुलासा किया, उनमें से संयोगवश केवल छह को ही जीत मिली, उनमें से प्रमुख व्यक्ति पिछली विधानसभा में कांग्रेस विधायक दल के नेता शकील अहमद खान थे।

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खान ने एक के बाद एक समाचार संस्थानों से कहा, “हमारे ज़्यादातर उम्मीदवारों की यही राय थी कि अगर हमने राजद के साथ गठबंधन न किया होता, तो हम बेहतर प्रदर्शन कर सकते थे। भविष्य की रणनीति क्या हो, यह पार्टी आलाकमान को तय करना है।”

जेएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष खान, जो कांग्रेस में शामिल होने से पहले वामपंथ से संबद्ध एसएफआई में थे, को कदवा विधानसभा क्षेत्र में चौंकाने वाली हार का सामना करना पड़ा, जहां से वह लगातार तीसरी जीत की उम्मीद कर रहे थे।

यह सीट जदयू के दुलाल चंद्र गोस्वामी ने जीती है, जो पिछले साल के आम चुनावों में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता तारिक अनवर से कटिहार लोकसभा सीट हारने के बाद से राजनीतिक रूप से निष्क्रिय थे।

कांग्रेस सूत्रों ने कहा कि कई नेताओं का मानना ​​है कि सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) का ‘जंगल राज’ का विमर्श, जो कथित तौर पर राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के बिहार में शासन के दौरान व्याप्त अराजकता को उजागर करने का प्रयास था, गठबंधन सहयोगियों पर भी नकारात्मक प्रभाव डालता है।

इसके अलावा, लालू प्रसाद द्वारा संचालित पार्टी के साथ गठबंधन के बारे में कहा जाता है कि इससे ऊंची जातियां नाराज हो गई हैं, जो पहले कांग्रेस की समर्थक मानी जाती थीं और अब भाजपा की ओर आकर्षित हो गयी हैं।

राजद को पांच साल पहले के 75 के मुकाबले मात्र 25 सीटें ही मिलीं हैं लेकिन पार्टी ने कांग्रेस की राय पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है।

गठबंधन सहयोगी की नाराजगी की ओर ध्यान दिलाने पर राजद के प्रदेश अध्यक्ष मंगनी लाल मंडल ने कहा, “अगर कांग्रेस अकेले चलना चाहती है, तो उसे हर हाल में ऐसा करना चाहिए। उसे अपनी औकात पता चल जाएगी।” उन्होंने कहा, “कांग्रेस को जो भी वोट मिले हैं, वह राजद की बदौलत हैं। राज्य में यह एक खत्म हो चुकी ताकत है। हम चुनाव दर चुनाव उनकी अनुचित मांगों को झेलते आ रहे हैं। 2020 में, उन्होंने 70 सीटों पर चुनाव लड़ने पर जोर दिया और केवल 19 सीटें ही जीत सके। हाल के चुनावों में उनकी जीत की दर बेहद खराब रही है। फिर भी, अगर उन्हें लगता है कि अकेले चलना उनके लिए बेहतर है, तो उन्हें ऐसा जरूर करना चाहिए।”

उल्लेखनीय बात यह है कि गठबंधन सहयोगियों के बीच सीट बंटवारे की व्यवस्था भी चुनावों में सुचारू नहीं रही और राजद, कांग्रेस और वाम दलों के बीच लगभग एक दर्जन निर्वाचन क्षेत्रों में “दोस्ताना मुकाबला” हुआ।

विपक्षी खेमे में व्याप्त भ्रम का भरपूर फायदा उठाने वाले भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन ने अब इस ताजा ‘अव्यवस्था’ पर तंज कसा।

भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता सैयद शाहनवाज हुसैन ने कहा, “कांग्रेस और राजद चुनाव के दौरान लड़ते रहे और अब भी लड़ रहे हैं। ऐसा होना ही था क्योंकि उनके गठबंधन का न तो कोई वैचारिक आधार है और न ही जनहित के मुद्दों पर कोई साझा प्रतिबद्धता। यह दरार और गहरी होने वाली है।”

इस बीच, इस विवाद के बीच गठबंधन सहयोगी सोमवार से शुरू हो रहे विधानसभा के उद्घाटन सत्र से पहले एकता का दिखावा करने पर सहमत हो गए हैं।

शनिवार को महागठबंधन की बैठक हुई जिसमें सभी गठबंधन सहयोगियों के विधायकों ने सर्वसम्मति से राजद के तेजस्वी यादव को अपना नेता चुना।

बैठक में कांग्रेस का प्रतिनिधित्व एमएलसी और राज्य इकाई के कार्यकारी अध्यक्ष समीर कुमार सिंह और उसके दो विधायकों ने किया।

कांग्रेस सूत्रों के अनुसार, शेष चार विधायक दिल्ली में थे जबकि बैठक पटना में हुई।

भाषा प्रशांत पवनेश

पवनेश


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