ग्रेलैग कलहंस की प्रवासी गतिविधियों पर नजर रखने के लिए उसमें जीपीएस-जीएसएम ट्रांसमीटर लगाया गया

ग्रेलैग कलहंस की प्रवासी गतिविधियों पर नजर रखने के लिए उसमें जीपीएस-जीएसएम ट्रांसमीटर लगाया गया

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  • Publish Date - December 6, 2025 / 03:58 PM IST,
    Updated On - December 6, 2025 / 03:58 PM IST

(प्रमोद कुमार)

पटना, छह दिसंबर (भाषा) मादा ग्रेलैग कलहंस की प्रवासी गतिविधियों पर नजर रखने और उसका अध्ययन करने के लिए बिहार के भागलपुर स्थित ‘’बर्ड रिंगिंग एंड मॉनिटरिंग स्टेशन (बीआरएमएस) ने उसमें सौर ऊर्जा से संचालित जीपीएस-जीएसएम ट्रांसमीटर लगाया है।

ग्रेलैग कलहंस एक दुर्लभ जल पक्षी है, जो उत्तरी यूरोप, मध्य एशिया और दक्षिण एशिया में प्रजनन करता है।

बीआरएमएस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि जीपीएस निगरानी से ग्रैलैग कलहंस के प्रवास मार्ग, समय, ठहराव पैटर्न और आवास इस्तेमाल का मानचित्रण करने में मदद मिलेगी, जो पूरे बिहार में आर्द्रभूमि के संरक्षण के लिहाज से अहम है।

उन्होंने बताया कि जिस पक्षी को जीपीएस-जीएसएम ट्रांसमीटर से लैस किया गया है, उसका नाम भागलपुर जिले के सोनबरसा गांव के नाम पर ‘सोनबरसा’ रखा गया है, जहां से उसे हाल ही में पकड़ा गया था।

अधिकारियों के मुताबिक, यह नाम नदीय मिट्टी से निर्मित सोनबरसा के उपजाऊ, सुनहरे रंग के परिदृश्य को दर्शाता है, जो प्रकृति के साथ सामंजस्य और प्रचुरता का प्रतीक है।

प्रधान मुख्य वन संरक्षक (पीसीसीएफ) प्रभात कुमार गुप्ता ने शनिवार को ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, “राज्य सरकार के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन विभाग तथा ‘बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी’ (बीएनएचएस) के संयुक्त उद्यम बीआरएमएस भागलपुर ने शुक्रवार को सोनबरसा गांव के पास घटोरा आर्द्रभूमि में एक मादा ग्रेलैग कलहंस को उसकी प्रवासी गतिविधियों का अध्ययन करने के लिए सौर ऊर्जा से संचालित जीपीएस-जीएसएम ट्रांसमीटर से लैस किया गया है।”

उन्होंने कहा, “भागलपुर जिले में किसी पक्षी को पहली बार जीपीएस ट्रांसमीटर से लैस किया गया है, जो बिहार में प्रवासी पक्षी अनुसंधान में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है।”

गुप्ता के अनुसार, मध्य एशिया में हजारों किलोमीटर लंबी यात्रा करने वाला ग्रेलैग कलहंस घाटोरा जैसी आर्द्रभूमि का इस्तेमाल ठहराव स्थल या शीतकालीन प्रवास स्थल के रूप में करता है।

उन्होंने बताया कि इस पक्षी को जीपीएस ट्रांसमीटर से लैस किया जाना वैज्ञानिक समझ को आगे बढ़ाने और राज्य की आर्द्रभूमि पर निर्भर प्रवासी पक्षियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में एक बड़ा कदम है।

भाषा पारुल सिम्मी

सिम्मी