वैश्विक शिक्षा केंद्र बनने के लिए भारत को अभी लंबा रास्ता तय करना है: शशि थरूर

वैश्विक शिक्षा केंद्र बनने के लिए भारत को अभी लंबा रास्ता तय करना है: शशि थरूर

वैश्विक शिक्षा केंद्र बनने के लिए भारत को अभी लंबा रास्ता तय करना है: शशि थरूर
Modified Date: December 22, 2025 / 07:20 pm IST
Published Date: December 22, 2025 7:20 pm IST

नालंदा, 22 दिसंबर (भाषा) कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर ने सोमवार को वैश्विक विश्वविद्यालय रैंकिंग में भारत की गिरती स्थिति की ओर इशारा करते हुए कहा कि “अवास्तविक वैश्विक आकांक्षाएं” विद्यालयों और उच्च शिक्षण संस्थानों में बुनियादी निवेश का विकल्प नहीं हो सकतीं।

उन्होंने कहा कि वैश्विक शिक्षा केंद्र बनने के लिए भारत को अभी लंबा रास्ता तय करना है।

प्रख्यात लेखक थरूर बिहार में जारी नालंदा साहित्य महोत्सव के दौरान प्रो. सचिन चतुर्वेदी के साथ साहित्य पर आयोजित एक संवाद सत्र को संबोधित कर रहे थे। तिरुवनंतपुरम से सांसद थरूर ने कहा, “दुनिया के अग्रणी विश्वविद्यालयों में भारत का कोई संस्थान नहीं है। हालांकि कुछ विश्वविद्यालय अब शीर्ष 200 में शामिल हुए हैं, लेकिन शीर्ष 10 या यहां तक कि शीर्ष 50 में भी कोई भारतीय विश्वविद्यालय नहीं है।” उन्होंने नालंदा विश्वविद्यालय के पुनरुद्धार का स्वागत करते हुए इसे भारत की सभ्यतागत विरासत का प्रतीक बताया।

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नालंदा महाविहार स्थल में तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से लेकर 13वीं शताब्दी ईस्वी तक के एक मठवासी और शैक्षणिक संस्थान के पुरातात्विक अवशेष शामिल हैं।

इस प्राचीन शिक्षाकेंद्र को 2016 में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया था।

थरूर ने कहा कि प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय दुनिया का एक अग्रणी संस्थान था, “केवल इसलिए नहीं कि उस समय कोई प्रतिस्पर्धा नहीं थी बल्कि इसलिए भी कि वह अपने आप में एक असाधारण संस्थान था।”

उन्होंने लगभग 1200 ईस्वी में बख्तियार खिलजी द्वारा किए गए “तीसरे और अंतिम” हमले के करीब 800 वर्ष बाद नालंदा विश्वविद्यालय के पुनः स्थापित होने को “अत्यंत संतोष” का विषय बताया।

कांग्रेस सांसद ने कहा कि कभी नालंदा में पश्चिम में तुर्किये और फारस से लेकर पूर्व में थाईलैंड तथा उत्तर में जापान तक से विद्यार्थी पढ़ने आते थे लेकिन आज भारतीय विश्वविद्यालयों में विदेशी विद्यार्थियों का अनुपात घट रहा है।

थरूर ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) की भूमिका पर टिप्पणी करते हुए कहा, “मुझे लगता है कि यह देखने के लिहाज से कि एनईपी भारतीय विश्वविद्यालयों को दुनिया में एक बड़ी ताकत बना पाएगी या नहीं, हमें अभी लंबा रास्ता तय करना है।”

उन्होंने कहा, “आकांक्षाएं महत्वपूर्ण हैं, लेकिन दौड़ने से पहले चलना सीखना जरूरी है। बुनियादी बातों को दुरुस्त करने की जरूरत है।” सांसद ने भारत की वैश्विक शैक्षणिक स्थिति पर एनईपी के तात्कालिक प्रभाव को लेकर अधिक उम्मीदें लगाने से आगाह किया।

वहीं स्कूल स्तर पर नीति के परिणामों को लेकर वह अधिक आलोचनात्मक नजर आए और कहा कि संसाधनों की कमी के कारण यह अपेक्षित रूप से सफल नहीं हो पाई है।

थरूर ने बताया कि भारत के पास दुनिया की 17 प्रतिशत बौद्धिक प्रतिभा है लेकिन वैश्विक शोध उत्पादन में उसका योगदान मात्र 2.7 प्रतिशत है, जिसका एक बड़ा कारण फिर से संसाधनों की कमी है।”

उन्होंने आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) के सदस्य देशों का उल्लेख करते हुए कहा, “ओईसीडी देशों में 75-80 प्रतिशत शोध वित्तपोषण निजी संस्थाओं से आता है। भारत में निजी क्षेत्र शोध पर एक पैसा भी खर्च नहीं करता।”

भाषा कैलाश जितेंद्र

जितेंद्र


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