लालू ने संविधान में ‘समाजवादी’ व ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्दों की समीक्षा की मांग के लिए आरएसएस की आलोचना की

लालू ने संविधान में ‘समाजवादी’ व ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्दों की समीक्षा की मांग के लिए आरएसएस की आलोचना की

लालू ने संविधान में ‘समाजवादी’ व ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्दों की समीक्षा की मांग के लिए आरएसएस की आलोचना की
Modified Date: June 27, 2025 / 05:47 pm IST
Published Date: June 27, 2025 5:47 pm IST

पटना, 27 जून (भाषा) राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद ने शुक्रवार को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के महासचिव दत्तात्रेय होसबाले की आलोचना की जिन्होंने सुझाव दिया था कि संविधान की प्रस्तावना से ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘समाजवादी’ शब्दों को हटा दिया जाना चाहिए।

सामाजिक न्याय और सांप्रदायिक सद्भाव को अपना मार्गदर्शक सिद्धांत बताने वाले बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू ने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में आरएसएस को ‘‘जातिवादी’’ संगठन बताया।

राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष ने ‘एक्स’ पर एक समाचार पत्र की खबर साझा की, जिसमें आरएसएस के सरकार्यवाह होसबाले ने इन दो शब्दों को हटाने की वकालत की थी क्योंकि इन्हें ‘‘आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी सरकार द्वारा प्रस्तावना में जोड़ा गया था।’’

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राजद प्रमुख लालू प्रसाद ने आरोप लगाया, ‘‘देश के सबसे बड़े जातिवादी और नफरती संगठन आरएसएस ने संविधान बदलने की बात कही है। इनकी इतनी हिम्मत नहीं है कि संविधान और आरक्षण की तरफ आंख उठाकर देख सकें। अन्यायी चरित्र के लोगों के मन व विचार में लोकतंत्र एवं बाबा साहेब के संविधान के प्रति इतनी घृणा क्यों है?’’

होसबाले ने संविधान की प्रस्तावना में ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्दों की समीक्षा करने का आह्वान करते हुए बृहस्पतिवार को कहा था कि इन्हें आपातकाल के दौरान शामिल किया गया था और ये कभी भी बीआर आंबेडकर द्वारा तैयार संविधान का हिस्सा नहीं थे।

आपातकाल पर आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए होसबाले ने कहा, ‘‘बाबा साहेब आंबेडकर ने जो संविधान बनाया, उसकी प्रस्तावना में ये शब्द कभी नहीं थे। आपातकाल के दौरान जब मौलिक अधिकार निलंबित कर दिए गए, संसद काम नहीं कर रही थी, न्यायपालिका पंगु हो गई थी, तब ये शब्द जोड़े गए थे।’’

भाषा

शफीक नरेश

नरेश


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