त्वरित टिप्पणीः विपक्ष के खिलाफ चली ‘एंटी इनकंबेंसी’ लहर !

बिहार के चुनाव नतीजों ने एक नई अवधारणा को जन्म दिया है कि विपक्षी दलों के खिलाफ भी एंटी इनकंबेंसी की लहर चल सकती है।

त्वरित टिप्पणीः विपक्ष के खिलाफ चली ‘एंटी इनकंबेंसी’ लहर !

Batangad/Image Credit: IBC24

Modified Date: November 14, 2025 / 03:30 pm IST
Published Date: November 14, 2025 3:24 pm IST

सौरभ तिवारी… 

Batangad: चुनावों में एंटी इनकंबेंसी का मतलब सत्ताधारी दल के खिलाफ लोगों के आक्रोश की अभिव्यक्ति माना जाता है, लेकिन बिहार के चुनाव नतीजों ने एक नई अवधारणा को जन्म दिया है कि विपक्षी दलों के खिलाफ भी एंटी इनकंबेंसी की लहर चल सकती है। कम से कम नतीजों की तालिका पर दर्ज अंक तो इसी दलील की तस्दीक कर रहे हैं। सत्ताधारी दल का ‘सूपड़ा’ साफ जैसी हेडिंग देखने वाले दौर में विपक्ष का सूपड़ा साफ हो जाना वाकई विस्मतकारी सियासी घटना है।

अब सवाल उठता है कि आखिर ऐसा क्यों हुआ ? जातिगत राजनीति की प्रयोगशाला माने जाने वाले बिहार जैसे राज्य में जाति की ठेकेदारी करने वाले दल का यूं चारों खाने चित्त हो जाना ये साबित करता है कि चुनावी सफलता की गारंटी माना जाने वाला इक्वेशन ‘एम प्लस वाई’ इक्वल टू विक्ट्री’ ने इस चुनाव में काम तो किया, बस इस इक्वेशन में ‘एम और वाई’ के मायने बदल गए। ‘एम’ का मतलब मुस्लिम ना होकर महिला हो गया और ‘वाई’ का मतलब यादव की बजाए युवा बन गया।

 ⁠

एनडीए को मिली इफरात सीटें इस बात की गवाही देती हैं कि महिलाओं ने दिल खोलकर वोट दिया। एनडीए को छप्पर फाड़ वोट मिलने वाले हैं इस बात का संकेत तो महिलाओं के वोटिंग परसेंटेज में करीब 12 फीसदी के जोरदार इजाफे से ही हो गया था। शराब बंदी के खात्मे और जंगल राज की आहट से सहमी इन महिलाओं ने बड़ी संख्या में मतदान केंद्रों का रुख किया और ‘कट्टा राज’ की आशंका को अगले पांच साल के लिए दफन कर दिया। उधर मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना के जरिए मिलने वाली दस हजार रुपए की सहायता राशि ने एनडीए गठबंधन के लिए बोनस का काम किया जो सीटों के इजाफे के तौर पर अंक तालिका में साफ दिखाई दे भी रहा है।

Batangad: अपने ‘एम वाय’ समीकरण से मुस्लिम और यादव के साथ-साथ महिला और युवा को जोड़ने के लिए हालांकि राजद ने भी लुभावनी दांव तो चला था लेकिन वो भरोसा दिलाने में कामयाब नहीं हो सका। नीतीश की दस हजारी योजना का जवाब देने के लिए तेजस्वी ने एकमुश्त 30 हजार देने का वादा किया था। लेकिन महिलाओं ने भविष्य में मिलने वाले 30 हजार रुपए की बजाए वर्तमान में मिल रहे 10 हजार रुपए पर ज्यादा भरोसा किया। वहीं युवाओं को लुभाने के लिए राजद ने हर परिवार से एक सदस्य को सरकारी नौकरी दिलाने का ‘तेजस्वी प्रण’ तो लिया लेकिन वे उस प्रण पूरा करने का कोई ब्लू प्रिंट ना दे सके। पूछे जाने पर वो बस अगले दो दिन में ब्लू प्रिंट जारी करने का वादा करते रह गए लेकिन चुनाव पूरा हो गया और उनका वो ‘दो दिन’ नहीं आया।

और रही बात राजद के अब तक सियासी सफलता की गारंटी रहे टेस्टेड फार्मूले ‘एम वाय’ समीकरण में शामिल मुस्लिम और यादव वोट की, तो ये फार्मूला इस बार बैक फायर कर गया। राजद ने अपने हिस्से की 144 सीटों में से 54 सीटों में यादव उम्मीदवारों को टिकट दी, जो पिछली बार से 14 सीटें ज्यादा थी। बिहार की आबादी में 14 फीसदी की हिस्सेदारी रखने वाले यादव जाति को 36 फीसदी टिकटें देकर राजद ने खुद अपने ही सियासी स्लोगन ‘जिसकी जितनी हिस्सेदारी उसकी उतनी भागीदारी’ को गलत ठहरा दिया। एनडीए ने इस सीट आवंटन को ‘यादव राज’ की वापसी के नैरेटिव के साथ जोड़ते हुए अपने ‘हरियाणा फार्मूले’ को बिहार में आजमाया और गैर यादव पिछड़ी जातियों और सामान्य जातियों का एक बड़ा वोट बैंक तैयार कर लिया। याद करिए हरियाणा में भी भाजपा ने जाटों की दबंगई की काट के तौर पर गैर जाट जातियों को अपना वोट बैंक बनाकर सारे समीकरणों को ध्वस्त कर दिया था।

और रही बात एम वाय समीकरण में शामिल एम फैक्टर की, तो इस दफा ये राजद की जीत की बजाए उसकी हार का फैक्टर साबित हो गया। तेजस्वी ने मुस्लिम बहुल सीटों में चुनाव प्रचार के दौरान जिस अंदाज में उनकी सरकार आने पर वक्फ बोर्ड बिल को फाड़ कर कूड़ेदान में डाल देने का ऐलान किया था, वो ध्रुवीकरण की एक बड़ी वजह बन गया। मतदाता सूची के पुनर्निरीक्षण की प्रक्रिया SIR के विरोध के दौरान राजद पर मुस्लिम घुसपैठियों का हिमायती होने का टैग तो भाजपा पहले से लगा ही चुकी थी।

Batangad: कुल मिलाकर बिहार के लोगों ने एनडीए को एकतरफा जीत दिलाकर जनादेश में किसी इफ एंड बट की गुंजाइश नहीं छोड़ी है। अब ये विपक्षी दलों पर निर्भर करता है कि वे लोकतांत्रिक तकाजे का सम्मान करते हुए जनादेश को शिरोधार्य करते हैं या फिर वे ‘किंतु-परंतु’ की टेक लगाकर जनाब बशीर बद्र के शेर को सही ठहराने की वही गलती फिर दोहराते हैं कि, ‘धूल चेहरे पर थी, मगर आइना साफ करता रहा।‘

Disclaimer- आलेख में व्यक्त विचारों से IBC24 अथवा SBMMPL का कोई संबंध नहीं है। हर तरह के वाद, विवाद के लिए लेखक व्यक्तिगत तौर से जिम्मेदार हैं।

~ सौरभ तिवारी
(लेखक IBC24 में डिप्टी एडिटर हैं)


लेखक के बारे में