बरुण सखाजी, राजनीतिक विश्लेषक
Budhapahad is new naxsal destination :छत्तीसगढ़ में बस्तर से नक्सलियों का पुराना अड्डा बूढ़ापहाड़ अब शांत नहीं शोर का अड्डा बन रहा है। दक्षिण से सीधे उत्तर में जा जमने की नक्सलियों की इस रणनीति पर सुरक्षा बलों के माथे पर भी बल ला दिया है। नवंबर में ही यहां दो बार बड़ी मात्रा में बारूद, असलाह बरामद हो चुका है। शुक्रवार को ही रेंज के आईजी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके बताया कि यहां बड़ी संख्या में बारूद बरामद किया गया है। इससे पहले इस क्षेत्र में टिफिन बम मिले थे।
ऐसे जाते हैं बस्तर से बूढ़ापहाड़
सुरक्षा बलों के ड्रॉफ्टेड रूट को देखें तो नक्सली बस्तर से बूढ़ापहाड़ जाने के लिए महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश का रास्ता चुनते हैं। यह घनघोर जंगलों के अलावा कुछ राष्ट्रीय राजमार्गों से भी होकर गुजरता है। छत्तीसगढ़ के नारायणपुर से गड़चिरौली के जंगलों में जाना आसान है। नक्सली अपनी स्लीपिंग, पासिंग एक्टिविटी में इसका इस्तेमाल करते हैं। गड़चिरौली जिले के सरहदी गांवों, जंगलों से वे मदनबाड़ा, मोहला-मानपुर से होकर फिर एमपी में चले जाते हैं। अचरज की बात ये है कि वे इस दौरान मुंबई-हाबड़ा को जोड़ने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग को भी पार करते हैं। इतना ही नहीं वे बालाघाट जिले के लांजी जैसे सघन वन क्षेत्रों से कान्हा और छत्तीसगढ़ भोरमदेव अभयारण के अंदरूनी दूरस्थ गांवों से होकर पहले बालाघाट का हाईवे, फिर जबलपुर-रायपुर हाईवे भी क्रॉस करते हैं। पिछले दिनों मिले रूट के अनुमान के मुताबिक नक्सलियों के लिए भुआ-बिछिया जिला मंडला के कुछ अंदरूनी बीहड़ गांवों से डिंडोरी जिले की ओर जाना आसान होता है। वे इस दौरान डिंडौर-अमरकंटक वाया मंडला और डिंडोरी-अमरकंटक रोड वाया बेरला भी पार करते हैं। इनके बीच में वे नर्मदा को पार करते हैं। यहां से वे अनूपपुर जिले में प्रवेश करते हैं। अनूपपुर के बिजौरी को छूते हुए नक्सलियों का काफिला मनेंद्रगढ़ जिले में प्रवेश करता है। बीच में कुछ पासिंग ट्रूप्स को चोटिया के पास भी देखा गया था। यहां से वे सीधे सरगुजा में प्रवेश करते हैं। यहां पड़ने वाले कटनी-गुमला हाइवे को भी नक्सली पार करते हैं। जहां से प्रतापपुर के घने जंगलों से वह बलरामपुर की ओर चले जाते हैं। बलरामपुर जिला मुख्यालय से दूर झारखंड-छत्तीसगढ़ की सीमा पर बूढ़ापहाड़ इनका डेरा है। यूं तो यहां वर्षों से नक्सल गतिविधियां होती रही हैं, लेकिन ये मेजर जनहानि या थ्रेट पैदा नहीं करते। क्योंकि बूढ़ापहाड़ नक्सलियों का ट्रेनिंग, प्लानिंग और झारखंड में प्रवेश का कॉरिडोर है। वे नहीं चाहते यहां बल की एंट्री हो। लेकिन हाल की बरामदगियां इस ओर इशारा कर रही हैं।
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