चौंकाने की सियासत में महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे का भाजपा के समर्थन से मुख्यमंत्री बनना बड़ी चौका है। असल में मोदी की शुरुआती से लेकर अभी तक की सियासत में यह एक ऐसा एलिमेंट बनकर उभरा है कि वे हर फैसले में लोगों को चौकाते आए हैं। लेकिन क्या मोदी या भाजपा ने यह फैसला सिर्फ चौंकाने की सियासी छवि को बनाए रखने के लिए किया है? नहीं, ऐसा नहीं है। इसके कई सारे संदेश हैं।
भाजपा ने शिवसैनिकों में शिवसेना की उपेक्षा की भावना न पैदा हो जाए, इसलिए भी एक शिवसैनिक को मुख्यमंत्री बनाया गया।
भाजपा उद्धव के जरिए देशभर में अपने दूसरे सहयोगियों को संदेश देना चाहती है कि वे जान लें कि भाजपा के साथ इस तरह की कोई सियासत नहीं चलेगी, जिसमें बात कुछ और हो और करो कुछ और। उद्धव यह जान लें कि दूसरों के हाथ के खिलौना बनना कितना अपरिपक्व फैसला होता है।
भाजपा यहां नीतीश सरकार को बिहार में दो संदेश दे रही है। पहला तो ये कि हम लोग अपने वायदे पर सदा रहते हैं, चाहे जो भी नुकसान उठाना पड़े। यानी बिहार में जदयू से बड़ी पार्टी होकर भी मुख्यमंत्री जदयू का रखे हुए हैं। नीतीश को और कुछ सोचने की जरूरत नहीं है। दूसरा संदेश यह कि नीतीश समझ लीजिए कि भाजपा अपने बडप्पन पर सदा रहती है, लेकिन कोई अगर छल का सोच रहा हो तो उद्धव जैसा हाल भी हो सकता है।
भाजपा ने एक संदेश साथ छोड़ चुके सहयोगियों को दिया है। जो लोग चले गए हैं वे यह आरोप न लगाएं कि भाजपा अपने सहयोगियों को खा जाती है। भाजपा बड़ी होकर भी अपने छोटे सहयोगियों को लेकर चल रही है।
मौजूदा सहयोगियों को यह भ्रम पालने की जरूरत नहीं कि भाजपा के साथ रहना घातक है। भाजपा चाहती है, वे बेफिक्र हो जाएं। सहयोगी के रूप में सीमित रहें।
देश की राजनीति में बढ़ रहे अविश्वास, तोड़फोड़ या ईडी, सीबीआई के जरिए अपने में मिलाने के आरोपों से पार्टी को बचाना है। यह बात अब मूलहीन होगी कि पार्टी अपनी सरकार बनाने के लिए सारी तोड़फोड़ करती है।
भाजपा यहां यह भी कहना चाहती है कि शिवसेना जैसे सभी क्षेत्रीय दलों को वह साथ लेकर चलेगी। उनकी क्षेत्रीय ताकत को जरूर सम्मान मिलेगा। यानी क्षेत्रीय अस्मिता का सम्मान करेंगे।
भाजपा का साथ छोड़कर उद्धव के जाने से देश में हिंदुत्व की सियासत के साथ सत्ता लोलुप होने के आरोप भी लग रहे थे। ऐसा माहौल बनाया जा रहा था कि हिंदुत्व को इस्तेमाल करके सिर्फ सियासत की जा रही है। ऐसे में हिंदुत्व का कोर वोटर तो साथ रहता, लेकिन न्यट्रालइज लॉबी पार्टी से हट जाती।
एनसीपी, कांग्रेस को यह साफ संदेश है कि सत्ता के लिए भाजपा सिर्फ सियासत में नहीं है। भाजपा की सियासत समग्रता में है। वह अपने अस्वाभाविक गठबंधनों में नहीं जाएगी।
भाजपा कार्यकर्ताओं को भी यह संदेश है कि वे जिसके साथ गठबंधन बने उसका साथ दें। तकरार, आपसी खींचतान भाजपा का चरित्र नहीं।
कुल मिलाकर भाजपा ने संदेशों की सियासत को अंजाम दिया है। यह महत्वपूर्ण है। भारत की सियासत में इस तरह की बातें कम ही देखने को मिलती हैं और अगर मिती भी हैं तो वह शुद्धता से परिपूर्ण नहीं होती।
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