NindakNiyre: क्या कोई चूक हो गई या कोई डील या अपेक्षाओं पर खेला गया कोई मनोविज्ञानिक खेल है यह सब
india pakistan ceasefire: पिछले 10 वर्षों से लोगों के मन में यह सिर्फ आक्रोष नहीं रहा बल्कि एक ऐसी अपेक्षा बन गया जो पूरी होनी ही होनी है, क्योंकि देश में सरकार मोदी की है। मोदी है तो मारेगा, मोदी है तो करेगा, मोदी है तो सामने वाला डरेगा। जाहिर है मोदी ने यह भरोसा करके, दिखाके कमाया है।
Barun Sakhajee
- क्या सच में कोई चूक हो गई है मोदी से?
- क्या कोई बड़ी डील हो गई है जो सबके फायदे की है?
- क्या यह अपेक्षाओं का गुब्बारा फोड़ने का मनोविज्ञान भी है?
बरुण सखाजी श्रीवास्तव, 9009986179
india pakistan ceasefire: पाकिस्तान का नाम सुनकर भारतीयों के नथुने फड़कने लगते हैं। मिट्टी में मिला देने का जोश दिखता है। भिखारी, कंगाल आदि कहकर भारत को आनंद मिलता है। दूध मांगो खीर देंगे, कश्मीर मांगो चीर देंगे नारे गूंजते हैं। फिर शुरू होता है पाकिस्तान पर बातों, बयानों का राजनीतिक सिलसिला।
लेकिन पिछले 10 वर्षों से लोगों के मन में यह सिर्फ आक्रोष नहीं रहा बल्कि एक ऐसी अपेक्षा बन गया जो पूरी होनी ही होनी है, क्योंकि देश में सरकार मोदी की है। मोदी है तो मारेगा, मोदी है तो करेगा, मोदी है तो सामने वाला डरेगा। जाहिर है मोदी ने यह भरोसा करके, दिखाके कमाया है। भारत का भरोसा है मोदी जो कहता है वह करता है और जो कहना नहीं करना चाहिए वह भी मोदी करता है। ऐसे में थोड़ा उलट हो गया है। बेशक, आम आदमी राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय सियासत, दबाव, कूटनीति आदि कम समझता है, लेकिन इतना तो खूब ही समझता है कि सीजफायर जैसा ऐलान करना किसे चाहिए?
क्या सच में कोई चूक हो गई है मोदी से?
मोदी जनभावनाओं को समझने में डॉक्टरेट हैं। जनभावनाएं बहुत स्पष्ट दिखाई, सुनाई और समझ आ रही थी कि पाकिस्तान से टेंशन किसी अंजाम तक पहुंचे। इसका अर्थ यह नहीं था कि युद्ध हो, किंतु इसका अर्थ यह तो बिल्कुल नहीं था जो हुआ। ऐसे में मोदी से जो चूक हुई वह दो स्तर पर समझिए। पहला तो देश में माहौल बना दिया गया, जनापेक्षाएं बढ़ा दी गईं दूसरा इसके अंतिम ओवर की हैंडलिंग गलत हो गई। माहौल बनाया तो अच्छा किया, लेकिन किसी विजयी अंजाम तक जाना था। दूसरा प्वाइंट आखिरी ओवर की हैंडलिंग। इसमें ट्रंप ने 5 बजकर 33 मिनट पर सीजफायर का ऐलान किया और 5 बजकर 55 मिनट पर भारतीय विदेश सचिव ने सीजफायर का ऐलान कर डाला। 6 बजकर 10 मिनट तक सारी तस्वीर बदल जाती है। यहां अंदरखाने भले ही आश्वस्ती हो जाती, आर्मी स्टाफ को भी कम्युनिकेशन हो जाता, लेकिन ऐलान 12 मई की बैठक के बाद करना था। तब लोगों को यह नहीं लगता कि सब ट्रंप ने करवा दिया।
क्या कोई बड़ी डील हो गई है जो सबके फायदे की है?
जाहिर है दुनिया फायदे के लिए काम करती है। पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से कर्ज की किस्त मिल गई। घटते आंतरिक जनाधार को ठीक करने के लिए फौज के अलावा दूसरे मसलों पर काम करने का मौका मिल गया। राजनीतिक शक्तियां मुल्क में अवाम का विश्वास हासिल कर पाएंगी। भारत को पता चल गया पाकिस्तान कितने पानी में है, चीनी सपोर्ट कितना है, दुनिया में कौन-कौन किसका है आदि सब। अमेरिका को फिर से दुनिया में अपना रुतबा कायम रखने का मौका मिल गया। यह भारत के लिए भी ठीक है, क्योंकि अमेरिका का घटा रुतबा मतलब चीन का बढ़ा पावर है। फिलवक्त की भूराजनीति में भारत के लिए अमेरिका का एक ध्रुव बना रहना जरूरी है। सिर्फ भारत के लिए ही नहीं दुनिया के लिए भी।
क्या यह अपेक्षाओं का गुब्बारा फोड़ने का मनोविज्ञान भी है?
कह सकते हैं। हम जिस पर भरोसा करेंगे उसे चमत्कारी भी मानेंगे। मोदी ने भले ही यह सोच-विचार कर न किया हो किंतु अपेक्षा के गुब्बारे में एक पिन जरूर चुभाया है। यह गुब्बारा अपने पूरे फुलाव पर है। जबकि बहुत सारे समीकरण वैसे नहीं होते जैसे अपेक्षाएं समझती हैं।
अब कुल मिलाकर मैं क्या राय बनाऊं
कुल मिलाकर आपको राय ऐसे ही बनाना पड़ेगी। इसके लिए कोई सीधा, सपाट, सिंगल फॉर्मूला नहीं हो सकता। यह न तो वस्तुनिष्ठ प्रश्न है न कंपलसरी क्वेश्चन। इसलिए मैं आपको यही सलाह दे सकता हूं कि आप अपनी राय थोड़े एक स्तर पर सोच को ले जाकर बनाइए। हो सकता है मोदी ने समय लिया हो ताकि बलोच में एंटी-पाकिस्तान एक्टिविटी को इगनाइट किया जा सके या खैबर या सिंध जैसे इलाकों में हाल की पाकिस्तान सेना की किरकिरी के विरुद्ध आवाज को हवा दी जा सके। विश्वास कर सकते हैं भारत की मौजूदा सरकार पर कि वह कम से कम पाकिस्तान को लेकर इतनी लापरवाह तो नहीं है जो उसे अभयदान दे दे।

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