मध्यप्रदेश चुनाव में भी छत्तीसगढ़िया ट्रेंड! बंपर पोलिंग का क्रॉ(स)प कनेक्शन

मध्यप्रदेश चुनाव में भी छत्तीसगढ़िया ट्रेंड! बंपर पोलिंग का क्रॉ(स)प कनेक्शन

मध्यप्रदेश चुनाव में भी छत्तीसगढ़िया ट्रेंड! बंपर पोलिंग का क्रॉ(स)प कनेक्शन
Modified Date: November 29, 2022 / 09:26 am IST
Published Date: November 29, 2018 12:29 pm IST

छत्तीसगढ़ के बाद अब मध्यप्रदेश में मतदान पूरा हो गया है। दोनों प्रदेशों में पोलिंग अच्छी खासी हुई है। दोनों जगहों के आंकड़े भी करीब-करीब बराबर हैं। मध्यप्रदेश में 74.85 फीसदी मतदान के आंकड़ों ने कई बरस का रिकॉर्ड तोड़ दिया है। जबकि छत्तीसगढ़ में 76.35 प्रतिशत पोलिंग पिछले चुनाव से महज एक फीसदी कम है। हम यहां दोनों के राज्यों के आंकड़ों को इसलिए भी एक साथ रख रहे हैं, क्योंकि छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश पहले एक राज्य हुआ करते थे। अलग होने के बाद यहां केवल तीन साल कांग्रेस की सरकार रही, उसके बाद दोनों राज्यों में 15 बरस से बीजेपी की सरकारें हैं। लिहाजा मुद्दे और समीकरण भी एक जैसे दिखाई पड़ते हैं। मतदान के बाद जिन तथ्यों के आधार पर सियासी गुणा-भाग किए जाते हैं, उसमें पहला नंबर सत्ता विरोधी लहर यानी एंटीइनकंबेसी का आता है- दोनों राज्यों में इसका स्वाभाविक असर है और दोनों जगहों पर सरकार के मुखिया से कोई नाराजगी नजर नहीं आती, लेकिन छत्तीसगढ़ की जनता के मन में बदलाव की कुलबुलाहट जरुर समझ आती है।

परिचितों-मित्रों से बातचीत और टीवी-अखबारों की रिपोर्ट के आधार पर मध्यप्रदेश में भी बदलाव की चर्चा तो सुनाई पड़ती है। मुद्दों की बात करें तो छत्तीसगढ़ की तरह मध्यप्रदेश में भी कोई ऐसा मुद्दा नहीं दिखाई पड़ता, जिससे कोई लहर पैदा हो,लेकिन इतना जरुर है कि छत्तीसगढ़ की तरह मध्यप्रदेश में भी किसानों के मसले ने एक हवा बनाने की कोशिश की है। यह किसके पक्ष में जाएगी यह कहना तो मुश्किल है, लेकिन इतना तो दावे के साथ कहा जा सकता है कि छत्तीसगढ़ की तरह मध्यप्रदेश में भी सत्ता की चाबी खेत-खलिहान से होकर जाएगी। मालवा-निमाड़ और मध्य भारत में किसानों ने अच्छा उत्साह दिखाया है। दरअसल, कांग्रेस ने इन दोनों राज्यों में समर्थन मूल्य बढ़ाने, कर्जा माफी का बड़ा दांव खेला है।

मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ में एक समानता बीजेपी के टिकट वितरण में दिखाई पड़ती है। दोनों जगहों पर पार्टी ने टिकट काटने में पिछले बार के मुकाबले थोड़ी कंजूसी दिखाई है। ऐसा लगता है कि थोड़ी और दिलेरी से टिकट काटी जाती तो सत्ता विरोधी लहर को कम किया जा सकता था, क्योंकि स्थानीय स्तर पर बदलाव का असर अधिक होता है।

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इन दोनों राज्यों में प्रचार-प्रसार के मामले में बीजेपी कांग्रेस से काफी आगे रही। छत्तीसगढ़ के मुकाबले मध्यप्रदेश के कांग्रेस नेताओं ने एकजुटता दिखाई, लगता है कि इसका असर भी मतदाताओं पर पड़ा है।

आंकड़ों पर गौर करें तो दोनों राज्यों में कांग्रेस और बीजेपी के वोट प्रतिशत में महज एक प्रतिशत का अंतर है। ऐसे में यह बात साफ है कि दोनों राज्यों में कांटे की टक्कर है, लेकिन आश्चर्यजनक नतीजों की भरपूर संभावना है। इतना ही नहीं लहर जैसी स्थिति नहीं होने के बावजूद नतीजे एकतरफा होंगे तो भी अचरज की बात नहीं होगी।

समरेन्द्र शर्मा,

कंटेंट हेड, IBC24


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