Nindak Niyre: छत्तीसगढ़ भाजपा में अंदरूनी असहमति का आलम, कोई भी निर्णय अमल में लाने में छूट रहे पसीने By Barun Sakhajee
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Barun Sakhajee,
Asso. Executive Editor
बरुण सखाजी. सह-कार्यकारी संपादक
हाल की गतिविधियों को बारीकी से देखें तो छत्तीसगढ़ का मुख्य विपक्षी दल भाजपा अपने निर्णयों को लेकर ऊहापोह में है। सदा ही रणनीतिक स्तर पर आगे रहने वाली भाजपा छत्तीसगढ़ के मामले में असहज है। 2018 से लेकर 2022 अक्टूबर तक के निर्णयों का सिलसिलेवार अध्ययन किया जाए तो पार्टी का असमंजस स्पष्ट है। फिर वह चाहे नेताप्रतिपक्ष के चयन की बात हो या बदलने की हो या पूर्व मुख्यमंत्री को लेकर किसी निर्णय की हो या प्रदेश अध्यक्ष की बात हो या अब जिला अध्यक्षों की ही बात क्यों न हो। पार्टी लगातार निर्णय लेने में हिचक रही है।
प्रदेश अध्यक्ष चुनने में लगा दिए पौने 4 साल
यह बात पहले दिन से साफ थी कि छत्तीसगढ़ में भाजपा का जातिय गणित बघेल के किसान फॉर्मूले ने बिगाड़ दिया है। इस फॉर्मूले में कुर्मी, साहू, देवांगन, ठाकुर, यादव को एक कर दिया है। बावजूद इसके विष्णुदेव साय की नियुक्ति असमंजस का उदाहरण थी। अब जब निर्णय लिया गया तो नतीजों के लिए प्रतीक्षा के अलावा कोई चारा नहीं बचा।
अरुण आए भी तो खुलकर नहीं खेल पा रहे
जैसे-तैसे करके अरुण साव का ऐलान हो भी गया तो उनके हाथ बंधे से नजर आते हैं। हर फैसले में उनका अपना मत महत्वपूर्ण है, लेकिन सिर्फ उनके मत से काम नहीं हो रहा। रायपुर में उनके स्वागत कार्यक्रम में जितनी सिनर्जी दिखी थी वह फिर बिलासपुर, सरगुजा, बस्तर दौरे के दौरान नहीं दिखी। ऐसा लगा जैसे इसके पीछे भी कोई पॉलिटिकल क्राफ्टिंग है।
नेताप्रतिपक्ष पर चलता रहा चक्कर
नेताप्रतिपक्ष को लेकर पार्टी लगातार सोचती रही। कभी अजय चंद्राकर बढ़त बनाते कभी नारायण चंदेल। इस बीच कहीं धीरे से शिवरतन शर्मा भी आते, लेकिन फैसला होते तक नारायण चंदेल को जिम्मेदारी मिली।
अब जिला अध्यक्षों पर असमंजस
भाजपा यह तय नहीं कर पा रही कि वह किसे आगे बढ़ाए और किसे पीछे करे। इसका नतीजा है कि पार्टी अपने जिला अध्यक्षों को नहीं चुन पा रही। गंगरेल की बैठक में 13 नामों पर सहमति बनी। इनमें नए जिले भी शामिल थे, लेकिन घोषणा अभी तक नहीं हुई। पार्टी जिला अध्यक्ष जैसी इकाइयों में जितना देर करेगी उसे उतना नुकसान हो सकता है। लेकिन पार्टी है कि घोषणाओं में आगे आ ही नहीं रही। बिलासपुर, दुर्ग, रायपुर, बस्तर, सरगुजा ऐसे बड़ी जिला टीमें हैं, जहां वाइब्रेंट अध्यक्षों की जरूरत है। राजधानी में खासकर जूझने वाले, मैदानी और फाइटर अध्यक्ष की जरूरत किसी से छिपी नहीं। मगर पार्टी की हिचक बरकरार है।
क्यों नहीं आ रहे ओम माथुर
प्रदेश प्रभारी के दायित्व को एक महीने से अधिक समय बीत गया, लेकिन ओम माथुर ने छत्तीसगढ़ की तरफ देखा तक नहीं। बताया गया उनकी ब्रेन की सर्जरी हुई है तो वे आराम कर रहे हैं। यह सच भी है, लेकिन क्या सिर्फ यही कारण है?
छत्तीसगढ़ भाजपा को अपने फैसलों में गति लाना होगी। जिन्हें जिम्मेदारियां दे रहे हैं उन्हें पर्याप्त बैकसपोर्ट भी देना होगा। घोषणा किसी भी समय की जाए, थोड़ी-अधिक असहमति का सामना तो करना ही होगा। सिर्फ दिखावे के बदलाव से काम नहीं चलेगा, वास्तविक रूप से फाइटिंग में आना होगा। फैसलों में तेजी भी जरूरी है।
निंदक नियरे में पढ़िए… खड़गे तो जीत ही रहे हैं, जीत ही जाएंगे….

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