NindakNiyre: बिहार नतीजे कह रहे हैं आयोग पर कीचड़ उछालना बंद करो, संस्थाओं का विश्वास भंग करना बंद करो

NindakNiyre: बिहार नतीजे कह रहे हैं आयोग पर कीचड़ उछालना बंद करो, संस्थाओं का विश्वास भंग करना बंद करो

Bihar Assembly Election Result News Today: RJD ने निर्वाचन आयोग के परिणाम को मानने से किया इंकार / Image: IBC24 Customized

Modified Date: November 14, 2025 / 03:46 pm IST
Published Date: November 14, 2025 3:46 pm IST

बरुण सखाजी श्रीवास्तव, सह-कार्यकारी संपादक, IBC24

सियासत अब सिर्फ ड्रामा नहीं, अव्यवहार नहीं, अपरिपक्वता नहीं, भ्रम नहीं, भटकाव नहीं, फैलाव नहीं, सिर्फ आरोप नहीं है। सियासत अब सकारात्मक है, गंभीरता है, मैदान से जुड़ाव है, अच्छा प्रबंधन है, कर देने का विश्वास है। बिहार के नतीजे यही बात कह रहे हैं। लोकतंत्र के प्राण चुनाव होते हैं। चुनावों का प्राण चुनाव आयोग होता है, जो किसी संस्था, व्यक्ति, पहचान, से परे जाकर बहुस्तरीय जांच की परतों से गठे, बंधे सिस्टम से चुनाव करवाता है। एक बीएलओ से लेकर भारतीय चुनाव आयुक्त तक का एक संवाद है, जवाबदेही है, गड़बड़ी रोकने की जांच श्रेणियां हैं। विभिन्न राज्यों की अलग-अलग मन-मानस वाली प्रशासनिक इकाइयों की अस्थायी कार्य शक्तियां हैं। देश के पहले लोकसभा चुनाव से लेकर विभिन्न विधानसभाओं के अब तक भारत में 500 से अधिक चुनाव करवा चुके आयोग को सीधे हिट करना, निरंतर संस्था को संदेहित करना, लोगों को पसंद नहीं आया। सुधार की गुंजाइश किसमें नहीं होती। संस्था, व्यक्ति, दल, विचार सब समय के साथ सुधरते, बढ़ते, जरूरी बातों को ग्रहण करते, गैरजरूरी चीजों के छोड़ते हुए चलते रहते हैं। चुनाव आयोग ने भी यही किया है और कर रहा है।

बिहार चुनाव हमे बता रहे हैं, नतीजे सिर्फ फ्रीबीज नहीं हैं। फ्रीबीज तो सभी पार्टियों ने ऐलान कर रखे थे। हर चुनावों में पार्टियां करती ही हैं। बिहार के नतीजे फ्रीबीज के स्वार्थ के साथ समाज, संस्था, राष्ट्र, राज्य के लिए दूरगामी विजन का चयन भी हैं।

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कांग्रेस ने राहुल गांधी के नेतृत्व में आत्मनिरीक्षण करना, मूल्यांकन करना, मुद्दों पर मल्टीलेयर पर बातें करना, जमीनी नेटवर्क को प्रेरित करना पूरी तरह से छोड़ दिया है। नतीजा यह हुआ कि खुद तो डूबे ही डूबने ही थे, संग में राजद को नुकसान कर दिया।

बिहार देश के ऐसे नतीजों की तरफ इशारा कर रहा है जहां से भारत की विभिन्न राजनीतिक पार्टियों को सोचने पर विवश होना होगा। सिर्फ हठ ठानकर रखना ठीक नहीं। बड़ा भ्रष्टाचारी, छोटा भ्रष्टाचारी जैसे शब्दों से जीत को डायल्यूट नहीं किया जा सकता है। फ्रीबीज का फेवर नहीं कह सकते है, विपक्षी दलों के मुद्दे कारण हैं, यह भी नहीं कह सकते, असल में जो खेल बिहार में हुआ है वह एसआईआर को कटघरे में खड़ा करने, चुनाव आयोग पर भारी भरकम हमले करने, बमों की संज्ञा देकर कथित खुलासे करने, रही कसर तो भारत के निर्वाचन आयुक्त को सनाम दूषित करने के प्रयत्न से हुआ है। इन मसलों पर व्यापक चर्चा का समय आ गया है। मैं जानता हूं ईवीएम, एसआईआर, वोटचोरी, जेन-जी का राग सतही बातों पर हल्ला-गुल्ला भारत के लोग पसंद नहीं करते। इन्हीं लोगों ने आयोग बनाया है, इन्हीं ने कोर्ट, इन्हीं ने सरकार और इन्हीं ने बनाई है देश को चलाने की सारी मशीनरी।

अब लोग अपने निजी स्वार्थों, हितों के लिए किसी की बातों में नहीं आ सकते। वे पूरी चीजों को तौलेंगे, समझेंगे फिर ही निर्णय करेंगे। बेशक फ्रीबीज का लालच इस विवेक को प्रभावित करता है, लेकिन खत्म नहीं करता। फ्रीबीज अच्छी चीज नहीं है, क्योंकि यह एक स्पर्धा बन जाएगी। यह राज्यों पर ओवरबर्डन है, लेकिन एक पक्ष यह भी है कि इस बहाने सरकारों ने उन ओवरबर्डन को भी खोजना शुरू कर  दिय है जो सही में ओवरबर्डन रहे हैं।

चुनावों को सिर्फ प्रबंधन का पार्ट मानकर लड़ना, मुद्दों के नाम पर वही घिसेपिटे मुद्दे लेकर जाना, फ्रीबीज के नाम पर कोरे पैसे देने का प्रयास करना, संलग्न संस्थाओं को कटघरे में खड़ा करना, यह सब अब नहीं चलता। न चलना चाहिए। यह समय अलग है वह समय अलग था। अब सबके हाथ में एक मोबाइल है, जिसमें मल्टीपल सब्जेक्टिव कटेंट पड़ा हुआ है। यहां पलभर में लोग हर सत्य, तथ्य और बातों को वेरीफाइ कर लेते हैँ। वे देख लेते हैं चुनाव आयोग की पूरी वर्किंग क्या है। वे अगर राजनीतिक कार्यकर्ता नहीं हैं तो आपकी बातों में नहीं आते। अगर वे राजनीतिक कार्यकर्ता भी हैं तो भी आपकी बातों से सिर्फ चिल्लमचिल्ली तक सहमत रहते हैं, दिल से नहीं।

बिहार नतीजे देश के दोनों सियासी समूहों को एक स्पष्ट संदेश है। भाजपा समझे, यह जीत नहीं जिम्मेदारी है। यह ताकत नहीं विश्वास है। यह पार्टी विद डिफरेंस की अग्निपरीक्षा है। कांग्रेस समझ जाए, यह राहुल गांधी का समय नहीं है। यह भ्रम का समय नहीं है। यह मैदान से उठे, उभरे सिर्फ नेताओं का है। यह आरोपों का मकड़जाल नहीं है, यह हिट एंड रन का तरीका नहीं है, यह सुलझे, स्पष्ट विचारों के साथ मजबूती से खड़े होकर ठिकाना खोजने का तरीका है। कांग्रेस का बिहार में कोई नामलेवा नहीं था और अब तो बिल्कुल ही नहीं बचा, मगर राजद को जो नुकसान हुआ उसका अंदाजा किसी ने नहीं लगाया था। कारण साफ है। राजद का अतिआत्मविश्वास, राहुल के सुर में सुर मिलाने की जिद और सीनाजोरी भारी पड़ी।

अब कांग्रेस को चाहिए संस्थाओं को खत्म करने के कुत्सित प्रयास बंद करे। आरोपों की झड़ी लगाना बंद करे। जनता से संवाद शुरू करे। जनता के बीच जाकर समझने की कोशिश करे। टैगिंग बंद करे। यह इसका आदमी, वह उसका आदमी यह सब बहाने हैं, नाकामयाबियों को छिपाने की दलीलें हैं। सच को स्वीकारें, जनता से कनेक्ट और कॉन्टैक्स पर फोकस करके ही कुछ हो सकता है, वरना तो तालाब में कूदकर घुटने-घुटने पानी में तैरने से कोई मखाना, मछुआरों का भला होता नहीं।

 

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Associate Executive Editor, IBC24 Digital