#NindakNiyre: सर्व आदिवासी समाज दमखम से चुनाव लड़ा तो किसे होगा फायदा और किसे होगा नुकसान, क्या वोटकाटू बनेगा या करेगा बड़ा उलटफेर, जानिए पूरी बात |

#NindakNiyre: सर्व आदिवासी समाज दमखम से चुनाव लड़ा तो किसे होगा फायदा और किसे होगा नुकसान, क्या वोटकाटू बनेगा या करेगा बड़ा उलटफेर, जानिए पूरी बात

Sarv Adivasi Samaj in CG: सारांश में यह कह सकते हैं कि सर्व आदिवासी समाज अगर मैदान में पूरे दमखम से लड़ता है तो मुमकिन है बस्तर में वह एकाध सीट जीत ले और लगभग 11 सीटों पर कांग्रेस का खेल बिगाड़ सकती है। बहरहाल, देखेंगे 2023 में क्या होता है।

Edited By :   Modified Date:  May 9, 2023 / 02:29 PM IST, Published Date : May 9, 2023/2:29 pm IST

बरुण सखाजी. राजनीतिक विश्लेषक

छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव का काउंट-डाउन शुरू हो चुका है। दिसंबर तक नई सरकार बन जाएगी। हाल ही में बस्तर में सक्रिय सर्व आदिवास समाज ने भी चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है। सर्व आदिवासी समाज का यूं तो कोई एक चेहरा नहीं है, लेकिन जनता से उसका नाता मजबूत दिखाई दे रहा है। माना जा रहा है सर्व आदिवासी समाज इन चुनावों में अपना दम दिखाने को तैयार है।

अगर सर्व आदिवासी समाज चुनावी मैदान में उतरता है तो इसका छत्तीसगढ़ की सियासत पर क्या असर होगा। हाल ही के दिनों में हमने देखा है आदिवासी मतदाताओं को लुभाने के लिए कांग्रेस और भाजपा दोनों ने ही कोई कसर नहीं छोड़ी है। बावजूद इसके अभी यह कहना कठिन है कि आदिवासी मतदाता किसके साथ हैं।

2018 में थे कांग्रेस के साथ

2018 चुनाव के मुताबिक छत्तीसगढ़ की 29 आदिवासी आरक्षित सीटों में से 25 सीटें कांग्रेस को मिली थी, जो साल 2019 में दंतेवाड़ा और मरवाही उपचुनाव के बाद साल 2020 तक बढ़कर 27 हो गई। इनके अलावा 2 आदिवासी  विधायक कांग्रेस के पास ऐसे हैं जो सामान्य सीटों से जीते हैं। इस लिहाज से देखें तो कांग्रेस आदिवासी विधायकों के मामले में ज्यादा ताकतवर है।

अब मैं आपको बताता हूं प्रदेश में आदिवासी आबादी और मतादाताओं की स्थिति क्या है। छत्तीसगढ़ में लगभग 80 लाख आदिवासी आबादी है। इन 80 लाख में से लगभग 70 लाख लोग बस्तर और सरगुजा में रहते हैं। बाकी 10 लाख लोग मैदानी क्षेत्रों में हैं। इन 80 लाख आदिवासी आबादी में से 54 लाख मतदाता हैं। 2018 में इन 54 लाख में से लगभग 40 लाख वोटर्स ने अपना वोट दिया था। कांग्रेस ने इनमें से करीब 24 लाख वोट हासिल किए थे, जबकि 2 लाख तक आदिवासी वोट्स जोगी की जकांछ को मिले थे। भाजपा सबसे ज्यादा निराश हुई थी, इसके खाते में महज 14 लाख आदिवासी वोट आए थे।

2019 में हो गए थे भाजपा के साथ

साल 2019 में जब लोकसभा चुनाव हुए तो स्थिति पलट गई। अबकी 80 लाख आदिवासी आबादी वाले 54 लाख छत्तीसगढ़ी आदिवासी वोटर्स में से लगभग 39 लाख आदिवासी वोटर्स ने भाग लिया। भाजपा ने 11 में से 9 सीटें जीतें। लगभग 51 फीसदी वोट हासिल करने वाली भाजपा ने राज्य की 4 जनजाति आरक्षित सीटों में से 3 जीती थी। इनमें 1 लाख 57 हजार से सरगुजा, 66 हजार से रायगढ़ और 7 हजार से कांकेर जीती थी। बस्तर भाजपा नहीं जीत पाई थी, लेकिन यहां फासला सिर्फ 39 हजार का था। इन्हें पलटकर देखें तो भाजपा 2019 में 66 विधानसभा क्षेत्रों में जीती थी। इस लिहाज से देखें तो 39 लाख आदिवासी वोटर्स में से भाजपा प्रदेशभर में लगभग 32 लाख वोट मिले और कांग्रेस को सिर्फ 8 लाख वोट से संतोष करना पड़ा।

अब 2023 में किसके साथ?

अब पहेली है कि 2023 में प्रदेश का आदिवासी वोटर किसके साथ रहेगा। यह सवाल फिलवक्त हल नहीं किया जा सकता, लेकिन भाजपा चाहती है आदिवासी वोटों को एबजॉर्व करने वाले किसी फॉर्मूले पर काम किया जाए। दिसंबर 2022 में हुए भानुप्रतापपुर उपचुनाव में यह फॉर्मूला देखने को मिला था। इस दौरान आदिवासी समाज के बच्चों तक में यह भाव गहरे बैठा हुआ था कि वे सर्व आदिवासी समाज के साथ खड़े होंगे। समाज की छोटी-बड़ी बैठकों में समाज को एकजुट करने की कोशिश की गई थी। हालांकि यहां सर्व आदिवासी समाज का प्रत्याशी जीत तो नहीं सका था, लेकिन लगभग 23 हजार वोट लेकर अपनी दमदार मौजूदगी दर्ज जरूर करवा दी थी।

सर्व आदिवासी समाज की ताकत

सर्व आदिवासी समाज भावनाओं का ज्वार लाने में कामयाब हो सकता है। फिलहाल इस समूह की व्यापक मौजूदगी कांकेर, नारायणपुर जिले मे अधिक है। जबकि दावा संपूर्ण बस्तर का है। अगर हम मान लें कि इनका दबदबा पूरे बस्तर में है तो यहां की 11 सीटें जनजाति के लिए आरिक्षत हैं। ऐसे में सर्व आदिवासी समाज यहां भानुप्रतापपुर उपचुनाव की तरह औसतन 20-25 हजार वोट हासिल कर लेता है तो हालात बदल सकते हैं। जैसे कि बस्तर में कांग्रेस ने 2018 में 11 सीटें जीती थी जो 2019 के उपचुनाव के बाद 12 हो गई थी। इन सीटों पर जीतने वाले कांग्रेस के विधायकों का अंतराल औसतन 16 हजार था। बस्तर सीट से लखेश्वर बघेल सबसे ज्यादा 33 हजार से जीते थे और सबसे कम वोटों से कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम 1796 वोटों से कोंडागांव की तब की विधायक लता उसेंडी से जीते थे। सर्व आदिवासी समाज इन 12 सीटों पर दमखम से उतरता है और औसतन 20-25 हजार वोट लेने में कामयाब होता है तो कांग्रेस के लिए यहां मुश्किल बढ़ जाएगी। भानुप्रतापपुर में सर्वआदिवासी समाज के समर्थित प्रत्याशी अकबरराम कोर्राम ने 23 हजार वोट हासिल किए थे।

किसके वोट काटेगा सर्व आदिवासी समाज

सवाल ये है कि सर्व आदिवासी समाज वोट किसके काटेगा? बेशक इसका जवाब इतना आसान नहीं है, लेकिन जवाब खोजने की कोशिश की जा सकती है। 2018 के चुनावों के मुताबिक सबसे ज्यादा 24 लाख आदिवासी वोट कांग्रेस के साथ थे जबकि 2019 के लोकसभा चुनावों के सबसे ज्यादा 32 लाख वोट भाजपा के साथ। तो इस गणित से देखें तो आदिवासी वोटों ने अलग-अलग चुनावों में अपना विश्वास अलग-अलग दलों के लिए जताया है। चूंकि अब 2023 में विधानसभा चुनाव हैं तो जाहिर सी बात है कि सबसे ज्यादा वोट कांग्रेस के पास हैं तो सर्व आदिवासी समाज नुकसान भी सबसे ज्यादा कांग्रेस को ही पहुंचाएगा। यानि कहा जा सकता है बस्तर में सर्व आदिवासी समाज कांग्रेस को खासा डेंट दे सकता है।

क्या सरगुजा में भी कुछ कर पाएगा सर्व आदिवासी समाज?

सर्व आदिवासी समाज के रूप में जो भावनात्मक राजनीतिक समूह नजर आ रहा है, उसकी सरगुजा में कोई रीच नहीं है। यहां पहले से ही कांग्रेस ने भाजपा के नंदकुमार साय को लाकर आदिवासी वोटर्स को अपने साथ रखने की कोशिश की है। साय पुराने हैं, वरिष्ठ हैं, लेकिन सरगुजा के पूरे क्षेत्र में कितने असरदार होंगे, अभी कहना जल्दबाजी है। यहां की 14 सीटों में से 9 सीटें जनजाति के लिए आरक्षित हैं। सर्व आदिवासी समाज के सरगुजा में कोई जतन नहीं हैं। इसलिए यहां जो होगा वह भाजपा और कांग्रेस की अपनी क्षमताओं के अंदर ही होगा।

सारांश में यह कह सकते हैं कि सर्व आदिवासी समाज अगर मैदान में पूरे दमखम से लड़ता है तो मुमकिन है बस्तर में वह एकाध सीट जीत ले और लगभग 11 सीटों पर कांग्रेस का खेल बिगाड़ सकती है। बहरहाल, देखेंगे 2023 में क्या होता है।

read more: कर्नाटक में मुस्लिम आरक्षण का मामला, सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक बयानबाजी पर लगाई रोक

read more:  घायल भारतीय पर्वतारोही अनुराग मालू को इलाज के लिए दिल्ली ले लाया जा सकता है

 
Flowers