बरुण सखाजी श्रीवास्तव, राजनीतिक विश्लेषक
ऑपरेशन सिंदूर के बाद से ही भारत के राजनीतिक विचारों में तीन हिस्से नजर आते हैं। एक बड़ा हिस्सा इस पर दिल से गर्व कर रहा है तो एक हिस्सा ऐसा भी है जो इसके सही परिणामों के लेकर सशंकित है। एक तीसरा पक्ष है ही जो सबको दिख रहा, जो इसमें कमीबेसी निकालकर सिर्फ और सिर्फ सरकार और मोदी को घेर रहा है। उसे देश, दुनिया, सेना, जीत-हार से कोई मतलब नहीं। तीसरे पक्ष पर बात करने का कोई औचित्य नहीं, क्योंकि उनके विचार दोहरेपन के शिकार हैं। वे राजनीतिक हवा, पानी पर निर्भर विचार व्यक्त करते हैं और धारणाओं को प्रोत्साहित करते हैं। उनका मकसद अस्थिरता और अराजकता है, देश और स्थायित्व नहीं।
सबसे पहले संशय, भ्रम वाले पक्ष की बात
सबसे पहले हमे संशय और भ्रम में रहने वालों की बात करनी चाहिए। क्योंकि यह पक्ष यह तो मान रहा है कि भारत ने कुछ किया है। और यह अच्छा भी है, लेकिन और कुछ करना चाहिए था। दरअसल यह पक्ष उस पक्ष के भ्रमजाल में है जो भारत विरोधी बातें विस्तारित करता है। इसके अलावा कुछ भी नहीं करता। यह तीसरा पक्ष कहीं राजनीतिक दल की खोल में प्रकट होता है, कहीं न्यायिक संस्थाओं, सामाजिक संगठनों तो कहीं मीडिया की शकल में आता है। इसके नाम कुछ भी हो सकते हैं। काम लेकिन एक ही है, लोगों में सिस्टम के प्रति घृणा पैदा करना, हर संस्था को शक के दायरे में लाना। इसी पक्ष के कारण संशय वाला पक्ष बना हुआ है। इसमें भ्रम घोला जा रहा है। भारत को लाचार, बेबस, किसी तीसरी ताकत का गुलाम, पाकिस्तान जैसे टुच्चे से मुल्क से हारा हुआ, सैन्य शक्ति और संसाधनों को व्यर्थ बताने की कोशिश हो रही है। पर इन सबके बीच अच्छी चीज ये है कि दिल से गर्व करने वाला पक्ष संशय करने वाले पक्ष के निरंतर संपर्क में है। भरोसा न करने वाले गैर जिम्मेदार पक्ष के संपर्क से संशय़ वाले पक्ष को गर्व करने वाला पक्ष अपनी ओर खींच रहा है और बहुत अधिक संख्या में खींच भी चुका है। चूंकि इसके पास तर्क हैं, विश्वासी बातें हैं और जो हुआ है उसे खुले दिल से मानने और समझने की शक्ति है। भरोसा न करने वाला पक्ष भी संशय करने वाले पक्ष को अपनी ओर खींच रहा है, किंतु उसके पास हवा-हवाई बातें हैं, दोषपूर्ण व्यवहार है, खुद की गैर भरोसेमंद छवि है, दोहरेपन की बीमारी है। इसलिए वह कम खींच पा रहा, हालांकि खींच वह भी रहा है।
अब दिल से गर्व करने वालों की बात करते हैं
यह सबसे बड़ा पक्ष है। यह तथ्यों और सत्यों को परखकर बात कर रहा है। मैदानी स्तर पर देख रहा है। महसूस कर रहा है। इसके सामने बड़ी संख्या में वीडियो, इमेज, ऑपरेशन के फैक्ट्स हैं। यह पक्ष भारत और भारत की शक्ति में योगदानी भी है और विश्वासी भी। इस पक्ष को वितंडा सिर्फ नहीं आता, बल्कि सहभागिता आती है। सौजन्यता आती है। अपने किए और सोचे पर भरोसा करना आता है। यह सृजनशील और जिम्मेदार वर्ग है। यह मानता है भारत ने अच्छी लड़ाई लड़ी। अंतरराष्ट्रीय राजनीति का भी ख्याल रखा। कूटनीतिक तथ्यों का भी ध्यान दिया। मैदान में बंदूक, गोली की लड़ाई भी भरपूर साहस और शौर्य के साथ लड़ी। सेना ने सेना का काम किया। नेता ने नेता का काम किया। संप्रदायों ने संप्रदायों का काम किया। व्यवस्था ने व्यवस्था का किया। हर मोर्चे पर सही हुआ। जब हर मोर्चे पर सही हुआ तो इसे स्वभाविक रूप से जीत कहा जाएगा। दिल से ऑपरेशन सिंदूर पर गर्व करने वालों को बाकी दो पक्षों में से बात-बात पर अविश्वास करने वाले पक्ष के प्रति कोई सहानुभूति और प्रेम नहीं।
अंत में संक्षिप्त चर्चा भरोसा न करने वाले पक्ष की भी
यह पक्ष पहले हमले को स्क्रिप्टेड बताता है। जब ये स्क्रिप्टेड साबित नहीं होता तो इसकी प्रतिक्रिया में साहसिक फैसलों के लिए दबाव बनाता है। जब साहसिक फैसले लेने के लक्षण दिखने लगते हैं तो से नो टु वॉर यानि युद्ध को न की कैंपेन पर चल निकलता है। जब युद्ध विराम हो जाता है तो फिर भारत और भारत के सिस्टम पर यह हमले करने लग जाता है। सत्तर के दशक की भारतीय नेता और वर्तमान नेता की तुलना में जुट जाता है। इसलिए इसके बारे में ज्यादा बात क्या करना, क्योंकि यह खुद ही तय नहीं कर पाता इसे करना क्या है। ये दोहरेपन का शिकार है।
अब आप तय कीजिए, आप किस पक्ष में हैं
चौथा कोई पक्ष नहीं है। इन तीनों में से ही आप कहीं पर हैं। (पक्ष-1 दिल से गर्व पक्ष, पक्ष-2 संशय पक्ष, पक्ष-3 गैर जिम्मेदार व भरोसेमंद पक्ष) अगर आप संशय वाले पक्ष में हैं तो आपको तत्काल अपनी मानसिक सेहत और भारतीयता को बनाए रखने के लिए दिल से गर्व करने वाले पक्ष की बातें सुनना चाहिए। अगर आप भरोसा न करने वाले दोहरे रवैये वाले पक्ष में हैं तो आपका कुछ नहीं हो सकता। सबसे अच्छा है हम दिल से गर्व करने वाले सत्य प्रतिष्ठित पक्ष में खड़े नजर आएं।
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