#NindakNiyre: बस्तर में क्यों बढ़ रही संघ की आवाजाही, क्यों राजनीतिक दलों में है उथल-पुथल, भाजपा का भी डेरा, जानिए कारण

Modified Date: December 20, 2022 / 06:36 pm IST
Published Date: December 20, 2022 6:36 pm IST

बरुण सखाजी, सह-कार्यकारी संपादक

  • महज 12 सीटों वाला आदिवासी इलाका बस्तर आखिर इतना महत्वपूर्ण क्यों है?
  • क्यों बस्तर में डेरा डाल रहे हैं तमाम राजनीतिक दल?
  • क्यों बस्तर पर नजर है संघ की?
  • क्यों है बस्तर का राजवंश इतना सक्रिय?

मैंने आपको पिछले वीडियो में बताया था बस्तर जो भी जीतता है वही छत्तीसगढ़ पर राज करता है। लेकिन इस बार भाजपा और संघ के एजेंडे में बस्तर सिर्फ चुनावी नजरिए से नहीं बल्कि अब यह नए ढंग से दुनिया में पेश किए जाने की तैयारी का हिस्सा है। संघ की बस्तर में सक्रियता, भाजपा की चुनावी नजरिए से आवाजाही और बस्तर के भंजेदव राज परिवार का बढ़ता दखल। यह सब यूं ही नहीं हो रहा। इसके पीछे पूरी एक रणनीति है। आज का विश्लेषण इसी पर।

पहले जानिए बस्तर

7 जिले 12 विधानसभा 2 लोकसभा वाले बस्तर संभाग का दायरा बहुत बड़ा है। यहां 2018 में 20 लाख 64 हजार वोटर थे। माना जाता है, इनमें से 15 से 17 लाख तो सिर्फ आदिवासी वोटर्स हैं। जबकि आबादी के मामले में यह इलाका 40 से 50 लाख के बीच की रेंज में आता है। इस आबादी में भी बहुसंख्य आबादी आदिवासी समुदाय की है। यहां का सबसे बड़ी शहर जगदलपुर है। अंदर पहाड़ों, जंगलों, नदियों, झरनों से अटे पड़े बस्तर की सबसे बड़ी समस्या नक्सलवाद है। बस्तर दुनियाभर में पहचाना और जाना जाता है, क्योंकि यहां पर अंतरराष्ट्रीय एक्टिविस्टों की नजर रहती है। जमीन के भीतर इतना आय़रन ओर है कि पूरी धरती को ढाई बार लोहे से मढ़ा जा सकता है। यहां सार्वजनिक क्षेत्र की रत्न कंपनियों में शुमार एनएनडीसी है। बावजूद इसके यहां भुखमरी, लाचारी, बेवशी के किस्से भी आम हैं। ऐसे में यह इलाका धर्मांतरण के लिए  मुफीद है। बस यहीं से कहानी शुरू होती है।

द्रोपदी मुर्मु, बस्तर और राजपरिवार का त्रिकोण

अब इसे समझिए। पहले तो संथाल आदिवासी समुदाय से आने वाली झारखंड में राज्यपाल रह चुकी ओडिशा की निवासी महिला नेता द्रोपदी मुर्मु को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया जाताहै। फिर उनकी तस्वीरें मंदिर में झाड़ू लगाते, नंदी के कान में मन्नत मांगते हुए फैलाई जाती हैं। संदेश साफ था कि आदिवासी सनातनी हिंदू हैं। भारत के आदि-नागरिक हैं। और सनातन के आदिकाल से अनुयायी हैं। अब बस्तर चलिए। मुर्मु का पहला छत्तीसगढ़ दौरा बस्तर ही होने वाला है। वे दंतेश्वरी मंदिर जाएंगी। अब राजवंश पर आते हैं। बस्तर का भंजदेव राजवंश करीब 4 दशक से बस्तर से बाहर है, लेकिन हाल ही में कमल चंद्र भंजदेव को भाजपा में एक्टिव देखा जा रहा है। कमल चंद्र भंजदेव बस्तर की विभिन्न सीटों पर घूम रहे हैं। आंकड़े जुटा रहे हैं। कमल चंद्र की सीधी एंट्री भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व में है। दरअसल बस्तर राजवंश के प्रवीर चंद्र भंजदेव 60 के दशक में कांग्रेस छोड़कर आदिवासी हितों के लिए लड़ने के लिए जाने जाते हैं। उनकी मां प्रफुल्ल कुमारी भंजदेव अंग्रेजी शासन में इकलौती हिंदू शासिका भी रही हैं। ऐसे में उनके पीछे हिंदुत्व का टैग है। संघ चाहता है बस्तर के आदिवासियों का राजवंश के लिए आदर है, उसे वह धर्मांतरण को रोकने और घर वापसी में उपयोग करे। इसी प्रक्रिया में भाजपा इसमें अपनी जीत तलाश रही है।

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निष्कर्ष

इस तरह से देखें तो समझा जा सकता है कि बस्तर आने वाले दिनों में भाजपा के हिंदुत्व के एजेंडे का झंडाबरदार बनने जा रहा है। साथ ही यह सियासी दलों के लिए आदिवासी मतदाताओं को साधने का केंद्र भी बन रहा है। बड़ा सवाल ये है कि इस सबके लिए आखिर बस्तर ही क्यों? तो जवाब है, क्योंकि बस्तर को दुनियाभर के एक्टिविस्ट अच्छी तरह से जानते हैं और संघ इनके जरिए दुनिया को हिंदुत्व और आदिवासी एक ही समुदाय हैं का संदेश देना चाहता है।


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Associate Executive Editor, IBC24 Digital