Barun Sakhajee,
Asso. Executive Editor
बरुण सखाजी. सह-कार्यकारी संपादक
छत्तीसगढ़ भाजपा ने झिझकते-झिझकते आखिरकार तमाम बदलाव कर दिए हैं। आशा की जानी चाहिए अब टीम भाजपा काम करेगी। विपक्ष में रहते हुए कौन ऐसा राजनीतिक दल है, जिसमें बिखराव न होता हो, लेकिन चुनाव के समय यह बिखराव अखर सकता है। पार्टी ने प्रदेश अध्यक्ष की कमान अरुण साव को सौंपी है। वे व्यक्तिगत तौर पर बहुत सुलझे और साफ व्यक्ति हैं, लेकिन पॉलीटिकल एक्सपोजर को लेकर संकोच कर रहे हैं। उन्हें बैकिंग चाहे संघ की हो या पार्टी की या संगठन की, लेकिन वे खुलकर खेल नहीं पा रहे।
छत्तीसगढ़ 2023 के चुनाव अगर भाजपा हारती है तो मानना होगा संघ हारा। जीतती है तो भी यह कहना होगा संघ जीता। कारण इसका बहुत साफ है। संघ जिस तरह से पार्टी को अपने हिसाब से चला रहा है, वह राजनीतिक दूरगामी परिणाम वाला हो सकता है, लेकिन तात्कालिक तौर पर आत्मघाती है। इकतरफा अजय जामवाल की जमावट, शिवप्रकाश के मौखिक निर्देश, माथुर का फलक से गायब रहना और अरुण साव का झिझकते हुए सक्रिय होना इसके प्रमाण हैं। संघ अंकुश का इस्तेमाल कुछ ज्यादा ही कर रहा है। संघ को यह समझना होगा कि वह बौद्धिक स्ट्रेटजिस्ट हो सकता है, मॉस ओपनियन मेकर हो सकता है, इलेक्शन वॉर रूम क्रिएयर हो सकता है, लेकिन मॉस प्लेयर वह अब भी नहीं है। भाजपा में गहरे तक काम करने वाले जननेताओं की उपेक्षा या उनकी ताकतों को किसी लिहाज से कमतर करने की चेष्टा कोई अच्छी राजनीति नहीं कही जा सकती। अटल विहारी वाजपेयी के समय संघ के पास अंकुश निष्प्रभावी हो गया था, बावजूद पार्टी सरकार में आई। इसका अर्थ यह नहीं कि संघ को माइनस करके पार्टी सरकार में आ जाए, बल्कि इसका अर्थ यह है कि पार्टी और संघ मिलकर चुनावी राजनीति के फॉर्मूले बनाएं।
अरुण साव को चाहिए वे अपनी व्यक्तिगत ब्रांडिंग पर भी जोर दें। हमने देखा 2018 हारने के बाद डॉ. रमन सिंह के 3 जन्मदिन और पड़ते हैं, लेकिन अखबारों में विज्ञापन चौथे जन्मदिन पर ज्यादा नजर आते हैं। बघेल कुछ बोलते हैं और रमन लपक लेते हैं। प्रदेश अध्यक्ष को मौन रहना होता है। इससे मीडिया इमेज में साव वर्सस बघेल न होकर रमन वर्सस बघेल हो रहा है। अरुण साव को चाहिए अब वे जिस कुर्सी पर बैठे हैं उसमें लगी ताकत के गियर भी लगाना शुरू करें।