पश्चिमी देशों के मुकाबले भारत में एआई से दफ्तरी नौकरियों पर खतरा कमः आईटी सचिव

पश्चिमी देशों के मुकाबले भारत में एआई से दफ्तरी नौकरियों पर खतरा कमः आईटी सचिव

पश्चिमी देशों के मुकाबले भारत में एआई से दफ्तरी नौकरियों पर खतरा कमः आईटी सचिव
Modified Date: December 25, 2025 / 05:34 pm IST
Published Date: December 25, 2025 5:34 pm IST

(मोमिता बख्शी चटर्जी)

नयी दिल्ली, 25 दिसंबर (भाषा) सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) सचिव एस कृष्णन ने कहा है कि कृत्रिम मेधा (एआई) के कारण ज्ञान-आधारित नौकरियों के प्रभावित होने का जोखिम पश्चिमी अर्थव्यवस्थाओं के मुकाबले भारत में कम है। कुल कार्यबल में दफ्तर वाली नौकरियों की अपेक्षाकृत कम हिस्सेदारी और विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग एवं गणित (स्टेम) आधारित रोजगारों का वर्चस्व होने के कारण ऐसा है।

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कृष्णन ने पीटीआई-भाषा के साथ खास बातचीत में कहा कि रोजगार पर एआई के संभावित प्रभावों को लेकर जो आशंकाएं जताई जा रही हैं, भारत के संदर्भ में उन्हें उसी तीव्रता से नहीं देखा जाना चाहिए।

उन्होंने कहा कि भारत में दफ्तर वाली नौकरियों का अनुपात पश्चिमी देशों की तुलना में काफी कम है, जिससे दिमाग से किए जाने वाले कार्यों पर आधारित नौकरियों पर एआई से पड़ने वाला जोखिम सीमित रहता है।

कृष्णन ने कहा, “भारत में अन्य नौकरियों की तुलना में दफ्तर वाली नौकरियों की संख्या कम है। इसलिए ज्ञान-आधारित नौकरियों पर एआई का जोखिम उतना गंभीर नहीं है जितना अन्य देशों में है। इसके अलावा, दफ्तर वाले अधिकांश रोजगार स्टेम क्षेत्र में हैं, जो हमारे लिए अवसर भी पैदा करते हैं।”

आईटी सचिव ने कहा कि एआई ऐसी पहली प्रौद्योगिकी है, जो मुख्य रूप से ज्ञान-आधारित कर्मचारियों और संज्ञानात्मक श्रम को प्रभावित करने की क्षमता रखती है। पहले की औद्योगिक और अन्य क्रांतियों में मशीनों ने मुख्य रूप से शारीरिक श्रम की जगह ली थी, न कि दिमाग से किए जाने वाले कार्यों को प्रतिस्थापित किया था।

हालांकि, उन्होंने इस धारणा से असहमति जताई कि एआई निकट भविष्य में इंसानी कामगारों की जरूरत को पूरी तरह समाप्त कर देगा।

उन्होंने कहा कि एआई का वास्तविक असर मानवीय क्षमताओं को बढ़ाने में होगा, ताकि लोग अपने विश्लेषणपरक मानवीय कार्यों को अधिक कुशलता और उत्पादकता के साथ कर सकें।

कृष्णन ने कहा, “मुझे व्यक्तिगत रूप से ऐसा नहीं लगता है कि हम इतनी जल्दी उस स्थिति में पहुंच जाएंगे, जहां श्रमिकों की जरूरत ही खत्म हो जाए। एआई मानव क्षमता को बढ़ाएगा, जिससे सोच-समझकर किए जाने वाले कार्यों में उत्पादकता बढ़ेगी और संसाधनों तक बेहतर पहुंच संभव होगी।”

उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि एआई से गलत या भ्रामक जानकारी मिलना यानी ‘हैलुसिनेशन’ अब भी चुनौती बनी हुई है। ऐसे में एआई से तैयार सामग्री की निगरानी और सत्यापन के लिए मानवीय हस्तक्षेप की जरूरत लंबे समय तक बनी रहेगी।

सचिव ने कहा, “यह देखना जरूरी है कि दी गई जानकारी सही है या नहीं और कहीं वह हैलुसिनेशन तो नहीं है। इसलिए इस प्रक्रिया में लंबे समय तक इंसानी मौजूदगी की जरूरत बनी रहेगी।”

आईटी सचिव ने बताया कि एआई प्रणालियों के संचालन के लिए जिस बड़े पैमाने की कंप्यूटिंग क्षमता और मॉडल निर्माण की जरूरत होती है, वह भी आमतौर पर छोटे लेकिन अत्यधिक कुशल पेशेवर समूहों द्वारा संभाली जाती है। यह प्रक्रिया भले ही पूंजी-प्रधान हो, लेकिन इसका रोजगार पर प्रभाव सीमित रहता है।

उन्होंने कहा कि एआई का वास्तविक और व्यापक प्रभाव विभिन्न क्षेत्रों के लिए विशिष्ट एवं उपयोग-आधारित एप्लिकेशन के विकास और तैनाती से आएगा जिसके लिए बड़ी संख्या में प्रशिक्षित पेशेवरों की जरूरत होगी।

कृष्णन ने कहा, “यही वह क्षेत्र है जहां भारत दुनिया को सबसे अधिक योगदान दे सकता है और जहां एआई से जुड़े रोजगार के अवसर वास्तव में पैदा होंगे।”

उन्होंने कहा कि भारत न केवल अपनी घरेलू जरूरतों के लिए बल्कि वैश्विक स्तर पर भी एआई की तैनाती और उसके उपयोग की मजबूत स्थिति में है।

कृष्णन ने यह भी बताया कि सरकार द्वारा विकसित किया जा रहा स्वदेशी एआई एप्लिकेशन मॉडल अगले वर्ष फरवरी में प्रस्तावित एआई शिखर सम्मेलन से पहले तैयार होने की उम्मीद है, जिससे रोजगार सृजन और आर्थिक समृद्धि को बढ़ावा मिल सकता है।

भाषा प्रेम प्रेम रमण

रमण


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