व्यावसायिक घरानों को बैंक क्षेत्र में जाने की अनुमति देना ‘आकर्षक’ लेकिन ‘गलत दिशा’ का कदम‘: बसु

व्यावसायिक घरानों को बैंक क्षेत्र में जाने की अनुमति देना ‘आकर्षक’ लेकिन ‘गलत दिशा’ का कदम‘: बसु

व्यावसायिक घरानों को बैंक क्षेत्र में जाने की अनुमति देना ‘आकर्षक’ लेकिन ‘गलत दिशा’ का कदम‘: बसु
Modified Date: November 29, 2022 / 08:20 pm IST
Published Date: November 26, 2020 3:16 pm IST

नयी दिल्ली, 26 नवंबर (भाषा) विश्वबैंक के पूर्व मुख्य अर्थशास्त्री कौशिक बसु ने बृहस्पतिवार को कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के एक आंतरिक कार्य समूह का कॉर्पोरेट घरानों को बैंक स्थापित करने की अनुमति देने का प्रस्ताव को ‘एक अच्छा दिखने वाला ’ पर ‘ गलत दिशा ’ का कदम बताया है। उन्होंने कहा कि इससे साठगांठ वाले पूंजीवाद को बढ़ावा मिलेगा तथा अंतत: वित्तीय अस्थिरता का खतरा पैदा होगा।

बसु ध्यान दिलाया कि सभी सफल अर्थव्यवस्थाओं में उद्योग और कंपनियों तथा बैंकों एवं कर्ज देने वाले अन्या संस्थानों के बीच एक दूरी रखी जाती है? इसका कारण है।

उन्होंने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘हाल में गठित रिजर्व बैंक के आंतरिक कार्य समूह (आईडब्ल्यूजी) ने भारतीय औद्योगिक घरानों को बैंक खोलने और चलाने की अनुमति देने का प्रस्ताव किया है। यह अच्छा दिखने वाला पर गलत दिशा में कदम है।’’

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संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) के शासन के दौरान मुख्य आर्थिक सलाहकार रहे बसु ने कहा कि पहली नजर में यह अच्छा जान पड़ता है। क्योंकि इससे कर्ज लेने को इच्छुक उद्योगों और कर्ज देने वाले बैंकों के बीच बेहतर संपर्क बनेगा जिससे ऋण गतिविधियों में तेजी आएगी तथा इससे बैंक क्षेत्र अधिक दक्ष होगा।

उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन इस प्रकार का आपस में जुड़ा कर्ज वास्तव में साठगांठ वाले पूंजीवाद की दिशा में कदम है जहां कुछ बड़ी कंपनियां देश में व्यापार पर कब्जा जमा लेती हैं, धीरे-धीरे छोटे इकाइयों को बाहर कर देती हैं।’’

बसु ने कहा, ‘‘साथ ही, इस प्रकार के कर्ज से अंतत: वित्तीय अस्थिरता पैदा हो सकती है।’’

पिछले सप्ताह, रिजर्व बैंक के समूह ने कई सिफारिशें की जिसमें बड़ी कंपनियों को बैंकिंग नियमन कानून में जरूरी संशोधन के बाद बैंक का प्रवर्तक बनने की अनुमति देने का प्रस्ताव किया जाना शामिल है।

उन्होंने कहा, ‘‘इस बात के कई साक्ष्य हैं कि उद्योग और बैंक के बीच जुड़ा कर्ज एशिया में 1997 में फंसे ऋण में बढ़ोतरी का कारण बना। इससे पूर्वी एशिया संकट उत्पन्न हुआ जिसकी शुरूआत थाईलैंड से हुई और बाद में यह दुनिया में सबसे बड़ा वित्तीय संकट बन गया।’’

बसु ने कहा कि भारत का बैंकिंग नियमन कानून बेहतर तरीके से बनाया गया कानून है। यह आधुनिक भारत के संस्थापकों की दूर दृष्टि को बताता है।

हालांकि उन्होंने कहा कि समय बदल गया है और इसके कुछ भागों में संशोधन की जरूरत है।

बसु ने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि कुछ गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) के लिये रास्ता खोला उपयुक्त होगा। उन्हें पूर्ण रूप से बैंक में तब्दील करने पर विचार करना अच्छा होगा। इसका कारण एनबीएफसी पर औद्योगिक घरानों का नियंत्रण नहीं हैं।’’

उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन कानून में बदलाव कर औद्योगिक घरानों को बैंक चलाने की अनुमति देना पूरी तरह से गलत कदम होगा। अगर ऐसा होता है, इसके दो परिणाम होंगे…साठगांठ वाला पूंजीवाद को बढ़ावा मिलेगा और वित्तीय समस्याएं पैदा होंगी।’’

हाल में आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन और पूर्व डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने एक संयुक्त लेख में कहा था कि कॉरपोरेट घरानों को बैंक स्थापित करने की मंजूरी देने की सिफारिश आज के हालात में चौंकाने वाली है। इस समय बैंकिंग क्षेत्र में कारोबारी घरानों की संलिप्तता के बारे में अभी आजमायी गयी सीमाओं पर टिके रहना अधिक महत्वपूर्ण है।

भाषा

रमण मनोहर

मनोहर


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