देश को ग्रामीण, शहरी क्षेत्रों को परिभाषित करने के लिये गतिशील रुख की जरूरत: पीएमईएसी सदस्य |

देश को ग्रामीण, शहरी क्षेत्रों को परिभाषित करने के लिये गतिशील रुख की जरूरत: पीएमईएसी सदस्य

देश को ग्रामीण, शहरी क्षेत्रों को परिभाषित करने के लिये गतिशील रुख की जरूरत: पीएमईएसी सदस्य

:   Modified Date:  March 29, 2023 / 05:42 PM IST, Published Date : March 29, 2023/5:42 pm IST

नयी दिल्ली, 29 मार्च (भाषा) देश को गांवों और शहरी क्षेत्रों को परिभाषित करने के लिये अधिक गतिशील रुख अपनाने की जरूरत है। इसके लिये रात के समय बिजली की उपलब्धता जैसे प्रौद्योगिकी संकेतकों का उपयोग किया जा सकता है।

प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (ईएसी-पीएम) की सदस्य शमिका रवि ने ‘शहरी/ग्रामीण भारत क्या है’ शीर्षक से जारी अध्ययन पत्र में यह भी सुझाव दिया है कि सरकार को निर्धारित सीमा तक पहुंचने के बाद ग्रामीण से शहरी बस्ती में बदलाव को स्वत: करने के लिये उपयुक्त व्यवस्था स्थापित करने की आवश्यकता है।

अध्ययन पत्र में यह भी सुझाव दिया गया है कि सरकार को गांवों और शहरों के बीच विभाजन के आधार पर योजनाएं बनाने की मौजूदा व्यवस्था पर फिर से विचार करने की आवश्यकता है।

शमिका रवि ने कहा, ‘‘गांवों और शहरी क्षेत्रों को परिभाषित करने के लिये अधिक गतिशील रुख अपनाने की जरूरत है। इसके लिये रात के समय बिजली की उपलब्धता (नाइट टाइम लाइट इंटेसिटी) जैसे प्रौद्योगिकी संकेतकों का उपयोग किया जा सकता है।’’

दिसंबर, 2017 की स्थिति के अनुसार कोई भी ऐसी बस्ती जो शहरी श्रेणी में नहीं आती, उसे स्वत: ग्रामीण क्षेत्र मान लिया जाता है।

उन्होंने यह भी कहा, ‘‘सरकार को निर्धारित सीमा तक पहुंचने के बाद ग्रामीण से शहरी बस्ती में बदलाव को स्वत: करने के लिये उपयुक्त व्यवस्था स्थापित करने की आवश्यकता है।’’

उन्होंने कहा कि बस्तियों को ‘शहरी’ और ‘ग्रामीण’ के रूप में वर्गीकृत करने के मुद्दे का देश में महत्वपूर्ण नीतिगत प्रभाव है, क्योंकि इसी श्रेणी के आधार पर स्थानीय शासन ढांचा (पंचायत या शहरी स्थानीय निकाय) और सरकारी योजनाओं के तहत संसाधनों का आवंटन निर्धारित किया जाता है।

उन्होंने कहा कि नीति निर्माता अक्सर इस गलत धारणा पर काम करते हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबों की संख्या ज्यादा है और फलस्वरूप वे उन क्षेत्रों में सार्वजनिक वस्तुएं उपलब्ध कराने अधिक संसाधन खर्च करते हैं।

अध्ययन पत्र में कहा गया है कि इससे ग्रामीण क्षेत्रों को केंद्र और राज्य सरकारों की कई योजनाओं के तहत लाभ मिलता है। इसकी वजह यह मान्यता है कि ग्रामीण अर्थव्यवस्थाओं में कुशल व्यक्तियों और पूंजी की कमी है, वहां रहने वाले लोग स्वाभाविक रूप से गरीब हैं और उन्हें समर्थन देने की आवश्यकता है।

भाषा

रमण अजय

अजय

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)