सरकार खरीफ धान के 25 प्रतिशत रकबे को जलवायु-अनुकूल बीजों के दायरे में लाने का लक्ष्य
सरकार खरीफ धान के 25 प्रतिशत रकबे को जलवायु-अनुकूल बीजों के दायरे में लाने का लक्ष्य
नयी दिल्ली, 15 जुलाई (भाषा) जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न चुनौतियों से निपटने के लिए सरकार कुल खरीफ धान के 25 प्रतिशत रकबे को जलवायु-अनुकूल बीजों के दायरे में लाने का लक्ष्य लेकर चल रही है। कृषि मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने सोमवार को यह जानकारी दी।
यह कदम ऐसे समय उठाया गया है जब हाल के वर्षों में अनियमित वर्षा का रूख सामान्य बात हो गई है, जिससे देश में धान के उत्पादन के लिए खतरा पैदा हो गया है।
चीन के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा चावल उत्पादक भारत, खरीफ सत्र के दौरान 410 लाख हेक्टेयर से अधिक रकबे में धान की खेती करता है।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के 96वें स्थापना और प्रौद्योगिकी दिवस समारोह में आईसीएआर के महानिदेशक हिमांशु पाठक ने कहा, ‘‘हालांकि हमने गेहूं की खेती में जलवायु-अनुकूल बीजों का 75 प्रतिशत कवरेज हासिल कर लिया है, लेकिन धान में इसे अपनाने की गति अभी सीमित है।’’
पाठक ने खुलासा किया कि आईसीएआर ने सूखे प्रतिरोधी धान के बीज विकसित किए हैं। ये बीज 2023 खरीफ मौसम के दौरान कुल धान क्षेत्र के 16 प्रतिशत में बोए गए थे।
उन्होंने कहा, ‘‘चालू खरीफ मौसम के लिए, हमारा लक्ष्य इसे 25 प्रतिशत तक बढ़ाना है।’’
जलवायु-प्रतिरोधी बीजों के लिए जोर, एक महत्वपूर्ण समय पर आया है। शोध अध्ययनों से संकेत मिलता है कि जलवायु परिवर्तन मध्यम उत्सर्जन परिदृश्य के तहत भारत में चावल की पैदावार को तीन से पांच प्रतिशत तक कम कर सकता है, और उच्च उत्सर्जन के तहत वर्ष 2030 तक 31.3 प्रतिशत तक कम कर सकता है।
फसल वर्ष 2023-24 (जुलाई-जून) के लिए भारत का अनुमानित चावल उत्पादन 13.67 करोड़ टन है। शीर्ष चावल उत्पादक राज्यों में पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, पंजाब, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश शामिल हैं।
पाठक ने वर्ष 2023-24 में 11.29 करोड़ टन के रिकॉर्ड गेहूं उत्पादन का श्रेय मौसम संबंधी दिक्कतों के बावजूद जलवायु-प्रतिरोधी बीजों के व्यापक उपयोग को दिया।
सरकार अब धान की खेती में इस सफलता को दोहराने की उम्मीद कर रही है।
देशभर में मुख्य खरीफ (ग्रीष्म) फसल धान की बुवाई चल रही है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, जून में बुवाई शुरू होने के बाद से अब तक लगभग 60 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में धान की बुवाई हो चुकी है।
जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशील किस्मों को अपनाना, बढ़ती जलवायु अनिश्चितता के बीच भारत के चावल उत्पादन को सुरक्षित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
भाषा राजेश राजेश अजय
अजय

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