भारत को पश्चिम का प्रौद्योगिकी उपनिवेश नहीं बनना चाहिए: अमिताभ कांत

भारत को पश्चिम का प्रौद्योगिकी उपनिवेश नहीं बनना चाहिए: अमिताभ कांत

भारत को पश्चिम का प्रौद्योगिकी उपनिवेश नहीं बनना चाहिए: अमिताभ कांत
Modified Date: April 4, 2025 / 03:16 pm IST
Published Date: April 4, 2025 3:16 pm IST

(फाइल फोटो के साथ)

नयी दिल्ली, चार अप्रैल (भाषा) नीति आयोग के पूर्व मुख्य कार्यपालक अधिकारी (सीईओ) अमिताभ कांत ने शुक्रवार को कहा कि भारत को अपनी संप्रभुता बनाए रखनी चाहिए और पश्चिम का प्रौद्योगिकी उपनिवेश नहीं बनना चाहिए। उन्होंने तीव्र और किफायती तरीके से नवोन्मेष को गति देने की जरूरत बतायी।

‘स्टार्टअप महाकुंभ’ कार्यक्रम में कांत ने पश्चिमी मॉडल अपनाने के खिलाफ आगाह किया जिससे भारत की संस्कृति, पहचान और सभ्यता की ताकत को नुकसान हो सकता है।

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जी-20 शेरपा ने कहा, ‘‘भारत के लिए प्रौद्योगिकी की उन्नति में अपनी संप्रभुता बनाए रखना और आगे बढ़कर नेतृत्व करना बहुत महत्वपूर्ण है। हमें न तो पश्चिम का और न ही दुनिया के किसी अन्य देश का प्रौद्योगिकी उपनिवेश बनना चाहिए। हमें बहुत ही कम ऊर्जा खपत वाले, लागत प्रभावी तरीके से नवोन्मेष को गति देने की जरूरत है।

उन्होंने कहा कि देश को अपने स्वयं के ‘डेटा सेट’ के आधार पर मॉडल तैयार करना चाहिए और पश्चिम के अंतर्निहित पूर्वाग्रहों से मुक्त होना चाहिए।

कांत ने भारत की 22 भाषाओं और अनेक बोलियों के साथ बहुभाषी विविधता का जिक्र करते हुए ग्रामीण आबादी की प्रभावी ढंग से जरूरतों को पूरा करने के लिए कृत्रिम मेधा (एआई मॉडल) के बहुभाषी व बहुविध होने की आवश्यकता बतायी।

उन्होंने कहा कि एआई प्रभुत्व की दौड़ बहुत खुली है, उन्होंने भारतीय स्टार्टअप से सीमित हार्डवेयर कंप्यूटिंग शक्ति का इस्तेमाल करके ऊर्जा-कुशल एआई समाधानों पर ध्यान केंद्रित करने का आग्रह किया।

कांत ने ‘डीपसीक’ के ओपन-सोर्स इनोवेशन जैसे उदाहरणों का हवाला देते हुए कहा कि कैसे चुस्त दृष्टिकोण कम लागत पर महत्वपूर्ण सफलताएं हासिल कर सकते हैं।

उन्होंने इसके अलावा स्टार्टअप से ‘डीप टेक’, कृत्रिम मेधा, परिवहन, बैटरी भंडारण और ग्रीन हाइड्रोजन जैसे उभरते क्षेत्रों में बदलाव लाने और उनका दोहन करने का आग्रह किया।

भाषा निहारिका रमण

रमण

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