मौद्रिक नीति की अपनी सीमा है, प्रोत्साहन के राजकोषीय उपाय करने होंगे : एसबीआई इकनॉमिस्ट

मौद्रिक नीति की अपनी सीमा है, प्रोत्साहन के राजकोषीय उपाय करने होंगे : एसबीआई इकनॉमिस्ट

मौद्रिक नीति की अपनी सीमा है, प्रोत्साहन के राजकोषीय उपाय करने होंगे : एसबीआई इकनॉमिस्ट
Modified Date: November 29, 2022 / 08:30 pm IST
Published Date: September 14, 2020 1:15 pm IST

मुंबई, 14 सितंबर (भाषा) भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने कहा है कि देश को एक ‘सक्रिय’ राजकोषीय नीति अपनानी चाहिए और अर्थव्यवस्था के पुनरोद्धार के लिए सिर्फ मौद्रिक उपायों पर निर्भर नहीं रहना चाहिए।

एसबीआई के अर्थशास्त्रियों ने एक फॉर्मूले का इस्तेमाल कर ब्याज दरों के एक ‘निचले परिबंध’ (लोअर बाउंड) का आकलन किया है। ब्याज दरों के इस परिबंध या सीमा से नीचे रहने से दरों में कटौती का लाभ होने के विपरीत हानि होने लगती है।

एसबीआई के अनुसार भारत में निचली सीमा 3.5 प्रतिशत है जबकि भारतीय रिजर्व बैंक की रेपो दर चार प्रतिशत है।

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कोरोना वायरस महामारी शुरू होने के बाद रिजर्व बैंक नीतिगत दरों में कुल 1.15 प्रतिशत की कटौती कर चुका है। लेकिन पिछली मौद्रिक समीक्षा में मुद्रास्फीति ऊंची रहने की वजह से केंद्रीय बैंक ने रेपो दर को यथावत रखा था।

सरकार ने अर्थव्यवस्था की मदद के लिए प्रोत्साहन पैकेज के तहत सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का दो प्रतिशत से कम का अतिरिक्त खर्च करने का वादा किया है। यह दुनिया के अन्य देशों द्वारा किए गए खर्च से काफी कम होगा।

एसबीआई इकनॉमिस्ट ने एक नोट में कहा, ‘‘हमारा मानना है कि ब्याज दरों में और कटौती से भारतीय अर्थव्यवस्था पर अवांछित असर पड़ेगा। इसके बजाय हम एक ‘सेक्रिय’ राजकोषीय नीति की सिफारिश करते हैं।’’ नोट में कहा गया है कि राजकोषीय खर्च बढ़ाना जरूरी है।

एसबीआई के अर्थशास्त्रियों ने कहा है कि मौजूदा महामारी के दौर में वित्तीय प्रोत्साहन सबसे प्रभावी समाधान है। भारत को भी अन्य देशों की तरह तत्काल वित्तीय प्रोत्साहन देना चाहिए।

नोट में कहा गया है कि विभिन्न देश बजटीय उपायों के जरिये बड़े आकार का वित्तीय समर्थन दे रहे हैं। अमेरिका और यूरोप की सरकारों ने बजट से बाहर नकदी समर्थन दिया है, जिससे संकट में फंसी कंपनियों और उनके कर्मचारियों को लॉकडाउन के दौरान राहत मिल पाई है।

भाषा अजय अजय मनोहर

मनोहर


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