पीएफआरडीए राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली के तहत वित्त वर्ष के अंत तक ला सकता है गारंटीशुदा उत्पाद

पीएफआरडीए राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली के तहत वित्त वर्ष के अंत तक ला सकता है गारंटीशुदा उत्पाद

पीएफआरडीए राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली के तहत वित्त वर्ष के अंत तक ला सकता है गारंटीशुदा उत्पाद
Modified Date: November 29, 2022 / 08:40 pm IST
Published Date: October 15, 2020 2:04 pm IST

नयी दिल्ली, 15 अक्टूबर (भाषा) पेंशन कोष नियामक एवं विकास प्राधिकरण (पीएफआरडीए) ने बृहस्पतिवार को कहा कि वह चालू वित्त वर्ष के अंत तक राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (एनपीएस) के तहत सुनिश्चित प्रतिफल वाले उत्पाद को अंतिम रूप दे सकता है।

पीएफआरडीए के चेयरमैन सुप्रतिम बंदोपाध्याय ने कहा कि न्यूनतम गारंटीशुदा रिटर्न वाले उत्पाद को लेकर पिछले साल बातचीत हुई थी।

एनपीएस बाजार से जुड़ा उत्पाद है और इसने पिछले 10 साल में लगभग 10 प्रतिशत प्रतिफल दिया है।

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उन्होंने संवाददाता सम्मेलन में कहा कि बीमा क्षेत्र में जो भी गारंटी वाले उत्पाद थे, उन्हें धीरे-धीरे वापस ले लिया गया। क्योंकि यह महसूस किया गया कि लंबी अवधि तक इसे बनाये रखना संगठनों के लिये व्यवहारिक नहीं है।

बंदोपाध्याय ने कहा, ‘‘गारंटीशुदा उत्पाद की पेशकश हमारे कानून का हिस्सा है। हमें यह करना है। जैसे ही आप गारंटी वाला उत्पाद देते हैं, कोष प्रबंधकों के लिये पूंजी पर्याप्तता जरूरत बढ़ जाती है। फिलहाल हम जो कर रहे हैं, उसमें उत्पाद ‘मार्क टू मार्केट’ (बाजार मूल्य पर संपत्ति की कीमत तय करने की प्रक्रिया) आधार पर है। हम निवेश को लेकर कोई जोखिम नहीं ले रहे।’’

उन्होंने कहा कि नियामक जल्दी ही एक समिति गठित करेगा। ‘‘हम इस वित्त वर्ष में उत्पाद तैयार करेंगे और उसे निदेशक मंडल के समक्ष रखेंगे। अगले छह महीने में आपको ऐसे उत्पाद देखने को मिल सकता है लेकिन उसे पेश करने में देरी हो सकती है।’’

इसके अलावा नियामक एक सार्वभौमिक पेंशन योजना पर भी विचार कर रहा है।

बंदोपाध्याय ने कहा, ‘‘हमने सार्वभौमिक पेंशन के बारे में ब्योरा रखा (वित्त मंत्रालय के समक्ष) है… वास्तव में हम यह कोशिश कर रहे हैं कि बड़ी संख्या में लोग पेंशन के दायरे में आयें जो अभी नहीं हो रहा। खासकर छोटे कारोबारियों और असंगठित क्षेत्र के लिये यह जरूरी है, जहां 20 से कम लोग काम करते हैं।’’

उन्होंने कहा, ‘‘हम देख रहे हैं कि क्या हम उन्हें एनपीएस या अटल पेंशन योजना (एपीवाई) के दायरे में ला सकते हैं।’’

भाषा

रमण महाबीर

महाबीर


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