विदेशी बाजार में गिरावट से ज्यादातर तेल-तिलहनों के भाव टूटे

विदेशी बाजार में गिरावट से ज्यादातर तेल-तिलहनों के भाव टूटे

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  • Publish Date - June 5, 2023 / 08:15 PM IST,
    Updated On - June 5, 2023 / 08:15 PM IST

नयी दिल्ली, पांच जून (भाषा) विदेशों में मंदी के रुख के बीच सोमवार को दिल्ली तेल-तिलहन बाजार में अधिकांश तेल-तिलहनों के भाव में गिरावट देखने को मिली। दूसरी ओर साधारण कारोबार और मलेशिया एक्सचेंज के बंद होने के बीच सोयाबीन तेल, कच्चे पामतेल (सीपीओ) एवं पामोलीन तेल कीमतें पूर्वस्तर पर बंद हुईं।

मलेशिया एक्सचेंज आज बंद रहा, जबकि शिकॉगो एक्सचेंज में गिरावट है।

सूत्रों ने कहा कि सरकार को यह देखना चाहिये कि जब शुल्कमुक्त आयातित सूरजमुखी तेल बंदरगाह पर 64-65 रुपये लीटर के भाव मिल रहा हो, तो ऐसे में 125-135 रुपये लीटर के भाव बैठने वाले देशी खाद्य तेल (सरसों, सूरजमुखी) कौन खरीदने को तैयार होगा। क्या सरकार को खाद्य तेल की महंगाई की ही चिंता करनी चाहिये या उन देशी तेल पेराई मिलों, तिलहन किसानों और उपभोक्ताओं के बारे में भी सोचना चाहिए, जो आयातित तेलों की भरमार के कारण संकट में हैं।

उन्होंने कहा कि तिलहन किसान इसलिए परेशान हैं कि सस्ते आयातित तेलों की भरमार के कारण उनके तिलहन न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को ध्यान में रखते हुए बेपड़ता बैठते हैं। साथ ही महंगा होने की वजह से कौन पेराई की लागत उठाना चाहेगा जब उससे काफी सस्ते दाम पर सूरजमुखी और सोयाबीन जैसे तेल उपलब्ध हों। तेल पेराई मिलें इसलिए संकट में हैं कि देशी तेल की पेराई उन्हें महंगी बैठती है और सस्ते आयातित तेलों की भरमार के कारण बाजार में देशी खाद्य तेल के कोई लिवाल नहीं मिलते।

सूत्रों ने कहा कि अगर सरकार सोचती है कि इससे कम से कम उपभोक्ताओं को खाद्य तेल सस्ता मिलेगा और उन्हें राहत मिलेगी तो ऐसा भी नहीं हो रहा है। अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) को लेकर तेल संगठनों के साथ कई बार बैठकें होने के बावजूद अभी तक इसका कोई न्यायोचित परिणाम नहीं दिख रहा है।

सूत्रों ने दावा किया कि अब भी उपभोक्ता ऊंचे दाम पर खाद्य तेल खरीदने को मजबूर हैं क्योंकि एमआरपी इतना अधिक है कि उसमें मामूली कटौती से खुदरा तेल की महंगाई पर कोई विशेष असर नहीं आने वाला है।

सूत्रों ने कहा कि खाद्य तेल संगठन अपनी जिम्मेदारी निभाने में विफल रहे हैं। आखिर इतने सेमिनार और विचार-विमर्श का तेल उद्योग को क्या फायदा मिला है? इसके उलट तेल उद्योग किसान मुश्किलों में घिरे हैं। यह तो तेल संगठनों का दायित्व था कि वे समय रहते सरकार को देशी तेल-तिलहनों, किसानों और तेल मिलों के हित के लिए सरकार को सस्ते आयात पर अंकुश लगाने को कहते।

सूत्रों ने आशंका जताई कि कुछ बहुराष्ट्रीय कंपनियों की देश के तेल- तिलहन उद्योग को नष्ट कर देश को पूरी तरह आयात पर निर्भर बनाने की मंशा हो सकती है और इस पहलू पर गहराई से नजर रखने की जरूरत है।

सोमवार को तेल-तिलहनों के भाव इस प्रकार रहे:

सरसों तिलहन – 4,765-4,865 (42 प्रतिशत कंडीशन का भाव) रुपये प्रति क्विंटल।

मूंगफली – 6,195-6,255 रुपये प्रति क्विंटल।

मूंगफली तेल मिल डिलिवरी (गुजरात) – 15,490 रुपये प्रति क्विंटल।

मूंगफली रिफाइंड तेल 2,330-2,595 रुपये प्रति टिन।

सरसों तेल दादरी- 9,130 रुपये प्रति क्विंटल।

सरसों पक्की घानी- 1,555-1,635 रुपये प्रति टिन।

सरसों कच्ची घानी- 1,555-1,665 रुपये प्रति टिन।

तिल तेल मिल डिलिवरी – 18,900-21,000 रुपये प्रति क्विंटल।

सोयाबीन तेल मिल डिलिवरी दिल्ली- 9,500 रुपये प्रति क्विंटल।

सोयाबीन मिल डिलिवरी इंदौर- 9,100 रुपये प्रति क्विंटल।

सोयाबीन तेल डीगम, कांडला- 7,800 रुपये प्रति क्विंटल।

सीपीओ एक्स-कांडला- 7,850 रुपये प्रति क्विंटल।

बिनौला मिल डिलिवरी (हरियाणा)- 8,150 रुपये प्रति क्विंटल।

पामोलिन आरबीडी, दिल्ली- 9,200 रुपये प्रति क्विंटल।

पामोलिन एक्स- कांडला- 8,400 रुपये (बिना जीएसटी के) प्रति क्विंटल।

सोयाबीन दाना – 5,050-5,125 रुपये प्रति क्विंटल।

सोयाबीन लूज- 4,825-4,900 रुपये प्रति क्विंटल।

मक्का खल (सरिस्का)- 4,010 रुपये प्रति क्विंटल।

भाषा राजेश राजेश अजय

अजय