सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ने सरकार से नारियल तेल के आयात की अनुमति देने का आग्रह किया

सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ने सरकार से नारियल तेल के आयात की अनुमति देने का आग्रह किया

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  • Publish Date - July 11, 2025 / 07:36 PM IST,
    Updated On - July 11, 2025 / 07:36 PM IST

नयी दिल्ली, 11 जुलाई (भाषा) सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन (एसईए) ने शुक्रवार को सरकार से घरेलू कीमतों में उतार-चढ़ाव से निपटने के लिए नारियल तेल और खोपरा के अल्पकालिक आयात की अनुमति देने का आग्रह किया। पिछले एक साल में नारियल तेल की कीमतें तीन गुना बढ़ गई हैं, इसको देखते हुए उद्योग संगठन ने यह अनुरोध किया है।

एसईए ने कहा कि सरकार मौजूदा संकट से निपटने और नारियल तेल में उपभोक्ताओं की रुचि बनाए रखने के लिए छह से 12 महीने की अंतरिम अवधि के लिए आयात की अनुमति देकर तत्काल कार्रवाई करे।

उद्योग संगठन ने संबंधित मंत्रालयों को दिए एक ज्ञापन में कहा, ‘‘हम सरकार से अंतरिम अवधि के लिए खोपरा और नारियल तेल के आयात की अनुमति देकर इस स्थिति से निपटने के लिए तत्काल कार्रवाई करने का अनुरोध करते हैं।’’

नारियल तेल की कीमत बढ़कर थोक स्तर पर 400 रुपये प्रति किलोग्राम से अधिक हो गई हैं, जो एक साल पहले लगभग 130 रुपये प्रति किलोग्राम थी। इससे उपभोक्ताओं को पाम और सूरजमुखी जैसे वैकल्पिक तेलों की ओर रुख करने के लिए बाध्य किया जा रहा है।

एसोसिएशन ने कहा कि कीटों के हमलों के कारण भारत का नारियल उत्पादन पिछले दो वर्षों से दबाव में है, जिसके परिणामस्वरूप पैदावार में 40 प्रतिशत की गिरावट आई है।

एसईए ने आगाह करते हुए कहा, ‘‘नारियल तेल की यह मांग स्थायी रूप से बदल सकती है।’’ नारियल तेल से उपभोक्ताओं का दूर जाना अन्य खाद्य तेलों की कीमतों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है और आयात पर निर्भरता बढ़ा सकता है।

संगठन ने कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान, वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल और खाद्य एवं उपभोक्ता मामलों के मंत्री प्रह्लाद जोशी के समक्ष अपनी चिंताओं को रखा।

एसईए ने कहा कि इस उपाय से किसानों पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा, बल्कि इससे कीमतें स्थिर होंगी और उन्हें दीर्घकालिक रूप से समर्थन मिलेगा। इसने कहा कि शुल्कों के साथ आयातित तेल की कीमत अभी भी घरेलू कीमतों के बराबर ही रहेगी, लेकिन उपलब्धता बढ़ने से आपूर्ति का दबाव कम होगा।

उद्योग संगठन ने कहा, ‘‘जब उपभोक्ता किसी विशेष तेल से पीछा छुड़ा लेते हैं, तो उसकी मांग को वापस लाना कठिन हो जाता है, और अतीत में मूंगफली तेल जैसे अन्य देशी तेलों के मामले में भी ऐसा देखा गया है।’’

भाषा राजेश राजेश रमण

रमण