एसआईएस समूह के सफर को दर्शाने वाली किताब में नोटबंदी के बाद की चुनौतियों पर चर्चा

एसआईएस समूह के सफर को दर्शाने वाली किताब में नोटबंदी के बाद की चुनौतियों पर चर्चा

एसआईएस समूह के सफर को दर्शाने वाली किताब में नोटबंदी के बाद की चुनौतियों पर चर्चा
Modified Date: November 8, 2025 / 06:56 pm IST
Published Date: November 8, 2025 6:56 pm IST

नयी दिल्ली, आठ नवंबर (भाषा) निजी सुरक्षा फर्म एसआईएस (सिक्योरिटी एंड इंटेलिजेंस सर्विसेज) के कारोबार के विस्तार पर केंद्रित एक किताब में नोटबंदी के बाद की चुनौतियों के बारे में बताया गया है।

लेखक प्रिंस मैथ्यू थॉमस की किताब ‘द एसआईएस स्टोरी: हाउ एन एक्सीडेंटल एंटरप्रेन्योर फ्रॉम बिहार क्रिएटेड अ ग्लोबल सर्विसेज कॉन्ग्लोमेरेट’ में एसआईएस समूह द्वारा सुरक्षा, सुविधा प्रबंधन और नकदी आवाजाही जैसे विभिन्न क्षेत्रों में आगे बढ़ने और नोटबंदी के बाद की चुनौतियों के बारे में बताया गया है। इन चुनौतियों में पुराने नोटों को एटीएम से बैंकों तक पहुंचाना और फिर इन मशीनों में नए नोटों डालना तथा मशीन के कैसेट को नये नोटों के अनुरूप बनाना शामिल है।

वर्ष 1973 में समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण से प्रेरित होकर 250 रुपये के मामूली वेतन पर काम करने वाले पत्रकार रवींद्र किशोर सिन्हा ने अपनी नौकरी छोड़ दी और पूर्व सैनिकों को निजी सुरक्षाकर्मी के रूप में रोजगार दिलाने के लिए एक निजी सुरक्षा फर्म एसआईएस (सिक्योरिटी एंड इंटेलिजेंस सर्विसेज) की स्थापना की।

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आज एसआईएस कई अरब डॉलर का समूह है और यह भारत के शीर्ष 10 निजी नियोक्ताओं में शुमार है, जिसके तीन लाख से ज्यादा कर्मचारी हैं। इसके पास सुरक्षा, सुविधा प्रबंधन तथा नकद आवाजाही सहित विभिन्न क्षेत्रों में 22,000 से ज्यादा ग्राहक हैं।

जब 2016 में नोटबंदी की घोषणा हुई, तब ऋतुराज ने सरकार को नोट पुराने नोटों को वापस लेने में उद्योग की भूमिका के बारे में बताया। सरकार और केंद्रीय बैंक ने ऋतुराज के सुझावों को स्वीकार किया।

उस समय, एसआईएस लगभग 15,000 एटीएम का प्रबंधन करता था और उसके पास लगभग 3,000 कैश वैन का बेड़ा भी था। इसबीच बैंकों ने इन नोटों को स्वीकार करने से इनकार कर दिया क्योंकि उनके पास आने वाले हजारों बंडलों को रखने के लिए जगह नहीं थी। किताब के मुताबिक, ”ऐसे में एसआईएस ने इन नोटों को देश भर में अपनी तिजोरियों में रखने का फैसला किया।”

बड़े नोट बंद होने से एटीएम कैसेट पल भर में खाली हो रहे थे। तभी सरकार ने प्रतिदिन निकासी की सीमा 2,000 रुपये तय कर दी। दो हजार और पांच सौ के नये नोट का आकार पुराने नोटों से अलग था। इसलिए सभी एटीएम के कैसेट को बदलने की जरूरत थी। यह काम एसआईएस के गार्ड और अन्य कर्मचारी नहीं कर सकते थे। इसके लिए इंजीनियरों की जरूरत थी। इससे जटिलता और बढ़ गई।

किताब में कहा गया है कि इन चुनौतियों के बावजूद एसआईएस ने अपने अनुबंध के 96 प्रतिशत एटीएम को 10 दिनों के भीतर नये नोटों के लिए तैयार कर दिया।

भाषा पाण्डेय

पाण्डेय


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