पर्यावरण विशेष: साल के जंगली पेड़ों की नर्सरी बनाने में हासिल की सफलता, RRVUVNL और अदाणी एंटरप्राइजेज के बागवानी विभाग की बड़ी उपलब्धि

creating nursery of wild Sal trees: राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड की कोयला मंत्रालय से लगातार चार साल से पुरस्कृत पाँच सितारा खदान परसा ईस्ट कांता बासन (पीईकेबी) खदान ने वृक्षारोपण में एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है।

पर्यावरण विशेष: साल के जंगली पेड़ों की नर्सरी बनाने में हासिल की सफलता, RRVUVNL और अदाणी एंटरप्राइजेज के बागवानी विभाग की बड़ी उपलब्धि

Success achieved in creating nursery of wild Sal trees

Modified Date: June 12, 2024 / 07:05 pm IST
Published Date: June 12, 2024 7:04 pm IST

अंबिकापुर, 12 जून, 2024: हमेशा से यह कहा जाता रहा है कि साल एक जंगली वृक्ष है, जो घने जंगलों में अपने आप ही उग जाता है। इसे अन्य जगहों पर नहीं उगाया जा सकता है। लेकिन इन भ्रांतियों को अब झूठा साबित किया जा चुका है। जी हाँ और इसे साबित किया है राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड (आरआरवीयूएनएल) के एमडीओ अदाणी इंटरप्राइजेज लिमिटेड के बागवानी विभाग के अधिकारी और कर्मचारियों ने, जिन्होंने न सिर्फ साल के पौधों की नर्सरी तैयार की, बल्कि इन्हें माइंस के रिक्लेमेशन एरिया में उगाकर एक नए जंगल को तैयार करने में बड़ी सफलता हासिल की है, जिसमें पिछले 10 वर्षों से अब तक 87 हजार से ज्यादा साल के पौधों को मिश्रित प्लांटेशन के रूप में रोपित किया जा चुका है, जो समयानुसार लगभग 20 से 30 फुट ऊँचाई के वृक्ष बन चुके हैं।

बागवानी विभाग से बातचीत करके पता लगा कि आरआरवीयूएनएल की खदान परसा ईस्ट केते बासेन खुली खदान परियोजना सरगुजा जिले के उदयपुर तहसील में है। इसके खनन का कार्य वर्ष 2012 में शुरू किया गया था। इसके लिए वन विभाग द्वारा जंगलों में वर्ष वार लक्ष्यों के अनुसार कुछ पेड़ों का विदोहन किया जाता है। जंगल में कई तरह के वृक्ष जैसे साल, महुआ, खैर, बरगद, बीजा, हर्रा, बहेरा इत्यादि प्रजाति के वृक्ष शामिल हैं, जिनमें से साल का वृक्ष एक ऐसा वृक्ष है, जो सिर्फ जंगलों में ही उगता है और इसकी लकड़ी में कभी घुन नहीं लगता है। इसके बारे में एक कहावत यह भी है कि साल का वृक्ष 100 साल खड़ा और 100 साल पड़ा अर्थात 100 सालों तक पेड़ के रूप में और 100 सालों तक लकड़ी के रुप में सुरक्षित रहता है।

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यह उल्लेखनीय है कि राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड की कोयला मंत्रालय से लगातार चार साल से पुरस्कृत पाँच सितारा खदान परसा ईस्ट कांता बासन (पीईकेबी) खदान ने वृक्षारोपण में एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है। पीईकेबी खदान के रेकलैम्ड क्षेत्र में अक्टूबर 2023 तक 90 प्रतिशत से अधिक सफलता की दर के साथ में 11.50 लाख से अधिक पेड़ लगाए गए हैं। यह भारत के खनन उद्योग में अब तक का सबसे बड़ा वृक्षारोपण अभियान है। इसके अलावा, पीईकेबी खदान ने वन विभाग के मार्गदर्शन में वर्ष 2023-24 में इस अभियान के तहत 2.10 लाख से अधिक पेड़ लगाए हैं।

इस प्रकार, इसने बीते 10 वर्षों की तुलना में कई गुना ज्यादा पेड़ लगाने का नया कीर्तिमान रचा है, जिसमें मुख्य तौर पर साल के वृक्षों का रिजनरेशन जो कि बहुत ही मुश्किल प्रक्रिया है, में भी अभूतपूर्व सफलता हासिल कर लगभग 1100 एकड़ से ज्यादा भूमि को साल और अन्य वृक्षों का रोपण कर एक नया घना और मिश्रित जंगल तैयार किया है। इसके अलावा, जर्मनी से आयातित एक खास ट्रांसप्लांटर मशीन द्वारा 60 इंच से कम मोटाई वाले करीब 10 हजार पेड़ों को भी जंगलों से स्थानांतरित कर इसी जगह पुनर्रोपण किया गया है। जिसमें से 7000 हजार से अधिक साल वृक्षों का ही पुनर्रोपण शामिल है।

इस वर्ष में राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम दो लाख से भी ज्यादा विविध प्रकार के पेड़ लगाकर अपने उत्साही प्रदर्शन को कायम रखेगा।

साल के वृक्ष दोबारा न उगने की मान्यता को बदला

कुछ बड़े विश्वविद्यालयों के बागवानी विभाग के प्रोफेसर्स के साथ मिलकर इसके बीजों के उत्पत्ति और रिजनरेशन के बारे में कई दिनों तक नियमित रूप से अध्ययन के पश्चात् यह पता चला कि साल के वृक्षों में बीजों का रिजेनरेशन मई-जून के महीने में शुरु हो जाता है। बारिश होने पर ये बीज जमीन में झड़ जाते हैं और स्वतः ही गीले मिट्टी में मिलकर रिजनरेट होना शुरू हो जाते हैं। कंपनी ने स्थानीय लोगों के साथ मिलकर जंगलों में जाकर इन बीजों को इकट्ठा करना शुरू किया और इन्हें अपने नर्सरी में उपचार कर पौधे बनाना शुरू किया। यह कड़ी मेहनत रंग लाई, जब सबने देखा कि इन बीजों से अब पौधों का आना शुरू होने लगा है।

साल सहित कुल 43 तरह की प्रजातियों, जैसे- खैर, बीजा, हर्रा, बहेरा, बरगद, सागौन, महुआ के साथ-साथ कई फलदार वृक्ष, जैसे- आम, अमरूद, कटहल, पपीता इत्यादि के पौधों को तैयार किया गया है। नर्सरी में विकसित इन पौधों का रोपण कर हर एक पौधों को ड्रिप इरिगेशन के माध्यम से पानी देकर बड़ा किया जाता है, जो अब एक पूर्ण विकसित जंगल का रुप लेता जा रहा है।

इस तरह इस क्षेत्र की जैव विविधता अब वापस लौटने लगी है। इस जंगल में अब कई तरह के पक्षी अपना घोंसला बनाकार रहने लगे हैं। वहीं, जंगली जानवरों में अभी हाल ही में भालू और बंदरों को भी देखा गया है। अब इस जंगल को देखने के लिए अब आमजनों को भी आमंत्रित किया जा रहा है।

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लेखक के बारे में

डॉ.अनिल शुक्ला, 2019 से CG-MP के प्रतिष्ठित न्यूज चैनल IBC24 के डिजिटल ​डिपार्टमेंट में Senior Associate Producer हैं। 2024 में महात्मा गांधी ग्रामोदय विश्वविद्यालय से Journalism and Mass Communication विषय में Ph.D अवॉर्ड हो चुके हैं। महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा से M.Phil और कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय, रायपुर से M.sc (EM) में पोस्ट ग्रेजुएशन किया। जहां प्रावीण्य सूची में प्रथम आने के लिए तिब्बती धर्मगुरू दलाई लामा के हाथों गोल्ड मेडल प्राप्त किया। इन्होंने गुरूघासीदास विश्वविद्यालय बिलासपुर से हिंदी साहित्य में एम.ए किया। इनके अलावा PGDJMC और PGDRD एक वर्षीय डिप्लोमा कोर्स भी किया। डॉ.अनिल शुक्ला ने मीडिया एवं जनसंचार से संबंधित दर्जन भर से अधिक कार्यशाला, सेमीनार, मीडिया संगो​ष्ठी में सहभागिता की। इनके तमाम प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं में लेख और शोध पत्र प्रकाशित हैं। डॉ.अनिल शुक्ला को रिपोर्टर, एंकर और कंटेट राइटर के बतौर मीडिया के क्षेत्र में काम करने का 15 वर्ष से अधिक का अनुभव है। इस पर मेल आईडी पर संपर्क करें anilshuklamedia@gmail.com