Publish Date - May 30, 2025 / 03:45 PM IST,
Updated On - May 30, 2025 / 03:45 PM IST
Janjgir Champa News | Image Source | IBC24
HIGHLIGHTS
जांजगीर-चाम्पा में बेटियों ने निभाया फर्ज,
मां की अर्थी को दिया कंधा और किया अंतिम संस्कार,
सभी विधियों को पूरी श्रद्धा और सम्मान के साथ निभाया,
जांजगीर-चाम्पा: Janjgir Champa News: समाज में बेटियों को लेकर बनी रूढ़ियों को तोड़ते हुए नवागढ़ क्षेत्र के केरा गांव में चार बेटियों ने एक मिसाल पेश की है। बुजुर्ग मां जमुना मनहर के निधन के बाद उनकी बेटियों ने न सिर्फ मां की अर्थी को कंधा दिया बल्कि पूरे रीति-रिवाज के साथ अंतिम संस्कार की सभी विधियां भी संपन्न कीं।
Janjgir Champa News: केरा गांव निवासी जमुना मनहर के चार बेटियां और दो बेटे हैं। आम धारणा के विपरीत जमुना देवी अपने बेटों के साथ न रहकर अपनी बेटियों के पास ही निवास करती थीं। बेटियों ने ही वर्षों तक उनकी देखभाल की इलाज करवाया और सेवा-सुश्रुषा में कोई कमी नहीं छोड़ी।
Janjgir Champa News: मां के निधन के बाद बेटियों ने यह निर्णय लिया कि वे ही अपनी मां की अंतिम यात्रा की जिम्मेदारी उठाएंगी। उन्होंने खुद एंबुलेंस को फूलों से सजाया, मां के शव को घर लाया और फिर परंपरा से हटते हुए मां की अर्थी को कंधा दिया। यही नहीं चारों बेटियों ने मिलकर अंतिम संस्कार की सभी विधियों को पूरी श्रद्धा और सम्मान के साथ निभाया।
"बेटियों द्वारा अंतिम संस्कार" क्या परंपरा के विरुद्ध है?
पारंपरिक रूप से अंतिम संस्कार की जिम्मेदारी बेटों की मानी जाती रही है, लेकिन "बेटियों द्वारा अंतिम संस्कार" करना अब समाज में सामाजिक समानता की दिशा में एक स्वीकार्य पहल बनता जा रहा है।
क्या "बेटियां अर्थी को कंधा दे सकती हैं"?
हां, कानून या धर्म में कोई स्पष्ट निषेध नहीं है। यह पूरी तरह परिवार की इच्छा और सामाजिक सोच पर निर्भर करता है।
"जमुना मनहर के अंतिम संस्कार" में बेटियों ने क्या-क्या किया?
चारों बेटियों ने अर्थी को कंधा दिया, एंबुलेंस सजाई, शव को घर लाईं और पूरे धार्मिक रीति-रिवाजों से अंतिम संस्कार की सभी क्रियाएं संपन्न कीं।
क्या "बेटियों द्वारा अंतिम संस्कार" को समाज स्वीकार कर रहा है?
अब कई स्थानों पर समाज इसे स्वीकार कर रहा है और सराहना भी कर रहा है, खासकर जब बेटियां अपने माता-पिता की सेवा में आगे रहती हैं।
"बेटियों की भूमिका अंतिम संस्कार में" को कैसे देखा जाना चाहिए?
यह लैंगिक समानता और सामाजिक बदलाव की दिशा में एक सकारात्मक संकेत है जो यह दर्शाता है कि बेटियां भी हर जिम्मेदारी निभा सकती हैं।