पहलगाम हमला: आतंकवादियों ने छत्तीसगढ़ के व्यवसायी को बेटी के सामने ही मारी थी गोली |

पहलगाम हमला: आतंकवादियों ने छत्तीसगढ़ के व्यवसायी को बेटी के सामने ही मारी थी गोली

पहलगाम हमला: आतंकवादियों ने छत्तीसगढ़ के व्यवसायी को बेटी के सामने ही मारी थी गोली

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Modified Date: April 26, 2025 / 12:19 AM IST
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Published Date: April 26, 2025 12:19 am IST

रायपुर, 25 अप्रैल (भाषा) जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में आतंकवादियों ने छत्तीसगढ़ के व्यवसायी दिनेश मिरानिया को उनकी 13 साल की बेटी के सामने ही तब गोली मारी जब वह ‘कलमा’ पढ़ने में विफल रहे।

दिनेश मिरानिया रायपुर के रहने वाले थे। बेटे शौर्य मिरानिया (18) के मुताबिक जब उनके पिता और बहन बैसरन घाटी के मैदान में थे तभी आतंकवादी वहां पहुंचे। उन्होंने बताया कि आतंकवादियों ने उनके पिता से कलमा पढ़ने को कहा और जब वह ऐसा करने में विफल रहे तो उन्हें गोली मार दी गई।

शौर्य ने बताया कि ठीक ऐसा ही आतंकवादियों ने एक अन्य व्यक्ति के साथ किया। उन्होंने बताया कि इस दौरान कलमा पढ़ने में समर्थ एक व्यक्ति को जब आतंकवादियों ने छोड़ दिया तब उस व्यक्ति ने ही उनकी बहन की जान बचाई।

दिनेश मिरानिया की पत्नी नेहा और बेटे शौर्य ने मंगलवार को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले में परिवार के साथ हुई भयावहता को याद किया। नेहा ने उम्मीद जताई है कि सरकार उनके पति को शहीद का दर्जा देगी।

शौर्य ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘हम दोपहर में बैसरन घाटी के प्रसिद्ध घास के मैदान में थे और वहां से गुलमर्ग जाने की योजना थी। मेरी बहन ‘जिपलाइन’ की सवारी करना चाहती थी, इसलिए मैं उसे इसके शुरुआती बिंदु पर ले गया जो घास के मैदान के प्रवेश द्वार से बहुत दूर था। वहां वह डर गई और उसने यह कहते हुए मना कर दिया कि यह बहुत ऊंचा है।’’

उन्होंने बताया,‘‘ फिर उसने कहा कि मैं ‘ट्रैम्पोलिन’ का आनंद लेना चाहती हूं। मैंने उसे हमारे पिता के पास जाने के लिए कहा जो ट्रैम्पोलिन के पास खड़े थे और मैं खाने के काउंटर पर चला गया। मैंने उससे कहा कि हम कुछ खाने के बाद नीचे उतरेंगे।”

शौर्य ने बताया, ‘‘जब मैं काउंटर पर था तो मैंने पीछे से गोली चलने की आवाज सुनी लेकिन मैंने इस पर ध्यान नहीं दिया। फिर बगल में खड़े एक अंकल गोली लगने से गिर गए और उनके खून के छींटे मेरे चेहरे पर पड़े। इस दौरान किसी ने मुझे धक्का दिया और फिर मैं मेज के नीचे छिप गया। मैं रेंगता हुआ प्रवेश द्वार पर पहुंचा जहां टट्टू खड़े थे।’’

उन्होंने बताया, ‘‘मैं वहां इंतजार कर रहा था और अपने परिवार के सदस्यों को फोन करने की कोशिश कर रहा था। लेकिन फोन नहीं लग पा रहा था। कुछ देर बाद बहन से बात हुई तब उसने बताया कि पिताजी को गोली लगी है।’’

शौर्य ने बताया, ‘‘मेरी बहन ने मुझे बताया कि वह पिताजी के साथ थी, तभी एक बंदूकधारी वहां पहुंचा और उसने मेरे पिताजी से कलमा पढ़ने को कहा। मेरे पिताजी ऐसा नहीं कर सके। जैसे ही मेरे पिताजी ने अपनी टोपी और चश्मा निकाला, उन्हें आतंकवादियों ने गोली मार दी। मेरे पिताजी के पीछे खड़े एक अन्य व्यक्ति ने मेरी बहन को पकड़ लिया, लेकिन कलमा पढ़ने में विफल रहने पर उसे भी गोली मार दी गई। वहां मौजूद एक तीसरे व्यक्ति को आतंकवादियों ने इसलिए बख्श दिया, क्योंकि उसने कलमा पढ़ा था।’’

दिनेश की पत्नी नेहा मिरानिया ने बताया, ‘‘जिस व्यक्ति को आतंकवादियों ने कलमा पढ़ने के बाद बख्श दिया था, उसने ही मेरी बेटी और अन्य लोगों को वहां से बचाया और उन्हें नीचे लाया। उस व्यक्ति ने मेरी बेटी को कलमा की लाइन सिखायी और कहा कि बेटा अगर कोई पूछे तो यह कह देना।’’

नेहा ने कहा कि उनके पति पिछले 12 वर्षों से वैष्णो देवी जाना चाहते थे, लेकिन उन्हें कभी नहीं पता था कि यह यात्रा उनकी जिंदगी को तहस-नहस कर देगी।

उन्होंने कहा, ”मेरे पति पिछले 12 वर्षों से माता वैष्णो देवी के दर्शन करना चाहते थे। जम्मू में मेरे गुरुजी की कथा थी इसलिए हमने वहां जाने की योजना बनाई। वैष्णो देवी के दर्शन और गुरुजी की कथा में भाग लेने के बाद, हम 22 अप्रैल को पहलगाम पहुंचे और हमारी अगली यात्रा स्थल गुलमर्ग था।’’

नेहा मिरानिया ने बताया, ‘‘हमने दोपहर लगभग 1.30 बजे बैसरन छोड़ने की योजना बनाई थी, लेकिन चूंकि मेरी बेटी कुछ गतिविधियों में भाग लेना चाहती थी, इसलिए हम वहीं इंतजार करने लगे। दोपहर लगभग दो बजे जब मेरे पति और बेटी साथ थे तब मैं वहां से वॉशरूम चली गई। इस दौरान मेरा बेटा कहीं और था। मैंने वॉशरूम के अंदर से गोलियों की आवाज सुनी। जब मैं बाहर आई तब हर कोई इधर-उधर भाग रहा था। मुझे कुछ पता नहीं चल सका। हमने ऐसी चीजें फिल्मों और समाचारों में देखी हैं लेकिन हम समाचार नहीं बनना चाहते थे।”

उन्होंने बताया, ‘‘जब मैं वहां थी तब कुछ स्थानीय लोगों ने मुझे खींच लिया और वहां से भागने को कहा। स्थानीय लोगों ने मुझे अपने परिवार की तलाश के लिए पहाड़ी से नीचे जाने को कहा। मैंने शौचालय जाने से पहले अपना मोबाइल और पर्स अपने पति को दे दिया था। मैंने स्थानीय लोगों के फोन लिए और अपने बेटे और पति से संपर्क करने की कोशिश की। सौभाग्य से मेरी मेरे बेटे से बात हुई। उसने मुझे बताया कि वह नीचे आ गया है लेकिन उसके पिता और बहन उसके साथ नहीं हैं।’’

नेहा ने बताया, ‘‘इसके बाद मैं और बेटे अपने टैक्सी चालक के साथ पति और बेटी की तलाश शुरू की। शाम लगभग चार बजे मैंने अपनी बेटी को पहलगाम अस्पताल के बाहर पाया। उसके हाथ में चोट थे और उसके कपड़े खून से लथपथ थे। मेरी बेटी को वहां लगे बाड़ को पार करते समय चोटें आईं। उसने मुझे बताया कि पापा को गोली लगी है। बेटी से यह सुनते ही मैं बुरी तरह डर गई।’’

उन्होंने बताया,‘‘ मेरे पति को खून के थक्के की समस्या थी और वह खून को पतला करने के लिए दवाइयां लेते थे। मुझे डर था कि यदि उन्हें गोली लगी है तब उनके लिए यह परेशानी का कारण बन सकता है। पति को गोली लगने की जानकारी मिलने के बाद मैंने अस्पतालों में जांच की और अपने परिवार के सदस्यों को फोन पर घटना के बारे में सूचित किया।”

नेहा ने बताया, ”शाम लगभग 7.30 या आठ बजे मेरे बेटे को स्थानीय अधिकारियों का फोन आया। उसे मेरे पति की मौत की सूचना दी गई और हमें उनका शव मिला।”

नेहा ने कहा, ”हमले के बाद केंद्र और राज्य सरकार के मंत्री और अधिकारी वहां पहुंचे। अमित शाह जी भी आए। मेरे पति को एक शहीद की तरह विदाई दी गई। मुझे पूरी उम्मीद है कि सरकार मेरे पति को शहीद का दर्जा देगी, यह सम्मान मेरे पति को मिलेगा। मैंने जो खोना था खो दिया।”

भाषा संजीव

धीरज

धीरज

 

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