CG Congress Latest News: विनय-बृहस्पत सिंह की कांग्रेस में वापसी!.. लेकिन इन नेताओं के लिए बंद हो चुके है दरवाजें.. क्या हैं पायलट की मंशा?
Rebel leaders return to party in Chhattisgarh
रायपुर: पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से टिकट नहीं पाने वाले ज्यादातर नेताओं ने पाला बदलकर चुनाव लड़ा था। कई नेता भाजपा तो कई नेता जनता कांग्रेस में शामिल हो गए थे। हालाँकि कई नेता ऐसे भी थे जो पार्टी में रहकर ही पार्टी आलाकमान पर हमलावर बने हुए थे। इन्ही में दो सबसे बड़े नाम थे मनेन्द्रगढ़ के पूर्व विधायक विनय जायसवाल और रामानुजगंज के पूर्व एमएलए बृहस्पत सिंह। दोनों नेताओं ने नतीजों के बाद हमले तेज कर दिए थे। बृहस्पत सिंह जहां हार के लिए पूर्व डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव को, तो विनय जायसवाल पूर्व प्रदेश प्रभारी कुमारी सैलजा को जिम्मेदार ठहरा रहे थे। लगातार सार्वजनिक बयानबाजी के बाद दोनों को ही पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था, हालाँकि अब जो खबर आई हैं वह इन दोनों के लिए राहत देने वाली हैं।
मीडिया में छपी ख़बरों की माने तो दोनों निष्कासित नेताओं की कभी भी घर वापसी हो सकती हैं। पार्टी की तरफ से इस बात के संकेत दिए गये हैं कि लोकसभा चुनाव को देखते हुए दोनों नेताओं को पार्टी में फिर से शामिल किया जाएगा। सूत्रों के मुताबिक़ दोनों फिलहाल इस वापसी के औपचारिक ऐलान के पहले तक पार्टी के पक्ष में काम करते रहेंगे। हालांकि यह पता नहीं चला सका हैं कि क्या दोनों नेताओं की आपत्तियों को दूर कर लिया गया हैं? लेकिन यह तय हैं कि देर-सबेर दोनों फिर से पार्टी के लिए काम करते नजर आएंगे।
इनकी वापसी मुश्किल
मीडिया रिपोर्ट की मानें तो दोनों नेता चूंकि पार्टी से नाराज थे इसलिए इनकी वापिस तय हैं लेकिन वो नेता जिन्होंने बगावत कर किसी और दल से या निर्दलीय चुनाव लड़ा था उनके लिए फिलहाल पार्टी के दरवाजें बंद रहेगें। ऐसे नेताओं में जो प्रमुख नाम थे उनमें
गोरेलाल बर्मन, किस्मत लाल नंद, अनुप नाग, गोरेलाल साहू,अजीत कुकरेजा,सागर सिंह, अमूलकर नाग, शंकर नाग, लोकेश्वरी साहू, प्रदीप खेक्सा, महेन्द्र सिदार और मनोहर साहू शामिल थे। हालाँकि इनमें से कोई भी नेता जीत दर्ज नहीं कर पाया लेकिन इन्होने पार्टी उम्मीदवारों के जीत का समीकरण जरूर बिगाड़ा था।
पायलट चाहते हैं समन्वय
सूत्रों ने बताया कि नए पार्टी प्रभारी सचिन पायलट लोकसभा चुनाव के लिए अपने नेताओं के प्रति उदारवाद की नीति पर आगे बढ़ रहे हैं। वह चाहते हैं कि नेता विधानसभा के कड़वे अनुभवों को भूलकर अब लोकसभा के लिए कमर कस ले। फ़िलहाल कांग्रेस प्रदेश में जिस स्थिति में हैं, वह नहीं चाहते कि उन्हें भाजपा के अलावा भीतर की चुनौतियों से भी लड़ना पड़े। वह पार्टी के भीतर किसी तरह की गुटबाजी के पक्ष में भी नहीं हैं। चूंकि राहुल गांधी के करीबी होने की वजह से उन्हें प्रदेश की बड़ी जिम्मेदारी मिली हैं लिहाजा वह इस बार बेहतर परिणाम चाहते हैं। कमोबेश पिछले चुनावों से तो बेहतर ही। संभवतः इन्ही वजहों से एक बार फिर पार्टी से बाहर किये गये नाराज नेता घर वापसी कर सकते हैं।

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