हड़ताल की दहाड़..’एस्मा’ से खिलवाड़, हड़ताल से होने वाली परेशानी की जिम्मेदारी किसकी ?

हड़ताल की दहाड़..'एस्मा' से खिलवाड़ : The roar of the strike.. playing with 'ESMA', who is responsible for the problems caused by the strike?

हड़ताल की दहाड़..’एस्मा’ से खिलवाड़, हड़ताल से होने वाली परेशानी की जिम्मेदारी किसकी ?
Modified Date: July 27, 2023 / 11:34 pm IST
Published Date: July 27, 2023 11:34 pm IST

रायपुर । छत्तीसगढ़ में संविदा कर्मी हड़ताल पर हैं। चुनावी साल में नियमितीकरण की मांग पर जोर लगा रहे हैं। इनके प्रदर्शन में महिला हो या दिव्यांग कड़ी धूप हो बारिश। बीते 25 दिन से इनका पुरजोर प्रदर्शन जारी है। इनकी मांग है कि सरकार घोषणा पत्र में किया वादा पूरा करे। इधर इनकी हड़ताल से आम लोगों को जो परेशानी हो रही है।इसका जिम्मेदार कौन है। जो नुकसान हो रहा है। उसकी भरपाई कैसे होगी, एस्मा लगने के बावजूद वो बेअसर क्यों है। ये सवाल भी खड़े हो रहे हैं। इस मुद्दे पर सियासत भी गरमाई हुई है। अब भी संविदा कर्मचारियों की भर्ती होती है, भर्ती नियम में साफ साफ लिखा होता है कि उनकी सेवा अस्थायी तौर पर होगी. उन्हें नियमित नहीं किया जाएग।उन्हें सिर्फ एकमुश्त वेतन मिलेगा. पेंशन, ग्रेच्युटि जैसे लाभ नहीं दिए जाएंगे। संविदा कर्मचारियों की भर्ती होती ही इसीलिए है, क्योंकि सरकारी विभागों में उनकी जरुरत होती है। सरकारी योजनाओं को चलाने के लिए या फिर स्कूल, कॉलेज, अस्पताल, सरकारी विभाग चलाने के लिए उनकी जरुरत होती है।

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जब भर्ती होते वक्त पता है कि उन्हें नियमित नहीं किया जा सकता, तो फिर नियमितिकरण की मांग की आग लगती कहां से हैं। इसकी जिम्मेदार सरकार और राजनीतिक पार्टियां ही हैं. सबसे पहले जिम्मेदारी सरकार की। उदाहरण देखिए. शिक्षाकर्मियों की भर्ती इसी तरह संविदा पर शुरु हुई। सरकार खर्च बचाने के लिए बहुत कम वेतन पर लोग रखने शुरू किए. ना तो योग्यता परखी, ना कोई परीक्षा ली। बस अंक देखे और गांव के सरपंच, मुखिया ने शिक्षाकर्मियों की नियुक्ति कर दी। लेकिन जब इनकी संख्या सवा लाख तक पहुंच गई तो एकजुट होकर समान काम, समान वेतन की मांग करने लगे। सरकार के नाक में दम कर दिया।

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संख्या डेढ़ लाख परिवार तक हो गई तो राजनीतिक पार्टियों को वोट बैंक दिखने लगा. और बिना सोचे कि कम योग्यता वाले शिक्षाकर्मियों की भर्ती की तो शिक्षा पर क्या असर पड़ेगा, सबको एक तरफ से नियमित कर दिया गया। राजनीतिक पार्टियों की वोट लालसा ने इस आग को जन्म दिया। अभी संविदाकर्मचारियों के नियमितिकरण की जो आग लगी है, उसकी जड़ भी राजनीतिक पार्टियों के स्वार्थ में ही है। 2018 में कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में एक तरफ से सबके लिए वादा कर दिया कि, कि सरकार बनेगी तो सबको नियमित किया जाएगा।

 

 


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