Vishnu Ka Sushasan: सुशासन सरकार की युक्तियुक्तकरण नीति से मजबूत हो रही छत्तीसगढ़ की नींव, दूरस्थ अंचलों में पहुंची शिक्षा की नई रोशनी, अब प्रदेश में एक भी नहीं शिक्षक विहीन स्कूल

सुशासन सरकार की युक्तियुक्तकरण नीति से मजबूत हो रही छत्तीसगढ़ की नींव, The foundation of Chhattisgarh is getting strengthened by the rationalization policy of the good governance government

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  • Publish Date - August 16, 2025 / 06:22 PM IST,
    Updated On - August 17, 2025 / 12:08 AM IST

रायपुरः Vishnu Ka Sushasan:  शिक्षा मनुष्य के जीवन का एक अत्यंत आवश्यक हिस्सा है। यह सिर्फ ज्ञान अर्जित करने का माध्यम नहीं, बल्कि एक ऐसा साधन है जो व्यक्ति के भविष्य को उज्ज्वल बनाता है। विशेषकर बच्चों के लिए शिक्षा का महत्व और भी अधिक होता है क्योंकि वे देश का भविष्य हैं। यदि बचपन में ही उन्हें उचित शिक्षा मिले, तो वे न केवल अपने जीवन को बेहतर बना सकते हैं, बल्कि समाज और देश को भी प्रगति की ओर ले जा सकते हैं। इन बातों को ध्यान में रखकर छत्तीसगढ़ की साय सरकार प्रदेश के छात्रों को बेहतर शिक्षा उपलब्ध कराने का प्रयास कर रही है। साय सरकार के युक्तियुक्तकरण जैसे पहलों से न केवल शिक्षकविहीन स्कूलों में शिक्षकों की उपलब्धता सुनिश्चित हो पाई है, बल्कि बच्चों की उपस्थिति बढ़ी है।

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Vishnu Ka Sushasan:  दरअसल, छत्तीसगढ़ में विष्णुदेव साय के मुख्यमंत्री बनने के पहले कई स्कूल शिक्षिकविहीन थे। कई स्कूल ऐसे भी थे, जहां केवल एक शिक्षक ही पदस्थ थे। इतना ही नहीं कई स्कूलों में तो शिक्षक और छात्रों का अनुपात में विषमता भी थी। इससे छात्रों की पढ़ाई पर असर हो रहा था। शिक्षक नहीं होने से बच्चों की दर्ज संख्या कम हो रही थी। मुख्यमंत्री बनने के बाद विष्णुदेव साय ने बच्चों की गुणवत्ता शिक्षा पर जोर देते हुए संवेदनशील पहल की और प्रदेश युक्तियुक्तकरण जैसी नीति लाकर बच्चों के सपने को नया पंख दिया। मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय की महत्वकांक्षी युक्तियुक्तकरण नीति ने ग्रामीण अंचलों के स्कूलों में शिक्षा की तस्वीर बदल दी है। जिन स्कूलों में पहले शिक्षक की कमी से पढ़ाई प्रभावित होती थी, वहां अब नियमित और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुचारू रूप से संचालित हो रही है।

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कई स्कूलों में दिख रहे सकारात्मक बदलाव

पहले प्रदेश के कई स्कूलों में पांचवीं तक की कक्षाओं में पढ़ने वाले बच्चों को पर्याप्त शिक्षक नहीं मिलते थे। कई जगहों पर तो स्थिति यह थी कि एक मानदेय शिक्षक सभी विषय पढ़ाने की जिम्मेदारी निभा रहे थें, जिससे सभी कक्षाओं में समान रूप से पढ़ाई कराना संभव नहीं हो पाता था। लेकिन युक्तियुक्तकरण के तहत नए शिक्षकों की नियुक्ति होने के बाद हालात पूरी तरह बदल गए हैं। अब प्रत्येक कक्षा के लिए अलग-अलग शिक्षक उपलब्धता सुनिश्चित हो रही है और बच्चों को विषयवार पढ़ाई मिल रही है। इस पहल से स्कूलों में सकारात्मक बदलाव आए हैं। उच्च गुणवत्ता की पढ़ाई होने से कई प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थाओं में विद्यार्थी चयनित होकर अपना सुनहरा भविष्य गढ़ रहे हैं।

अब कोई स्कूल नहीं है शिक्षकविहीन

मुख्यमंत्री विष्णु देव साय की पहल पर लागू शाला-शिक्षक युक्तियुक्तकरण नीति ने प्रदेश के शिक्षा क्षेत्र में सकारात्मक बदलाव की नई इबारत लिखी है। इस नीति के तहत प्रदेशभर के शैक्षणिक संस्थानों में शिक्षकों का संतुलित वितरण सुनिश्चित किया गया है, जिससे अब कोई भी विद्यालय शिक्षक विहीन नहीं है और बच्चों को समान व गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का लाभ मिल रहा है। युक्तियुक्तकरण से पूर्व प्रदेश के कुल 453 विद्यालय शिक्षक विहीन थे। युक्तियुक्तकरण के पश्चात एक भी विद्यालय शिक्षक विहीन नहीं है। इसी प्रकार युक्तियुक्तकरण के बाद प्रदेश के 4,728 एकल-शिक्षकीय विद्यालयों में अतिरिक्त शिक्षकों की पदस्थापना की गई है। इस कदम से न केवल कक्षाओं का संचालन नियमित हुआ है, बल्कि बच्चों की उपस्थिति और पढ़ाई के प्रति उत्साह में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।

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पालकों में दिखा उत्साह

युक्तियुक्तकरण नीति के पूर्व सत्र में कई विद्यालय शिक्षक विहीन हो चुके थे। शिक्षक न होने की वजह से बच्चों की शिक्षा प्रभावित हो रही थी। बच्चों के भविष्य को लेकर पालक भी चिंतित नजर आ रहे थे। मुख्यमंत्री विष्णु देव साय की महत्वकांक्षी पहल युक्तियुक्तकरण ने ग्रामीणों की चिंता दूर कर दी है। साय सरकार की इस सार्थक प्रयास ने जिन विद्यालयों में लंबे समय से शिक्षक नहीं थे, उन सुदूर अंचलों में शिक्षा की रोशनी पहुंचाने का कार्य किया है। विद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति से बच्चों में पढ़ाई को लेकर उत्साह देखा जा रहा हैं। वहीं ग्रामीणों में खुशी देखी जा रही हैं, साथ ही पालकों में अपने बच्चों के भविष्य को लेकर जो चिंता थी वह दूर हो चुकी हैं। शिक्षकों की पदस्थापना से शिक्षा के प्रति बच्चों की रुचि बढ़ी है, वही शाला की उपस्थिति दर में सकारात्मक सुधार भी देखा जा रहा हैं।