अधिकारियों ने किया नजर अंदाज तो सुरक्षा जवान आए सामने, दो माह बाद बहाल हुआ जगरगुंडा मार्ग

अधिकारियों ने किया नजर अंदाज तो सुरक्षा जवान आए सामने, दो माह बाद बहाल हुआ जगरगुंडा मार्ग

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  • Publish Date - September 20, 2019 / 02:09 PM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:47 PM IST

दोरनापाल: प्रदेश के वनांचल क्षेत्र में तैनात जवानों और स्थानीय ग्रामीणों की मदद से जगरगुंडा मार्ग में यातायात एक बार फिर बहाल हो गया है। दरअसल दिनों नक्सलियों द्वारा क्षतिग्रस्त किए जाने के बाद इसी अवस्था में ग्रामीणों का आना जाना चालू रहा, लेकिन बीते​ दिनों इन इलाकों में हुई मूसलाधार बारिश के बाद यह पुल बह गया। इसके बाद ग्रामीणों का संपर्क जिला मुख्यालय से टूट गया था। पुल क्षतिग्रस्त होने की जानकारी ग्रामीणों ने विभागीय अधिकारियों को दी थी, लेकिन उन्होंने कोई ध्यान नहीं दिया। अंतत: जवानों की मदद से एक बार फिर आवागमन शुरू किया जा सका।

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दरअसल शासन के अथक प्रयासों के बाद जगरगुंडा जैसे टापू इलाके में रौनक आई थी। शासन के प्रयासों के बाद जगरगुंडा में स्कूलें खोली गई, आंगनबाड़ी और स्वास्थ्य केंद्रों का संचालन शुरू किया गया। इसके बाद यहां पीडीएस का राशन भी पहुंचने लगा। लेकिन ग्रामीणों की खुशियां ज्यादा दिन तक नहीं टिक पाई। नक्सलियों ने जगरगुंडा पहुंचने के लिए शासन द्वारा बनाए गए पुल को बम से उड़ा दिया। इसके बाद भी आवागमन चालु रहा, लेकिन इस साल हुई बारिश में पुल पुरी तरह बह गया।

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जब मौसम खुला तो इलाके मे तैनात जवानों ने अफसरो को इसकी जानकारी दी। अफ़सरों ने पुलिस हाउसिंग कारपोरेशन विभाग के दोरनापाल मुख्यालय से सम्पर्क किया, लेकिन किसी तरह की मदद नहीं मिली। इसकी एक वजह यह भी माना जा रहा है कि जिस विभाग को सड़क निर्माण का ज़िम्मा मिला है, उसके अधिकारी मुख्यालय से नदारद रहते हैं। जी हां दोरनापाल में बने पुलिस हाउसिंग कॉर्पोरेशन विभाग के मुख्यालय में कुछ इंजीनियर तो रहते हैें, लेकिन एग्जीक्यूटिव इंजीनियर यहां पंद्रह अगस्त जैसे लोकतंत्र के महापर्व पर भी मौजूद नहीं रहते।

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वहीं, जब विभागीय अधिकारियों ने पुल के निर्माण में ध्यान नहीं दिया, तो इलाके मे तैनात कोबरा 201 बटालियन एंव सीआरपीएफ की 223वी बटालियन के कमांडेट राकेश राव एंव रघुवंश कुमार सिंह ने मार्ग बहाल करने का जिम्मा उठाया और ​ग्रामीणों की मदद से पुल का निर्माण किया गया। डीआईजी योज्ञान सिंह सुकमा एंव करनपुर स्थित मुख्यालय छोड़ कमांडेट राकेश राव स्वयं चिंतलनार पहुंच गए और रघुवंश कुमार सिंह भी दिनभर इसपर नज़र बनाए हूए थे।

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गौरतलब है की इस मार्ग पर सुरक्षाबलों की तैनाती है यही वजह है कि नक्सल प्रभावित इस इलाके को बस्तर का सबसे संवेदनशील माना जाता रहा है। बावजूद इसके सड़क निर्माण का जिम्मा जिस विभाग को मिला है उसके अधिकारी मुख्यालय से नदारद रहते हैं।

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