किसानों का अनशन...हितों पर घमासान! क्या राजनैतिक दलों में किसानों का हमदर्द बनने की होड़ लगी है? | Hunger strike of farmers ... conflict on interests! Are political parties competing to become the sympathizers of the farmers?

किसानों का अनशन…हितों पर घमासान! क्या राजनैतिक दलों में किसानों का हमदर्द बनने की होड़ लगी है?

किसानों का अनशन...हितों पर घमासान! क्या राजनैतिक दलों में किसानों का हमदर्द बनने की होड़ लगी है?

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 09:00 PM IST, Published Date : December 14, 2020/5:31 pm IST

भोपाल: केंद्र सरकार के नए कृषि कानून के खिलाफ 19 दिन से किसान दिल्ली की सीमा पर डटे है। देश के कई शहरों में प्रदर्शन भी हो रहे हैं। मामला चूंकि देश के सबसे बड़े वोट बैंक किसान का है लिहाजा हर पार्टी उनकी पैरवी में जुटी है। अपने नेटवर्क के जरिए बीजेपी किसानों को नए कानून के फायदे गिना रही है, तो कांग्रेस लगातार किसानों के जरिए मोदी सरकार को घेर रही है। आप भूख हड़ताल कर रही है, तो कुछ सामाजिक संगठन धरने प्रदर्शन के जरिए किसानों के समर्थन दे रहे है। लेकिन इन सबके बीच बड़ा सवाल ये कि क्या राजनैतिक दलों मे किसानों का हमदर्द बनने की होड़ लगी है।

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दरअसल ये किसान आंदोलन की अलग-अलग तस्वीरें है जो बताती है कि सरकार की लाख कोशिशों के बावजूद आंदोलन कमजोर होने के बजाय अब फैलता ही जा रहा है। आंदोलन को खत्म करने के लिए अब केद्रीय मंत्री अमित शाह ने मोर्चा संभाल लिया है और बीजेपी भी अपने संगठन के जरिए किसानों की नाराजगी दूर करने की कोशिश में है। किसानों को मनाने के लिए बीजेपी पूरे देश में 700 प्रेस कांफ्रेंस और 100 सम्मेलन करेगी। इस सिलसिले में सोमवार को मध्यप्रदेश मे हर जिला मुख्यालय पर प्रेस कांफ्रेंस की गई। अगले दो दिन किसान जन जागरण के लिए पार्टी के बड़े नेता 7 आमसभा करेंगे।

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15 दिसंबर को सीहोर, भोपाल,उज्जैन में किसान सम्मेलन में मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान और प्रदेश अध्यक्ष वी डी शर्मा मौजूद रहेंगे। 16 दिसंबर दोनों नेता जबलपुर,रीवा के सम्मेलन में जाएंगे। 16 दिसंबर को ही ग्वालियर में केन्द्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर और सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया सागर में केन्द्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल, मंत्री गोपाल भार्गव जबकि इदौर में कैलाश विजयवर्गीय और नरोत्तम मिश्रा सम्मेलन को संबोधित करेंगे। दरअसल बीजेपी की योजना किसानों को स्थानीय स्तर पर ही मनाने की ताकि दिल्ली सीमा पर चल रहे आंदोलन को प्रदेश के किसानों का सहयोग न मिल पाए।

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दूसरी तरफ कांग्रेस इस मुद्दे के जरिए शिवराज और मोदी सरकार को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है। पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कहा कि तीनों कृषि कानून तानाशाही तरीके से थोपे गए हैं। उन्होंने बीजेपी चौपाल, सम्मेलन, प्रेस कांफ्रेंस को शर्मनाक बताते हुए विधानसभा में सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित करने की मांग की है। कमलनाथ ने आरोप लगाया कि बीजेपी के जन जागरण अभियान से शिवराज सरकार का किसान विरोधी रवैया उजागर हो गया है। उन्होंने कहा इन कानूनों के लागू होने से न्यूनतम समर्थन मूल्य और मंडी व्यवस्था खत्म जाएगी जबक जमाखोरी और मुनाफाखोरी में बढोतरी होगी। कांग्रेस कृषि कानून ही नही मंदसौर गोली कांड याद दिला कर बीजेपी सरकार को कटघरे में खड़ा करने में जुटी है।

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दिल्ली में भी किसान आंदोलन को लेकर हलचल तेज रही है। गृहमंत्री अमित शाह ने कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से मौजूदा हालात पर चर्चा की तो हरियाणा के डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला नितिन गडकरी से मिले। मुलाकातों के बीच हरियाणा, महाराष्ट्र, बिहार के कुछ संगठनों ने कृषि कानूनों में संशोधन करके लागू रखने की मांग भी की।

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‘जय जवान, जय किसान’ 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के वक्त लालबहादुर शास्त्री के दिए इस नारे से देश में हरित क्रांति की शुरुआत हुई। देश का जवान तो सीमा पर तैनात है पर किसान खेत के बजाए सड़कों पर सरकार हर तरीके से किसानो को मनाने की कोशिश कर रही है, लेकिन किसान तीन कानून को हटाने से कम पर मानने को तैयार नहीं। किसानों को मनाने की कमान अब गृहमंत्री अमित शाह ने खुद अपने हाथों में ले ली है, लेकिन अभी तक कुछ ठोस परिणाम निकलता नजर नही आ रहा।

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