किसान आंदोलन: …और कितने दिन? निकलेगा हल या फिर..

किसान आंदोलन: ...और कितने दिन? निकलेगा हल या फिर..

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  • Publish Date - December 11, 2020 / 08:50 AM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:01 PM IST

..और कितने दिन? ये सवाल आज देश के कई राज्यों के कई किसान संगठन सरकार से कर रहे हैं कि आखिर कब तक नहीं मानेंगे। तीनों कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग पर किसान सरकार के खिलाफ आर-पार की लड़ाई लड़ रहे हैं। दूसरी ओर सरकार भी नए कृषि बिल को वापस लेने के मूड में नहीं दिखाई दे रही है। आंदोलन के दौरान सरकार के साथ किसान संगठन के नेताओं के बीच लगातार बैठकों का दौर भी चला। जिसमें न किसान अपने रुख से टस से मस हुए और न ही सरकार। ऐसे में अब सवाल यह है कि बिल के खिलाफ किसानों का असंतोष कब समाप्त होगा, दिल्ली की सीमा पर लगातार 16वें दिन किसानों का आंदोलन जारी है। किसानों के आंदोलन को खत्म करने में क्या सरकार कुछ हल निकाल पाएगी। ये सवाल हर किसी के जेहन में है।

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सरकार की मंशा

वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के अपने वादे को अमल में लाने के लिए केंद्र सरकार ने कृषि क्षेत्र में व्यापक सुधार की पहल की है। इसी क्रम में संसद से तीन नए कानून पारित हुए हैं। लेकिन किसान अब इसे रद्द करने की मांग पर अड़े हुए हैं। देश की राजधानी दिल्ली में इसे लेकर सरकार के साथ लगातार बातचीत का दौर भी चला। सरकार ने लिखित प्रस्ताव भी दिया, लेकिन सरकार आंदोलन कर रहे किसानों को नहीं मना पाए। बातचीत का दौर खत्म होने के बाद किसान अपनी लड़ाई को और तेज करने की चेतावनी दी है। सरकार एक ओर जहां इस बिल को तो किसान हितैषी बता रही है, लेकिन दूसरी ओर किसान इस कानून को नहीं मान रहे हैं। लागू किए गए तीनों कृषि कानूनों के नियम आपको बताते हैं।

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पहलाः कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन व सरलीकरण) कानून-2020

किसानों और व्यापारियों को राज्यों में स्थित कृषि उत्पाद बाजार समिति से बाहर भी उत्पादों की खरीद-बिक्री की छूट प्रदान की गई है। इसका उद्देश्य व्यापार व परिवहन लागत को कम करके किसानों के उत्पाद को अधिक मूल्य दिलवाना तथा ई-ट्रेडिंग के लिए सुविधाजनक तंत्र विकसित करना है।

केंद्र सरकार तीनों कानूनों के मसौदे को संसद में पेश करते वक्त ही स्पष्ट कर चुकी है कि न तो मंडियां बंद होंगी, न ही एमएसपी प्रणाली खत्म होने जा रही है। इस कानून के जरिये पुरानी व्यवस्था के साथ-साथ किसानों को नए विकल्प उपलब्ध कराए जा रहे हैं। यह उनके लिए फायदेमंद है।

ऐसे होगा लाभ: किसानों के पास उत्पादों की बिक्री के लिए ज्यादा विकल्प उपलब्ध होंगे। बिचौलियों का रास्ता बंद हो जाएगा। प्रतिस्पर्धी डिजिटल व्यापार को बढ़ावा मिलेगा और किसानों को उत्पादों की बेहतर कीमत मिल पाएगी।

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दूसराः आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून-2020

अनाज, दलहन, तिलहन, प्याज व आलू आदि को आवश्यक वस्तु की सूची से हटाना। युद्ध जैसी अपवाद स्थितियों को छोड़कर इन उत्पादों के संग्रह की सीमा तय नहीं की जाएगी।

असामान्य परिस्थितियों के लिए तय की गई कीमत की सीमा इतनी अधिक होगी कि उसे हासिल करना आम आदमी के वश में नहीं होगा। बड़ी कंपनियां आवश्यक वस्तुओं का भंडारण करेंगी। यानी कंपनियां किसानों पर शर्तें थोपेंगी, जिससे उत्पादकों को कम कीमत मिलेगी।

कोल्ड स्टोर व खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में निवेश बढ़ेगा, क्योंकि वे अपनी क्षमता के अनुरूप उत्पादों का भंडारण कर सकेंगे। इससे किसानों की फसल बर्बाद नहीं होगी। फसलों को लेकर किसानों की अनिश्चितता खत्म हो जाएगी। व्यापारी आलू व प्याज जैसी फसलों की भी ज्यादा खरीद करके उनका कोल्ड स्टोर में भंडारण कर सकेंगे। इससे फसलों की खरीद के लिए प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और किसानों को उनके उत्पादों की उचित कीमत मिल पाएगी।

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ऐसे होगा लाभ: कृषि क्षेत्र में निजी व प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को बढ़ावा मिलेगा। कोल्ड स्टोर व खद्यान्न आपूर्ति शृंखला के आधुनिकीकरण में निवेश को प्रोत्साहन मिलेगा। किसानों की फसल बर्बाद नहीं होगी और उन्हें समुचित कीमत मिलेगी। जब सब्जियों की कीमत दोगुनी हो जाएगी या खराब न होने वाले अनाज का मूल्य 50 फीसद बढ़ जाएगा तो सरकार भंडारण की सीमा तय कर देगी। इस प्रकार किसान व खरीदार दोनोें को फायदा होगा।

तीसरा: कृषक (सशक्तीकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार कानून-2020

किसानों को कृषि कारोबार करने वाली कंपनियों, प्रसंस्करण इकाइयों, थोक विक्रेताओं, निर्यातकों व संगठित खुदरा विक्रेताओं से सीधे जोड़ना। कृषि उत्पादों का पूर् में ही दाम तय करके कारोबारियों के साथ करार की सुविधा प्रदान करना। पांच हेक्टेयर से कम भूमि वाले सीमांत व छोटे किसानों को समूह व अनुबंधित कृषि का लाभ देना। देश के 86 फीसद किसानों के पास पांच हेक्टेयर से कम जमीन है।

अनुबंधित कृषि समझौते में किसानों का पक्ष कमजोर होगा। वे मोलभाव नहीं कर पाएंगे। प्रायोजक शायद छोटे व सीमांत किसानों की बड़ी संख्या को देखते हुए उनसे परहेज करें। बड़ी कंपनियां, निर्यातक, थोक विक्रेता व प्रसंस्करण इकाइयां किसी भी प्रकार के विवाद का लाभ उठाना चाहेंगी। कृषि क्षेत्र भी पूंजीपतियों या कॉरपोरेट घरानों के हाथों में चला जाएगा।

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सरकार स्पष्ट कर चुकी है कि इस कानून का लाभ देश के 86 फीसद किसानों को मिलेगा। किसान जब चाहें अनुबंध तोड़ सकते हैं, लेकिन कंपनियां अनुबंध तोड़ती हैं तो उन्हें जुर्माना अदा करना होगा। तय समय सीमा में विवादों का निपटारा होगा। खेत और फसल दोनों का मालिक हर स्थिति में किसान ही रहेगा।

ऐसे होगा लाभ: कृषि क्षेत्र में शोध व विकास कार्यक्रमों को बढ़ावा मिलेगा। अनुबंधित किसानों को सभी प्रकार के आधुनिक कृषि उपकरण मिल पाएंगे। उत्पाद बेचने के लिए मंडियों या व्यापारियों के चक्कर नहीं लगाने होंगे। खेत में ही उपज की गुणवत्ता जांचए ग्रेडिंगए बैगिंग व परिवहन जैसी सुविधाएं उपलब्ध होंगी। किसान को नियमित और समय पर भुगतान मिल सकेगा।

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फूंक-फूंक कर कदम उठाए 

आज के दौर में किसानों के मुद्दों पर अनदेखी करने की साहस किसी भी राजनीति दल में नहीं है। सत्ताधारी भाजपा को फूंक.फूंक कर कदम उठानी चाहिए और किसानों को लेकर संवेदनशील रहना चाहिए। सरकार संवेदनशीलता से किसान संगठनों से बात करें और किसान नेताओं को भी अड़ियल रुख छोड़ कर वार्ता में सुलह के बारे में सोचना चाहिए। बता दें कि किसानों के आंदोलन को कई राजनीतिक पार्टियों ने समर्थन दिया है। 8 दिसंबर के भारत बंद के दौरान कांग्रेस, शिवसेना, एनसीपी, सपा समेत 20 से ज्यादा पार्टियों ने समर्थन में प्रदर्शन किया।

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