नयी दिल्ली, 15 अप्रैल (भाषा) देश के पुलिस विभाग में महानिदेशक और पुलिस अधीक्षक जैसे वरिष्ठ पदों पर 1,000 से भी कम महिलाएं हैं तथा पुलिस विभाग में 90 प्रतिशत महिलाएं कांस्टेबल के रूप में कार्यरत हैं।
टाटा ट्रस्ट द्वारा कई नागरिक समाज संगठनों तथा डेटा भागीदारों की मदद से यह रिपोर्ट ‘द इंडिया जस्टिस रिपोर्ट 2025’ तैयार की गई है।
इस रिपोर्ट में पुलिस विभाग, न्यायपालिका, जेल और कानूनी सहायता जैसे चार क्षेत्रों में राज्यों की स्थिति का आकलन किया गया है।
रिपोर्ट के अनुसार कानून प्रवर्तन में लैंगिक विविधता की आवश्यकता के बारे में बढ़ती जागरूकता के बावजूद, एक भी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश पुलिस विभाग में महिलाओं के प्रतिनिधित्व के अपने लक्ष्य को पूरा नहीं कर पाया है।
मंगलवार को जारी आईजेआर 2025 में न्याय प्रदान करने की व्यवस्था के लिहाज से कर्नाटक 18 बड़े और मध्यम राज्यों में शीर्ष स्थान पर रहा। कर्नाटक ने यह स्थान 2022 में भी हासिल किया था और इस बार भी वह अपनी शीर्ष स्थिति बनाए रखने में सफल रहा है।
कर्नाटक के बाद आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, केरल और तमिलनाडु का स्थान रहा।
इन पांचों दक्षिण भारतीय राज्यों ने न्याय व्यवस्था के अलग-अलग क्षेत्रों में बेहतर काम किया है।
रिपोर्ट में पुलिस वरिष्ठताक्रम में लैंगिक असमानताओं को भी रेखांकित किया गया है।
रिपोर्ट के अनुसार पुलिस विभाग में कुल 2.4 लाख महिला कर्मियों में से सिर्फ 960 महिलाएं ही भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) रैंक की हैं। वहीं, 24,322 महिलाएं उप-अधीक्षक, निरीक्षक या उप-निरीक्षक जैसे गैर-आईपीएस अधिकारी पदों पर कार्यरत हैं। आईपीएस अधिकारियों की अधिकृत संख्या 5,047 है।
रिपोर्ट के अनुसार लगभग 2.17 लाख महिलाएं पुलिस विभाग में कांस्टेबल के पद पर कार्यरत हैं। पुलिस उपाधीक्षक के पद पर सबसे ज्यादा महिलाएं मध्य प्रदेश में हैं, जहां इनकी संख्या 133 है।
रिपोर्ट के मुताबिक लगभग 78 प्रतिशत पुलिस थानों में अब महिला हेल्प डेस्क हैं, 86 प्रतिशत जेलों में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की सुविधा है और कानूनी सहायता पर प्रति व्यक्ति व्यय 2019 से 2023 के बीच लगभग दोगुना होकर 6.46 रुपये पर पहुंच गया है। इसी अवधि में जिला न्यायपालिका में महिलाओं की हिस्सेदारी भी बढ़कर 38 प्रतिशत हो गई है।
हालांकि जिला न्यायपालिका में अनुसूचित जनजातियों (एसटी) और अनुसूचित जातियों (एससी) की हिस्सेदारी क्रमशः पांच प्रतिशत और 14 प्रतिशत ही है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि कानूनी सहायता तक पहुंच के लिए महत्वपूर्ण कड़ी माने जाने वाले अर्द्धन्यायिक स्वयंसेवकों (पीएलवी) की संख्या में पिछले पांच सालों में 38 प्रतिशत की गिरावट आई है, अब प्रति लाख आबादी पर केवल तीन पीएलवी उपलब्ध हैं।
इसी के साथ देश भर की जेलों में केवल 25 मनोवैज्ञानिक/मनोचिकित्सक उपलब्ध हैं।
आईजेआर रिपोर्ट न्याय प्रणाली में गंभीर बुनियादी ढांचे और कर्मचारियों की कमियों को भी उजागर करती है। भारत में प्रति दस लाख लोगों पर सिर्फ 15 जज हैं, जो विधि आयोग की 1987 की 50 की सिफारिश से काफी कम है।
जेलों में क्षमता से अधिक भीड़ होना चिंता का एक और विषय है। रिपोर्ट में कहा गया है कि राष्ट्रीय स्तर पर जेलें अपनी क्षमता से औसतन 131 प्रतिशत ज्यादा भरी हुई हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश में सबसे खराब स्थिति है – यहां हर तीन में से एक जेल में क्षमता से 250 प्रतिशत से अधिक कैदी हैं।
भाषा योगेश नरेश
नरेश
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