डिजिटल सामग्री के रचनाकारों की सुरक्षा के लिए कॉपीराइट अधिनियम में संशोधन करें : राघव चड्ढा

डिजिटल सामग्री के रचनाकारों की सुरक्षा के लिए कॉपीराइट अधिनियम में संशोधन करें : राघव चड्ढा

डिजिटल सामग्री के रचनाकारों की सुरक्षा के लिए कॉपीराइट अधिनियम में संशोधन करें : राघव चड्ढा
Modified Date: December 18, 2025 / 01:44 pm IST
Published Date: December 18, 2025 1:44 pm IST

( तस्वीर सहित )

नयी दिल्ली, 18 दिसंबर (भाषा) आम आदमी पार्टी (आप) के सदस्य राघव चड्ढा ने बृहस्पतिवार को डिजिटल सामग्री के रचनाकारों के हितों की रक्षा के लिए कॉपीराइट अधिनियम, 1957 में महत्वपूर्ण संशोधनों की मांग की और कहा कि उनकी आजीविका “मनमाने एल्गोरिदम” से नहीं, बल्कि कानून से तय होनी चाहिए।

राज्यसभा में शून्यकाल के दौरान यह मुद्दा उठाते हुए पंजाब से आप सांसद ने कहा कि देश में लाखों भारतीय डिजिटल सामग्री के रचनाकार (डिजिटल कंटेंट क्रिएटर) बन चुके हैं, जो शिक्षक, समीक्षक, व्यंग्यकार, मनोरंजनकर्ता, संगीतकार और इन्फ्लुएंसर के रूप में काम कर रहे हैं।

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चड्ढा ने कहा, “चाहे वह उनका यूट्यूब चैनल हो या इंस्टाग्राम पेज, यह उनके लिए सिर्फ मनोरंजन का साधन नहीं है। वास्तव में, यही उनकी आय का स्रोत है, उनकी संपत्ति है। यह उनकी मेहनत का फल है।”

उन्होंने डिजिटल प्लेटफॉर्म पर उचित उपयोग और कॉपीराइट के कथित मनमाने उल्लंघन के मुद्दे को उठाते हुए कहा कि डिजिटल सामग्री के रचनाकारों को तब भी अपने चैनल खोने का खतरा रहता है, जब वे टिप्पणी, आलोचना, पैरोडी, शैक्षणिक या समाचार रिपोर्टिंग के उद्देश्य से केवल दो-तीन सेकंड के लिए कॉपीराइट वाली सामग्री का उपयोग करते हैं।

आप नेता ने कहा, “कुछ ही मिनटों में उसकी वर्षों की मेहनत खत्म हो जाती है। आजीविका का फैसला कानून से होना चाहिए, न कि मनमाने एल्गोरिदम से।”

चड्ढा ने स्पष्ट किया कि वह कॉपीराइट धारकों के विरोध में नहीं हैं और उनके अधिकारों का निश्चित रूप से सम्मान किया जाना चाहिए, लेकिन उन्होंने जोर दिया कि उचित उपयोग को पायरेसी के बराबर नहीं माना जाना चाहिए।

उन्होंने कहा, “उचित उपयोग में कभी-कभी सामग्री का उपयोग आकस्मिक या परिवर्तनकारी उद्देश्य से किया जाता है, और यह डिजिटल सामग्री के रचनाकार को उस मंच से हटाने और उसकी मेहनत को खत्म करने के समान नहीं होना चाहिए।”

उन्होंने कहा कि डर के माहौल में नवाचार नहीं पनप सकता और रचनात्मकता खतरे के साये में जीवित नहीं रह सकती।

आप सदस्य ने कहा कि भारत का कॉपीराइट अधिनियम 1957 में बना था, जब न इंटरनेट था, न कंप्यूटर, न डिजिटल सामग्री के रचनाकार थे, न यूट्यूब और न ही इंस्टाग्राम था।

बदलते परिवेश के मद्देनजर कॉपीराइट अधिनियम में संशोधन की मांग करते हुए उन्होंने कहा, “इस अधिनियम में डिजिटल रचनाकारों की कोई परिभाषा ही नहीं है। इसमें समुचित तरीके से निपटने की बात की गई है, लेकिन वह किताबों, पत्रिकाओं और जर्नलों के संदर्भ में है।”

चड्ढा ने कॉपीराइट अधिनियम, 1957 में संशोधन कर डिजिटल समुचित उपयोग की स्पष्ट परिभाषा शामिल करने की मांग की, जिसमें टिप्पणी, व्यंग्य और आलोचना जैसे परिवर्तनकारी उपयोग, आकस्मिक उपयोग, अनुपातिक उपयोग, शैक्षणिक उपयोग, जनहित उपयोग और गैर-व्यावसायिक उपयोग शामिल हों।

उन्होंने कॉपीराइट अधिनियम लागू करने में अनुपातिकता के सिद्धांत को शामिल करने की मांग की और कहा कि यदि किसी वीडियो या ऑडियो का कुछ सेकंड के लिए पृष्ठभूमि में उपयोग होता है, तो इससे किसी रचनाकार की पूरी सामग्री हटाई नहीं जानी चाहिए।

साथ ही उन्होंने किसी भी सामग्री को हटाने से पहले अनिवार्य ‘आवश्यक प्रक्रिया’ को अपनाने की जरूरत पर जोर दिया।

भाषा मनीषा माधव

माधव


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