One Nation-One Election: …. तो इसलिए एक देश-एक चुनाव पर इतना जोर दे रही मोदी सरकार, इन झंझटों से मिलेगा छुटकारा
तो इसलिए एक देश-एक चुनाव पर इतना जोर दे रही मोदी सरकार: Benefit and Loss of One Nation-One Election, One Nation-One Election ke Fayde
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नई दिल्लीः One Nation-One Election ‘एक देश-एक चुनाव’ को लेकर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में गठित कमेटी ने गुरुवार को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है। 18 हजार 626 पेजों की इस रिपोर्ट में देश भर में लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकायों के लिए एक साथ चुनाव कराने की प्रावधानों को शामिल किया गया है। रिपोर्ट में लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय निकाय चुनाव कराने के लिए एकल यानी साझा मतदाता सूची तैयार करने की बात कही गई है। तो चलिए जानते हैं कि मोदी सरकार आखिर इस एक देश-एक चुनाव को लेकर इतना जोर क्यों दे रही है।
होगी पैसों की बचत
One Nation-One Election जानकारों का कहना है कि इससे देश के राजकोष को फायदा होगा और देश के राजकोष की बचत होगी। क्योंकि देश में चुनाव पर अरबों रुपये खर्च होते हैं। देश में बार-बार चुनाव होने से सरकारी व्यवस्था बिगड़ जाती है, इससे विकास कार्यों पर भी फर्क पड़ता है। बता दें कि 1951-1952 लोकसभा चुनाव में 11 करोड़ रुपये खर्च हुए थे, जबकि 2019 लोकसभा चुनाव में 60 हजार करोड़ रुपये की भारी भरकम धनराशि खर्च हुई थी। पीएम मोदी कह चुके हैं कि इससे देश के संसाधन बचेंगे और विकास की गति धीमी नहीं पड़ेगी।
बार-बार चुनाव कराने के झंझट से छुटकारा
एक देश- एक चुनाव के समर्थन के पीछे एक तर्क ये भी है कि भारत जैसे विशाल देश में हर साल कहीं न कहीं चुनाव होते रहते हैं। इन चुनावों के आयोजन में पूरी की पूरी स्टेट मशीनरी और संसाधनों का इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन यह बिल लागू होने से चुनावों की बार-बार की तैयारी से छुटकारा मिल जाएगा। पूरे देश में चुनावों के लिए एक ही वोटर लिस्ट होगी, जिससे सरकार के विकास कार्यों में रुकावट नहीं आएगी।
कालेधन और भ्रष्टाचार रोकने में भी मिलेगी मदद
एक देश-एक चुनाव के पक्ष में एक तर्क यह भी है कि इससे कालेधन और भ्रष्टाचार पर रोक लगने में मदद मिलेगी। चुनावों के दौरान विभिन्न राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों पर ब्लैक मनी के इस्तेमाल का आरोप लगता रहा है। लेकिन कहा जा रहा है कि यह बिल लागू होने से इस समस्या से बहुत हद तक छुटकारा मिलेगा।
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39 राजनीतिक दलों से लिया गया परामर्श
पिछले साल सितंबर महीने में गठित पैनल ने इतने महीनों में रिपोर्ट बनाने को लेकर तमाम अध्ययन किए हैं। कई देशों में चल रहे इस तरह के नियमों का अध्ययन किया है। 39 राजनीतिक दलों, अर्थशास्त्रियों और भारत के चुनाव आयोग से परामर्श लिया। गुरुवार को राष्ट्रपति के हवाले करते हुए पैनल ने आज कहा कि वह एक देश, एक चुनाव वाले विचार का समर्थन करता है, लेकिन इसके लिए एक कानूनी रूप से टिकाऊ मजबूत तंत्र की मांग करता है जो मौजूदा चुनावी चक्रों से बाहर निकले और फिर से उसे संरेखित करे।

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