‘भारत’ का अनुवाद नहीं किया जाना चाहिए अन्यथा यह अपनी पहचान,सम्मान खो देगा: भागवत

'भारत' का अनुवाद नहीं किया जाना चाहिए अन्यथा यह अपनी पहचान,सम्मान खो देगा: भागवत

‘भारत’ का अनुवाद नहीं किया जाना चाहिए अन्यथा यह अपनी पहचान,सम्मान खो देगा: भागवत
Modified Date: July 27, 2025 / 11:38 pm IST
Published Date: July 27, 2025 11:38 pm IST

कोच्चि, 27 जुलाई (भाषा) राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने रविवार को कहा कि ‘भारत’ का अनुवाद नहीं किया जाना चाहिए अन्यथा यह अपनी पहचान और विश्व में इसे जो सम्मान प्राप्त है, वह खो देगा।

भागवत ने कहा कि इंडिया तो ‘भारत’ है लेकिन जब हम इसके बारे में बात करते हैं, लिखते हैं या बोलते हैं तो इसे इसी रूप में रखा जाना चाहिए फिर चाहे वह सार्वजनिक रूप से हो या व्यक्तिगत रूप से।

उन्होंने कहा कि ‘क्योंकि यह भारत है’ इसलिए भारत की पहचान का सम्मान किया जाता है।

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उन्होंने कहा, ‘‘भारत एक व्यक्तिवाचक संज्ञा है। इसका अनुवाद नहीं किया जाना चाहिए। यह सच है कि ‘इंडिया भारत है’। लेकिन भारत, भारत है। इसलिए बातचीत, लेखन और भाषण के दौरान फिर चाहे वह व्यक्तिगत हो या सार्वजनिक हमें भारत को भारत ही रखना चाहिए।’’

उन्होंने कहा, ‘‘भारत को भारत ही रहना चाहिए। भारत की पहचान का सम्मान किया जाता है क्योंकि यह भारत है। अगर आप अपनी पहचान खो देते हैं तो चाहे आपके कितने भी अच्छे गुण क्यों न हों आपको इस दुनिया में कभी सम्मान या सुरक्षा नहीं मिलेगी। यही मूल सिद्धांत है।’’

उन्होंने आरएसएस से जुड़े शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास द्वारा आयोजित राष्ट्रीय शिक्षा सम्मेलन ‘ज्ञान सभा’ में यह बात कही।

अपने संबोधन में भागवत ने कहा कि दुनिया ताकत की भाषा समझती है इसलिए भारत को आर्थिक दृष्टि से भी शक्तिशाली और समृद्ध बनना होगा।

भागवत ने कहा कि भारत को अब ‘‘सोने की चिड़िया’’ बनने की जरूरत नहीं है बल्कि अब ‘‘शेर’’ बनने का समय आ गया है।

उन्होंने कहा,‘‘ यह ज़रूरी है क्योंकि दुनिया ताकत को समझती है। इसलिए भारत को ताकतवर बनना होगा। उसे आर्थिक दृष्टि से भी समृद्ध बनना होगा।’’

साथ ही उन्होंने स्पष्ट किया कि देश को दूसरों पर शासन करने के लिए नहीं,बल्कि विश्व की सहायता करने के लिए ताकतवर बनना चाहिए।

केरल के राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर ने भी इसी तरह के विचार व्यक्त किए और कहा कि जब देश को ‘‘सोने की चिड़िया’’ कहा जाता था तब इस पर हमला किया गया और इसकी ‘संस्कृति’ को नष्ट करने के प्रयास किए गए।

आर्लेकर ने कहा, ‘‘अगली पीढ़ी अब सोने की चिड़िया नहीं रहेगी। वह भारत को सोने के शेर के रूप में देखना चाहती है। पूरी दुनिया इस शेर की दहाड़ देखेगी और सुनेगी। हम यहां किसी को नष्ट करने के लिए नहीं, बल्कि दुनिया को विकास के लिए कुछ नया देने आए हैं।’

अपने भाषण में भागवत ने कहा कि शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो किसी व्यक्ति को कहीं भी अपने दम पर जीवित रहने में मदद कर सके।

आरएसएस प्रमुख ने यह भी कहा कि ‘भारतीय’ शिक्षा त्याग और दूसरों के लिए जीना सिखाती है और अगर कोई चीज़ किसी व्यक्ति को स्वार्थी होना सिखाती है तो वह ‘भारतीय’ शिक्षा नहीं है।

उन्होंने दावा किया, ‘‘यह व्यक्ति को केवल अंधकार में धकेलता है।’’ उन्होंने कहा, ‘हमारी शिक्षा का उद्देश्य और उसके प्रति हमारा दृष्टिकोण अद्वितीय है और उसके अनुसार कोई भी शिक्षा न केवल मुझे, बल्कि मेरे परिवार और पूरे विश्व को लाभान्वित करेगी।’

उन्होंने कहा कि इसके परिणामस्वरूप, ‘विकसित या विश्व गुरु भारत’ कभी भी युद्ध का कारण नहीं बनेगा और न ही यह कभी किसी पर अत्याचार या शोषण करेगा।

आरएसएस प्रमुख ने कहा, ‘‘ हमने पूरी दुनिया की यात्रा की है, लेकिन हमने किसी के क्षेत्र पर आक्रमण नहीं किया या किसी का राज्य नहीं छीना। इसके बजाय हमने सभी को सभ्य होना सिखाया।’’

उन्होंने कहा कि शिक्षा का तात्पर्य केवल स्कूल जाना भर से नहीं है बल्कि घर और समाज के वातावरण से भी है। इसलिए, समाज को यह भी सोचना होगा कि अगली पीढ़ी को अधिक जिम्मेदार और आत्मविश्वासी बनाने के लिए किस तरह का माहौल बनाया जाए।

इस कार्यक्रम में राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर के अलावा विभिन्न शिक्षाविद और राज्य के कुछ विश्वविद्यालयों के कुलपति शामिल हुए।

भाषा शोभना रंजन

रंजन


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