विभाजनकारी राजनीति होते नहीं देख सकता था, इसलिये सियासत में आया: मनोरंजन व्यापारी

विभाजनकारी राजनीति होते नहीं देख सकता था, इसलिये सियासत में आया: मनोरंजन व्यापारी

विभाजनकारी राजनीति होते नहीं देख सकता था, इसलिये सियासत में आया: मनोरंजन व्यापारी
Modified Date: November 29, 2022 / 08:13 pm IST
Published Date: March 22, 2021 7:46 am IST

(रुमेला सिन्हा)

कोलकाता, 22 मार्च (भाषा) पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में हुगली जिले के बालागढ़ से तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार मनोरंजन व्यापारी पहले नक्सली थे जो बाद में लेखक बन गये और उन्होंने लेखन में पुरस्कार भी जीते हैं। वह अपने को एक साधारण आदमी बताते हैं। सियासत में किस्मत आजमाने के बाद से काफी चर्चा में हैं। नक्सली से साहित्यकार और फिर नेता बने व्यापारी खुद को साधारण व्यक्ति बताते हैं।

व्यापारी वह अब भी अपने आपको रिक्शा-चालकों और सड़क किनारे चाय बेचने वाले लोगों के समान समझते हैं।

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वह कहते हैं, ”मैंने अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये कड़ी मेहनत की है। मैंने रिक्शा चलाया। श्मशान की रखवाली का काम किया। रसोइया बना और चाय भी बेची। मैंने जो काम किये हैं उनसे मेरे अंदर सहानुभूति की भावना पैदा हुई है और मुझे बेआवाज लोगों की आवाज उठाने का साहस दिया है। ”

जाने-माने दलित साहित्यकार व्यापारी कहते हैं कि उन्होंने अपने पूरे जीवन में हाशिये पर मौजूद वर्गों के बारे में ही लिखा और उनकी समस्याओं को रेखांकित किया है, ”लेकिन अब उन शब्दों को कार्रवाई में बदलने का समय आ गया है और राजनीति में आने का इससे बेहतर समय नहीं सकता है जब बंगाली संस्कृति, परंपरा और साहित्य पर खतरा मंडरा रहा हो।”

व्यापारी की पुस्तकों में ‘इतिब्रितो चंदल जीबोन’ काफी प्रसिद्ध है, जिसमें एक निम्न जाति के शरणार्थी के तौर पर उनकी जीवन यात्रा के बारे में बताया गया है। इसके अलावा एक नक्सली के तौर पर जेल में बिताए गए उनके जीवन के बारे में बताती पुस्तक ‘बताशे बरूदर गंधा’ भी काफी लोकप्रिय है।

व्यापारी (71) ने ‘पीटीआई-भाषा’ को दिये साक्षात्कार में कहा, ”मैं राजनीति में नहीं आना चाहता था, लेकिन बंगाल के मौजूदा परिदृश्य को देखते हुए मुझे इसमें कदम रखना पड़ा। मैं पीछे बैठकर विभाजन की राजनीति नहीं देख सकता था।”

भाषा जोहेब माधव

माधव


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