माकपा, एलडीएफ का जमात-ए-इस्लामी से कभी संबंध नहीं रहा: पिनराई विजयन

माकपा, एलडीएफ का जमात-ए-इस्लामी से कभी संबंध नहीं रहा: पिनराई विजयन

माकपा, एलडीएफ का जमात-ए-इस्लामी से कभी संबंध नहीं रहा: पिनराई विजयन
Modified Date: December 6, 2025 / 09:13 pm IST
Published Date: December 6, 2025 9:13 pm IST

(फाइल फोटो के साथ)

त्रिशूर (केरल), छह दिसंबर (भाषा) केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने शनिवार को दावा किया कि न तो मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) और न ही पार्टी के नेतृत्व वाले गठबंधन लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ) का कभी जमात-ए-इस्लामी के साथ कोई संबंध रहा है।

उन्होंने विपक्षी दलों के गठबंधन यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) के इस आरोप को खारिज कर दिया कि वामपंथी पार्टी और मुस्लिम संगठन दशकों से राजनीतिक साझेदार थे।

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विजयन ने कहा कि वाम मोर्चे के लिए कभी ऐसे ‘‘दुर्दिन’’ नहीं आए कि उसे जमात-ए-इस्लामी से वोट मांगने की नौबत आई हो और पार्टी ने मुस्लिम संगठन को कभी ‘‘अच्छा प्रमाणपत्र’’ नहीं दिया।

मुख्यमंत्री ने यहां संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘‘लेकिन अब कुछ लोग हैं जो जमात-ए-इस्लामी को अच्छा प्रमाण पत्र देने की कोशिश कर रहे हैं।’’

उन्होंने आरोप लगाया कि यह जमात-ए-इस्लामी ही है जो कांग्रेस के राजनीतिक एजेंडे को आकार देती है और यूडीएफ के चुनाव अभियानों में भी योगदान देती है।

विजयन की यह टिप्पणी इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) के राष्ट्रीय महासचिव पी. के. कुन्हालीकुट्टी के एक बयान के जवाब में आई है, जिसमें उन्होंने दावा किया था कि माकपा और जमात-ए-इस्लामी के बीच दशकों से ऐसा रिश्ता है जिसे ‘‘आसानी से तोड़ा नहीं जा सकता।’’

आईयूएमएल कांग्रेस के नेतृत्व वाले विपक्षी गठबंधन यूडीएफ का एक प्रमुख घटक है।

इस पर पलटवार करते हुए विजयन ने अपने दावे का समर्थन में कहा कि जमात-ए-इस्लामी ने 1987 से ही (कांग्रेस और यूडीएफ के पक्ष में) चुनाव में मतदान करना शुरू किया, वह समय जब केरल में वामपंथी सत्ता में नहीं थे।

उन्होंने कहा कि 1987 में जमात-ए-इस्लामी ने मार्क्सवादी या फासीवादी समूहों को वोट देने से साफ इनकार कर दिया था तथा यह स्पष्ट किया था कि उन्होंने कांग्रेस को वोट दिया था।

उन्होंने कहा कि 1992 में केंद्र की कांग्रेस सरकार ने जमात-ए-इस्लामी को प्रतिबंधित समूह के रूप में सूचीबद्ध किया था, जिसके बाद संगठन ने 1996 में पार्टी को समर्थन नहीं दिया था।

विजयन ने कहा कि इसके बाद के वर्षों में जमात-ए-इस्लामी ने उम्मीदवार-आधारित मतदान का रुख अपनाया और कुछ अवसरों पर खुद भी चुनाव लड़े। वी. एस. अच्युतानंदन सरकार (2006–2011) के दौर में इस संगठन का युवा शाखा ‘सॉलिडैरिटी’ ने सक्रिय रूप से वाम मोर्चे के खिलाफ काम किया।

विजयन ने आरोप लगाया कि कांग्रेस और जमात-ए-इस्लामी दोनों ही ‘‘अवसरवादी राजनीति’’ में लिप्त हैं और राजनीतिक लाभ के लिए सांप्रदायिकता को बढ़ावा देते हैं।

शुक्रवार को मुख्यमंत्री ने कहा था कि जमात-ए-इस्लामी और हिंदूवादी संगठन ‘‘चोर चोर मौसेरे भाई हैं’’ तथा उन्होंने मुस्लिम संगठन के साथ कांग्रेस के कथित गठबंधन को आत्मघाती बताया था।

भाषा सुरभि पवनेश

पवनेश


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