नयी दिल्ली, 27 सितंबर (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को कहा कि वह तीन अक्टूबर को इस संबंध में आदेश पारित करेगा कि क्या दिल्ली विधानसभा अनुसंधान केंद्र में ‘फेलो’ के तौर पर कार्यरत पेशेवरों की सेवा जारी रखने के उसके पूर्व के अंतरिम आदेश में संशोधन करने की जरूरत है या नहीं।
दिल्ली विधानसभा सचिवालय ने इस पेशेवरों की संविदा पर नियुक्ति रद्द कर दी थी।
विधानसभा सचिवालय और अन्य संबंधित प्राधिकारियों की ओर से इस महीने दिए गए अंतरिम आदेश को रद्द करने के लिए दी गई अर्जी पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने कहा, ‘‘ इस मामले को तीन अक्टूबर को सूचीबद्ध किया जाए। मुझे इसपर विचार करने दें।’’
बर्खास्त कई ‘फेलो’ की याचिका पर न्यायाधीश ने 21 सितंबर को निर्देश दिया था कि दिल्ली विधानसभा अनुसंधान केंद्र में इनकी सेवाएं छह दिसंबर तक जारी रखी जाएं और उन्हें भत्तों का भुगतान किया जाए।
प्रतिवादी अधिकारियों ने बुधवार को तर्क दिया कि इन पदों को लेकर उप राज्यपाल की मंजूरी नहीं होने की वजह से आदेश निरंतर नहीं रह सकता और सेवाओं को नियंत्रित करने संबंधी मामला उच्चतम न्यायालय में विचाराधीन है।
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकील ने आवेदन का विरोध करते हुए कहा कि मौजूदा याचिका और शीर्ष अदालत में लंबित याचिका एक दूसरे के मामले में अतिक्रमण नहीं करती और याचिकाकर्ता ‘‘ दो पक्षों के बीच में फंस गए हैं।’’
वकील ने यह भी कहा कि आवेदन विधायिका और कार्यपालिका के बीच शक्ति के पृथक्करण के सिद्धांत के उल्लंघन को लेकर उनकी चिंता को प्रमाणित करता है।
याचिकाकर्ताओं के वकील ने पिछली सुनवाई में दलील दी थी कि जिन फेलो को उचित प्रक्रिया का पालन करने के बाद नियुक्त किया गया था, उनकी सेवाएं पांच जुलाई को सेवा विभाग द्वारा जारी एक पत्र के जरिये मनमाने और अवैध तरीके से, समय से पहले समाप्त कर दी गई थीं।
याचिका में कहा गया है कि पांच जुलाई के पत्र में निर्देश दिया गया है कि याचिकाकर्ताओं की सेवाओं को समाप्त कर दिया जाये और इसके लिए उपराज्यपाल की पूर्व मंजूरी नहीं ली गई थी।
इसमें कहा गया है कि बाद में इस फैसले पर रोक लगा दी गई और विधानसभा अध्यक्ष ने ‘‘उपराज्यपाल को सूचित किया कि उन्होंने सचिवालय के अधिकारियों को उनकी मंजूरी के बिना मामले में कोई कार्रवाई नहीं करने का निर्देश दिया’’, लेकिन उन्हें उनके मानदेय का भुगतान नहीं किया गया।
याचिका में कहा गया है, ‘‘अगस्त, 2023 के पहले सप्ताह के आसपास उन्हें कुछ विभागों द्वारा अपनी उपस्थिति दर्ज करने से रोक दिया गया था। इसके बाद नौ अगस्त, 2023 के आदेश के जरिये उनकी सेवाएं समाप्त कर दी गईं।’’
याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि उनके मानदेय का भुगतान न करना और उनकी सेवाओं को समाप्त करना उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।
भाषा धीरज मनीषा
मनीषा
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