दिल्ली उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को कैदी की समयपूर्व रिहाई पर पुनर्विचार करने का आदेश दिया

दिल्ली उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को कैदी की समयपूर्व रिहाई पर पुनर्विचार करने का आदेश दिया

दिल्ली उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को कैदी की समयपूर्व रिहाई पर पुनर्विचार करने का आदेश दिया
Modified Date: June 16, 2025 / 10:41 pm IST
Published Date: June 16, 2025 10:41 pm IST

नयी दिल्ली, 16 जून (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि किसी सजा के वैज्ञानिक होने के लिए, उसका अपराधी के जीवनकाल में कहीं न कहीं अंत होना चाहिए और राज्य को आदेश दिया कि वह कैदी की समयपूर्व रिहाई की याचिका पर पुनर्विचार करे।

न्यायमूर्ति गिरीश कठपालिया ने कौटिल्य के अर्थशास्त्र का हवाला देते हुए कहा कि दोषी कैदियों को उनकी सजा पूरी होने से पहले सहानुभूति के आधार पर रिहा करना प्राचीन हिंदू न्यायशास्त्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था।

अदालत विक्रम यादव नामक व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसे 2001 के हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी, तथा वह बिना किसी छूट के 21 वर्ष से अधिक वक्त से जेल में बंद है।

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इससे पहले, सजा समीक्षा बोर्ड (एसआरबी) ने अगस्त 2020 और जून 2023 के बीच पांच बार समय पूर्व रिहाई के उसके आवेदन को खारिज कर दिया था, जिसके बाद वर्तमान याचिका दायर की गई है।

न्यायाधीश ने 11 जून को दिए गए फैसले में कहा, ‘कौटिल्य के अर्थशास्त्र में सजा के सुधारात्मक नीति के तत्व का उल्लेख है, जिसे बाद में क्षमा के रूप में जाना गया। दोषी कैदियों को उन्हें दी गई सजा की अवधि पूरी होने से पहले सहानुभूति के आधार पर रिहा करना प्राचीन हिंदू न्यायशास्त्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था।’

न्यायाधीश ने कहा कि कौटिल्य ने ऐसे कैदियों की समयपूर्व रिहाई की वकालत की थी, जो युवा, बहुत वृद्ध या बीमार थे तथा जो जेल में अच्छा आचरण रखते थे।

अदालत ने कहा कि इस मामले में संक्षेप में कहा जाए तो याचिकाकर्ता (अभियुक्त) की समय पूर्व रिहाई को इन आधार पर अस्वीकार कर दिया गया है कि अपराध की गंभीरता और क्रूरता (जैसे फिरौती के लिए अपहरण और हत्या), पैरोल पर जाने के बाद फरार होना और दो अन्य आपराधिक मामलों में दोबारा गिरफ़्तारी, यह दिखाता है कि उसमें सुधार की प्रवृत्ति नहीं है।

अदालत ने कहा कि इन सभी कारणों को अब एक-एक करके विस्तार से देखना उपयुक्त होगा।

न्यायाधीश ने कहा कि एसआरबी का दृष्टिकोण सुधार-उन्मुख होना चाहिए, न कि नियमित निपटान वाला।

अदालत ने एसआरबी की संरचना पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता पर बल दिया और कहा कि इसमें विचाराधीन कैदी के सुधार के प्रति ‘मिशनरी उत्साह और संवेदनशीलता’ रखने वाले एक प्रख्यात समाजशास्त्री और अपराध विज्ञानी को शामिल किया जाना चाहिए।

आदेश में कहा गया है, ‘एसआरबी का एक अन्य महत्वपूर्ण घटक संबंधित जेल अधीक्षक हो सकता है, जिसके पास संबंधित कैदी के सुधारात्मक विकास या अन्य चीजों को करीब से देखने का सबसे अच्छा अवसर होता है।’

भाषा

नोमान माधव

माधव


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