दिल्ली सिंघू बॉर्डर पर प्रदर्शनकारी किसानों की मदद कर रही है तकनीक

दिल्ली सिंघू बॉर्डर पर प्रदर्शनकारी किसानों की मदद कर रही है तकनीक

दिल्ली सिंघू बॉर्डर पर प्रदर्शनकारी किसानों की मदद कर रही है तकनीक
Modified Date: November 29, 2022 / 08:20 pm IST
Published Date: December 16, 2020 10:20 am IST

(माणिक गुप्ता)

नयी दिल्ली, 16 दिसंबर (भाषा) केंद्र के नए कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली के सिंघू बॉर्डर पर दो सप्ताह से अधिक समय से हजारों किसान कड़ाके की ठंड के बावजूद प्रदर्शन कर रहे हैं और ऐसे में गुरुद्वारा समितियों और एनजीओ ने यह सुनिश्चित करने के लिए तकनीकी संसाधन उपलब्ध कराए हैं कि मूलभूत सुविधाओं की कमी के कारण आंदोलन प्रभावित न हो।

एक घंटे में 1,000 से 1,200 रोटियां बनाने वाली मशीन, कपड़े धोने की मशीनें और मोबाइल फोन चार्ज करने के लिए ट्रैक्टर-ट्रॉलियां पर लगाए गए सौर पैनल जैसे तकनीकी संसाधन यह सुनिश्चित कर रहे हैं, प्रदर्शनकारियों की मुश्किलें कम की जा सकें।

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रोटियां बनाने वाली मशीनें प्रदर्शनकारियों के लिए समय पर खाना सुनिश्चित कर रही हैं और आधी रात तक ‘लंगर’ की व्यवस्था चलती है।

प्रदर्शन स्थल पर एक ‘लंगर’ का प्रबंधन कर रहे दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक समिति के हरदीप सिंह ने ‘पीटीआई भाषा’ से कहा, ‘‘रोटियां बनाने वाली यह मशीन पूरी तरह स्वचालित है। आपको केवल गूंथा हुआ आटा डालना है। यह आटे को गोल आकार में काटकर रोटियां बना देती है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘हम सुबह सात बजे मशीन चालू करते हैं और यह रात बारह बजे तक चलती है। हम हर रोज 5,000 से अधिक लोगों को भोजन मुहैया करा रहे हैं।’’

कई दिनों से अपने घरों से दूर रहे किसानों के लिए एक बड़ी समस्या कपड़े धोने की थी। कुछ किसान पहले पेट्रोल पंपों पर कपड़े धो रहे थे और नहा रहे थे, लेकिन राष्ट्रीय राजधानी में तापमान काफी गिर गया और प्रदर्शनकारियों की संख्या बढ गई। ऐसे में कुछ किसानों और अन्य लोगों ने कपड़े धोने की मशीनों का प्रबंध किया।

30 वर्षीय प्रिंस संधु पंजाब के लुधियाना से कपड़े धोने की दो मशीनें लेकर आए ताकि वे और उनके साथी प्रदर्शनकारी आसानी से कपड़े दो सकें। कुछ दिन बाद किसी ने एक अन्य मशीन दान कर दी और तभी से ‘कपड़ा धोने की सेवा’ अनवरत जारी है।

संधु ने कहा कि हर रोज करीब 250 लोग कपड़े धोने आते हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘मैं सुबह छह बजे उठता हूं और लोगों को रात आठ बजे तक कपड़े धोने में मदद करता हूं।’’

कपड़े धोने की जगह से कुछ ही दूरी पर पुष्पिंदर सिंह का चार्जिंग स्टेशन है।

सिंह (36) ने कहा कि उन्होंने प्रदर्शनकारियों की आवश्यकताएं समझते हुए ट्रैक्टर ट्राली के ऊपर 100-100 वाट के दो सौर पैनल लगाने का फैसला किया।

इससे पहले, अंतरराष्ट्रीय एनजीओ ‘खालसा एड’ सिंघू बॉर्डर पर प्रदर्शनकारियों के पैरों की मालिश के लिए मशीनें एवं गीजर लगाने के कारण सुर्खियों में आया था।

भाषा

सिम्मी नरेश

नरेश


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