जीवनसाथी के नियोक्ता को दी गई शिकायतों में अपमानजनक टिप्पणी क्रूरता: दिल्ली उच्च न्यायालय
जीवनसाथी के नियोक्ता को दी गई शिकायतों में अपमानजनक टिप्पणी क्रूरता: दिल्ली उच्च न्यायालय
नयी दिल्ली, 24 जुलाई (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा है कि अलग रह रहे जीवनसाथी के नियोक्ता को दी गई शिकायतों में अपमानजनक और मानहानिकारक टिप्पणियां क्रूरता के समान हैं। इसी के साथ अदालत ने इस आधार पर पति को दिये गए तलाक के फैसले को बरकरार रखा।
न्यायमूर्ति नवीन चावला और न्यायमूर्ति रेणु भटनागर की पीठ ने एक जुलाई के अपने फैसले में कहा कि विवाह में आपसी सम्मान और समायोजन की आवश्यकता होती है और कुछ पक्षों को एक-दूसरे के साथ समायोजन करने में कम समय लगता है, जबकि अन्य को अधिक समय लगता है।
आदेश में हालांकि इस बात पर जोर दिया गया कि दोनों पक्षों से एक-दूसरे के प्रति उचित सम्मान दिखाने की अपेक्षा की जाती है।
पीठ ने कहा, ‘‘इन शिकायतों के गुण-दोष परे, चाहे इनमें लगाए गए आरोप झूठे हों या सच्चे, हम पाते हैं कि पति या पत्नी के नियोक्ता के खिलाफ शिकायत के रूप में ऐसी अपमानजनक और मानहानिकारक टिप्पणियां करना क्रूरता के अलावा और कुछ नहीं है।’’
अदालत ने आदेश में ‘‘सहिष्णुता, समायोजन और पारस्परिक सम्मान’’ को ‘‘सुदृढ़ एवं स्वस्थ विवाह’’ की नींव बताया गया।
उच्च न्यायालय ने महिला की अपील को खारिज करते हुए पत्नी द्वारा क्रूरता के आधार पर पति को तलाक देने के पारिवारिक न्यायालय के आदेश को बरकरार रखा।
इस जोड़े का विवाह 1989 में हुआ था और 2010-11 में अलग होने से पहले उनके दो बच्चे थे।
पत्नी ने तलाक के आदेश के खिलाफ उच्च न्यायालय में याचिका दायर की और दावा किया कि अलग रह रहे पति ने उसे और उसके बच्चों को ससुराल से जबरन बेदखल करने के लिए विभिन्न गैरकानूनी तरीके अपनाए।
भाषा धीरज रंजन
रंजन

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