ईडी ‘ठग’ की तरह काम नहीं कर सकता, उसे कानून के दायरे में रहकर काम करना होगा: न्यायालय

ईडी ‘ठग’ की तरह काम नहीं कर सकता, उसे कानून के दायरे में रहकर काम करना होगा: न्यायालय

ईडी ‘ठग’ की तरह काम नहीं कर सकता, उसे कानून के दायरे में रहकर काम करना होगा: न्यायालय
Modified Date: August 7, 2025 / 08:13 pm IST
Published Date: August 7, 2025 8:13 pm IST

नयी दिल्ली, सात अगस्त (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) एक ‘ठग’ की तरह काम नहीं कर सकता और उसे कानून के दायरे में ही रहना होगा। न्यायालय ने केंद्रीय एजेंसी द्वारा जांच किये गए मामलों में दोषसिद्धि की कम दर पर चिंता व्यक्त की।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा, “हम प्रवर्तन निदेशालय की छवि को लेकर भी चिंतित हैं।”

शीर्ष अदालत 2022 के फैसले की समीक्षा के अनुरोध वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है, जिसमें धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की गिरफ्तारी की शक्तियों को बरकरार रखा गया था।

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केंद्र और ईडी की ओर से पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस.वी. राजू ने समीक्षा याचिकाओं की पोषणीयता पर सवाल उठाया और कम दोषसिद्धि दर के लिए “प्रभावशाली आरोपियों” की विलंबकारी रणनीति को जिम्मेदार ठहराया।

राजू ने कहा, “रसूखदार बदमाशों के पास बहुत साधन होते हैं। वे कार्यवाही को लंबा खींचने के लिए अलग-अलग चरणों में आवेदनों पर आवेदन दायर करने के लिए वकीलों की फौज रखते हैं और मामले का जांच अधिकारी जांच में समय लगाने के बजाय किसी न किसी आवेदन के लिए अदालत के चक्कर लगाता रहता है।”

न्यायमूर्ति भुइयां ने अपने एक फैसले का हवाला देते हुए कहा कि पिछले पांच वर्षों में ईडी द्वारा दर्ज किए गए 5,000 मामलों में से 10 प्रतिशत से भी कम मामलों में दोषसिद्धि हुई है और इस तथ्यात्मक बयान की पुष्टि संसद में मंत्री द्वारा की गई है।

न्यायमूर्ति भुइयां ने कहा, “आप किसी ठग की तरह काम नहीं कर सकते, आपको कानून के दायरे में रहकर काम करना होगा। मैंने अपने एक फैसले में देखा कि ईडी ने पिछले पांच सालों में लगभग 5,000 ईसीआईआर दर्ज की हैं, लेकिन दोषसिद्धि दर 10 प्रतिशत से भी कम है… इसीलिए हम आपसे आग्रह कर रहे हैं कि आप अपनी जांच में सुधार करें क्योंकि यह व्यक्ति की स्वतंत्रता से जुड़ा मामला है।”

न्यायाधीश ने कहा, “हम ईडी की छवि को लेकर भी चिंतित हैं। 5-6 साल की न्यायिक हिरासत के बाद अगर लोग बरी हो जाते हैं, तो इसका खर्च कौन उठाएगा?”

न्यायमूर्ति कांत ने कहा कि सभी समस्याओं का समाधान टाडा और पोटा अदालतों की तरह समर्पित अदालतों से होना है और समर्पित पीएमएलए अदालतें दिन-प्रतिदिन की कार्यवाही कर सकती हैं, जिसके परिणामस्वरूप मामलों का शीघ्र निस्तारण हो सकेगा।

उन्होंने कहा, “हां, प्रभावशाली आरोपी अब भी कई आवेदन दायर करेंगे, लेकिन इन आरोपियों और उनके वकीलों को पता होगा कि चूंकि यह दिन-प्रतिदिन की सुनवाई है और उनके आवेदन पर अगले ही दिन फैसला हो जाएगा। उन पर कड़ी कार्रवाई करने का समय आ गया है। हम उनके प्रति सहानुभूति नहीं रख सकते। मैं एक मजिस्ट्रेट को जानता हूं जिसे एक दिन में 49 आवेदनों पर फैसला करना पड़ता है और हर आवेदन पर 10-20 पन्नों का आदेश देना पड़ता है। ऐसा नहीं चल सकता।”

भाषा

प्रशांत धीरज

धीरज


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