‘पेरियार गाय’ को विलुप्त होने से बचाने के किसानों के प्रयास ला रहे रंग

‘पेरियार गाय’ को विलुप्त होने से बचाने के किसानों के प्रयास ला रहे रंग

‘पेरियार गाय’ को विलुप्त होने से बचाने के किसानों के प्रयास ला रहे रंग
Modified Date: November 29, 2022 / 08:07 pm IST
Published Date: July 8, 2021 6:53 am IST

(टी जी बीजू)

कोच्चि, आठ जुलाई (भाषा) केरल के वन क्षेत्र में पायी जाने वाली देसी नस्ल और छोटे कद की ‘पेरियार गाय’ को विलुप्त होने से बचाने के लिए यहां प्रसिद्ध पेरियार नदी के तटों पर रहने वाले किसानों के प्रयास रंग ला रहे हैं।

वन्यजीव संरक्षण से जुड़े लोगों ने कहा कि स्वादिष्ट और स्वास्थ्यवर्द्धक दूध देने वाली ‘पेरियार कुल्लन’ नाम से मशहूर गाय की इस नस्ल को बहुत ज्यादा तवज्जो नहीं दी जा रही थी, लेकिन अब केरल राज्य पशुधन विकास (केएलडी) बोर्ड ने इस नस्ल के बैलों के जोड़े को गोद लेने का फैसला किया है ताकि इस पुरानी नस्ल के गोवंश का संवर्द्धन किया जा सके।

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केएलडी बोर्ड के प्रबंध निदेशक जोस जेम्स ने कहा कि इस लिहाज से सीमन के लिए तीन और चार साल के दो सांड़ों को चिह्नित किया गया है। राज्य सरकार के तहत आने वाले राज्य पशु रोग संस्थान और ‘सेंटर फॉर एडवांस्ड लाइवस्टॉक्स’ (सीएएलजी) में विस्तृत अध्ययन के बाद बैलों का चयन किया गया।

सूत्रों के अनुसार एर्णाकुलम जिले के कोडनाड गांव के रहने वाले सी कुरियन के फार्म से इन बैलों का चयन किया गया है जिन्हें शुक्रवार को बोर्ड को सौंपा जाएगा। उनसे सीमन के 5,000 नमूने लेने के बाद फार्म पर लौटा दिया जाएगा।

पशुधन विशेषज्ञ डॉ सी के शाजू ने कहा कि इस सीमन को कई साल तक सुरक्षित रखा जा सकता है। कुछ साल पहले पेरियार गायों के संरक्षण के लिए कदम उठाने वाले कुरियन ने कहा कि पेरियार नदी के किनारे पर वन क्षेत्र के करीब बसे कोडनाड, कुट्टमपुझा, मलयत्तूर, कलाडी, पनामकुझी, पनियेली तथा अय्यमपुझा जैसे गांवों में गाय की यह देसी नस्ल पाई जाती है।

कुरियन ऐसी करीब 100 गायों की देखभाल अपने फार्म पर करते हैं। उन्होंने 2017 में इनके संरक्षण की पहल की थी। कोडनाड गांव में कुरियन द्वारा संचालित स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट को देखकर उन्हें यह प्रेरणा मिली थी।

इस दिशा में प्रसिद्ध पशु चिकित्सक डॉ जयदेवन नांबूदिरी ने योगदान दिया। उन्होंने ‘पीटीआई भाषा’ से कहा कि पेरियार गाय को एक अलग ‘नस्ल’ के रूप में नहीं देखा जा रहा था क्योंकि ये बहुत कम संख्या में बची थी।

भाषा

मानसी शाहिद

शाहिद


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