Allahabad HC on Hindu Marriage: 'वैदिक विधियों के बिना हुई शादी अवैध है' बिना फेरे लिए शादी करने वालों के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट का बड़ा फैसला | Hindu marriage not valid without 'saat pheras', says Allahabad high court

Allahabad HC on Hindu Marriage: ‘वैदिक विधियों के बिना हुई शादी अवैध है’ बिना फेरे लिए शादी करने वालों के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट का बड़ा फैसला

'वैदिक विधियों के बिना हुई शादी अवैध है' बिना फेरे लिए शादी करने वालों के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट का बड़ा फैसला! Allahabad HC on Hindu Marriage

Edited By :   Modified Date:  October 5, 2023 / 04:42 PM IST, Published Date : October 5, 2023/4:42 pm IST

प्रयागराज: Allahabad HC on Hindu Marriage हिंदू धर्म में मान्यताओं का बेहद महत्व है। धर्म में जन्म से लेकर मृत्यु तक रस्मों और रिवाजों के साथ किए जाते हैं। वहीं, शादी में भी कई तरह की रस्मों को निभाया जाता है। लेकिन इस बीच हिंदू धर्म में होने वाली शादी को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अहम टिप्पणी की है।

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Allahabad HC on Hindu Marriage इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक मामले में सुनवाई करते हुए कहा है कि सप्तपदी हिंदू विवाह का अनिवार्य तत्व है। रीति रिवाजों के साथ संपन्न हुए विवाह को ही कानून की नज़र में वैध विवाह माना जाएगा। अगर वैदिक विधि से शादी संपन्न नहीं कराई गई है तो इस तरह के विवाद कानून की नजर में अवैध रहेंगे। इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस संजय कुमार सिंह की एकल पीठ ने वाराणसी की स्मृति सिंह की याचिका पर सुनवाई करते हुए ये टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा कि हिंदू विवाह की वैधता को स्थापित करने के लिए सप्तपदी एक अनिवार्य तत्व है।

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कोर्ट की टिप्पणी से साफ है कि हिंदू विवाह के ऐसे तरीके जिसमें सात फेरे यानी कि सप्तपदी को शामिल नहीं किया जाता वह कानूनन वैध नहीं होगा। उत्तर प्रदेश में पुलिस स्टेशन में कराई गई शादियां इस दायरे में आती हैं। इलाहाबाद हाई कोर्ट की सिविल और पारिवारिक विवादो के मामलों की जानकार अधिवक्ता अभिलाषा परिहार का कहना है कि कई बार लड़के-लड़कियों के अफेयर से जुड़े मामले पुलिस स्टेशन में पहुंचने के बाद पुलिसकर्मी थाने में ही लड़के-लड़कियों की शादियां करा देते हैं।

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इसमें थाने में बने मंदिर में देवी-देवताओं को साक्षी मानकर लड़के से लड़की की मांग में सिंदूर लगवा देते हैं, और एक दूसरे को माला पहनवा देते हैं। इस तरह की शादियों में न तो फेरे होते हैं न ही सप्तपदी होती है। ऐसे में थाने में होने वाली शादियों की वैधता पर अब सवाल उठेंगे और उन्हे विधिक रूप से मान्य नहीं माना जाएगा।

इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस संजय कुमार सिंह ने वाराणसी की स्मृति सिंह उर्फ मौसमी सिंह की याचिका पर सुनवाई के बाद दिए गए अपने आदेश में यह टिप्पणी की है। इसमें स्मृति सिंह ने अपने पति सत्यम सिंह पति सहित ससुराल वालों पर तलाक दिए बगैर दूसरा विवाह करने का आरोप लगाते हुए वाराणसी जिला अदालत में परिवाद दायर किया था। इस पर कोर्ट ने याची को सम्मन जारी कर तलब किया था। इस परिवाद और समन को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई। इसमें याची का कहना था कि उसका विवाह 5 जून 2017 को सत्यम सिंह के साथ हुआ था लेकिन विवादों के कारण याची ने पति और ससुराल वालों के खिलाफ दहेज उत्पीड़न और मारपीट आदि का मुकदमा दर्ज कराया था।

यह भी आरोप लगाया कि ससुराल वालों ने उसे मारपीट कर घर से निकाल दिया है। पुलिस ने पति व ससुराल वालों के खिलाफ अदालत में चार्ज शीट दाखिल की है। इसी बीच पति और ससुराल वालों की ओर से पुलिस अधिकारियों को एक शिकायती पत्र देकर कहा गया कि याची ने पहले पति से तलाक लिए बिना दूसरी शादी कर ली है। इस शिकायत की सीओ सदर मिर्जापुर ने जांच की और उसे झूठा करार देते हुए रिपोर्ट लगा दी। इसके बाद याची के पति ने जिला न्यायालय वाराणसी में परिवाद दाखिल किया अदालत ने इस परिवाद पर याची को सम्मन जारी किया था, जिसे चुनौती देते हुए कहा गया कि याची द्वारा दूसरा विवाह करने का आरोप सरासर गलत है।

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हाईकोर्ट में दाखिल इस याचिका में कहा गया की याची की ओर से दर्ज कराए गए मुकदमे का बदला लेने की नीयत से यह आरोप लगाया गया है। परिवाद में विवाह समारोह संपन्न होने का कोई साक्ष्य नहीं दिया गया है। न ही सप्तपदी का कोई साक्ष्य है जो की विवाह की अनिवार्य रस्म है। एकमात्र फोटोग्राफ साक्ष्य के तौर पर लगाया गया है। कोर्ट ने कहा कि याची के खिलाफ दर्ज शिकायत में विवाह समारोह संपन्न होने का कोई साक्ष्य नहीं दिया गया है। जबकि वैध विवाह के लिए विवाह समारोह का सभी रीति-रिवाज के साथ संपन्न होना जरूरी है।

इसी में सप्तपदी यानी सात फेरों का जिक्र कोर्ट में आया। कोर्ट ने कहा कि यदि विवाह समारोह की यह प्रक्रिया पूरी नहीं है तो कानून की नजर में यह वैध विवाह नहीं होगा। वर्तमान मामले में इसका कोई साक्ष्य उपलब्ध नहीं है। कोर्ट ने कहा कि यह स्पष्ट है कि सिर्फ याची को परेशान करने के उद्देश्य से एक दूषित न्यायिक प्रक्रिया शुरू की गई है, जो न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग है। इसी आधार पर न्यायालय ने 21 अप्रैल 2022 को याची के विरुद्ध जारी समन आदेश और परिवाद की प्रक्रिया को रद्द कर दिया है।

 

 

 

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