झमाझम होली.. मथुरा-वृंदावन में जमकर उड़े अबीर-गुलाल, चढ़ा रंगों का खुमार, देखें वीडियो

Holi festival 2022 : Holi celebration in Mathura-Vrindavan : रंगों की होली, हंसी-ठिठोली और खड़ी होली..

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  • Publish Date - March 18, 2022 / 10:59 AM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 07:45 PM IST

नई दिल्ली। होली.. रंग-उमंग और उत्सव का पर्व है। होली.. राधा-कृष्ण के प्रेम का प्रतीक पर्व है। रंगों का ये त्योहार भारतीय संस्कृति में इस तरह से रचा बसा है कि सब इसके रंग में रंगे जाते हैं। खुशियों का ये त्योहार हर जगह अलग-अलग रूप और तरीकों से मनाया जाता है। रंगों की होली, हंसी-ठिठोली और खड़ी होली। होली के सभी रंग आज हम आपके लिए समेट कर लाए हैं।

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मथुरा और वृंदावन की होली
मथुरा और वृंदावन में होली अलग अंदाज से मनाई जाती है। जिसके बारे में पूरी दुनिया जानती है। लेकिन इनके अलावा भी देश के कई शहर ऐसे हैं। जहां की होली अलग-अलग तरीके से खेली और मनाई जाती है। कोई होलिका दहन के दिन होली मनाता है, कोई धुलेंडी के दिन तो कोई रंगपंचमी के दिन, हालांकि देशभर में इस त्योहार की धूम होलिका दहन के दिन से ही शुरू हो जाती है।

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पन्ना में राजशाही जमाने से चली आ रही परंपरा के मुताबिक आज भी अंचल में टेशु के फूलों से प्राकृतिक रंग बनाया जाता है। खासकर अंचल के आदिवासी होली के पहले जंगल से टेशु के फूल तोड़कर लाते हैं और उसे उबालकर प्राकृतिक रंग निकालते हैं। बुजुर्ग बताते है कि फूलों के रंगों से होली खेलने की ये परंपरा 300 साल पुरानी है। इससे कपड़े भी ख़राब नहीं होते हैं।

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बुदेलखंड के चर्चित लोक भजन से जुगल किशोर मंदिर में होली खेलने की शुरुआत होती है। इसके बाद भगवान कृष्ण को प्राकृतिक रंग लगाया जाता है। इस मंदिर में महिलाएं भी बुंदेली फाग गाती हैं। इस अनोखे होली को देखने आस-पास के लोग आते हैं। लोगों का मानना है, कि स्वयं भगवान कृष्ण पन्ना वासियों के साथ प्राकृतिक रंगों से होली खेलते हैं।

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बाजार में तरह-तरह के अप्राकृतिक रंग बड़ी आसानी से मिल जाते हैं, लेकिन पन्ना में प्राक्रतिक रंगों से होली खेलने की परंपरा अब भी जीवित है। कहते हैं फूल भावनाओं के प्रतीक होते हैं और यही फूल अगर रंग बन जाए तो क्या कहना। इसी भावना को बनाए रखने पन्नावासी भगवान कृष्ण को प्राकृतिक रंग लगाते हैं।