कैलाश रेंज से पीछे हटने की स्थिति में चीन से ‘मोलतोल’ की भारत की ताकत कम हो जायेगी : ब्रह्म चेलानी

कैलाश रेंज से पीछे हटने की स्थिति में चीन से ‘मोलतोल’ की भारत की ताकत कम हो जायेगी : ब्रह्म चेलानी

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  • Publish Date - February 14, 2021 / 06:44 AM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:21 PM IST

दिल्ली, 14 फरवरी (भाषा) पूर्वी लद्दाख में पैंगांग सो (झील) इलाके में गतिरोध दूर करने को लेकर भारत और चीन के बीच हुए समझौते को सामरिक मामलों के विशेषज्ञ प्रोफेसर ब्रह्म चेलानी सीमित प्रकृति का मानते हैं। खासकर, कैलाश रेंज से भारत के पीछे हटने की बात स्वीकार करने पर सवाल उठाते हुए उनका मानना है कि बचे हुए मुद्दों के समाधान के लिये भारत को चीन पर दबाव बनाये रखना चाहिए । नयी दिल्ली स्थित सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च में सामरिक विषयों के प्रोफेसर ब्रह्म चेलानी से इस मसले पर भाषा के पांच सवाल और उनके जवाब :

सवाल : पूर्वी लद्दाख में नौ महीने से जारी गतिरोध को दूर करने के लिये भारत और चीन के बीच हुए समझौते को आप कैसे देखते हैं ?

जवाब : चीन के साथ पूर्वी लद्दाख में सेना वापसी का जो यह समझौता हुआ है उसके तहत पैंगांग सो के इलाके में दोनों पक्ष अग्रिम मोर्चे से सेना की वापसी करेंगे। चीन अपनी सेना की टुकड़ियों को उत्तरी किनारे में ‘फिंगर 8’ के पूरब की तरफ रखेगा। भारत अपनी सैन्य टुकड़ियों को ‘फिंगर 3’ के पास स्थित स्थायी बेस धन सिंह थापा पोस्ट पर रखेगा। पैंगांग से लेकर के दक्षिणी किनारे की पोस्ट पर भी दोनों सेनाएं इसी तरह की कार्रवाई करेंगी। किसी भी सौदे में कुछ दिया जाता है और कुछ लिया जाता है, लेकिन भारत ने चीन के साथ जो समझौता (पैंगांग इलाक़े को लेकर) किया है वह सीमित है।

सवाल : कई दौर की सैन्य स्तर और राजनयिक स्तर की बातचीत के बाद हुए समझौते को कितना सार्थक मानते हैं और भारत के लिये इसके क्या मायने हैं ?

जवाब : दो देशों के बीच समझौते लेन-देन पर आधारित होते हैं, लेकिन चीन के साथ भारत का समझौता केवल पैंगांग इलाके तक सीमित है। ऐसा लगता है कि भारत पैगांग इलाके को लेकर समझौता कर ‘नो मैन्स लैंड’ बनाने पर तैयार हो गया है जो मांग चीन पहले से करता रहा है। अब तक भारत, चीन के आक्रामक रवैये के खिलाफ खड़ा रहा है और उसने दिखाया है कि युद्ध की पूरी तैयारी के साथ भारत हिमालय की सर्दियों के मुश्किल हालातों में भी डटा रह सकता है। ऐसे में बड़े मुद्दों का हल तलाश करने की जगह अपनी मुख्य ताक़त कैलाश रेंज से पीछे हटने से भारत की ‘मोलतोल’ की ताकत कमजोर होगी। अभी देपसांग सहित कई ऐसे इलाकों कों लेकर कोई निर्णय नहीं हुआ है जहां गतिरोध बरकरार है।

सवाल : कैलाश रेंज से पीछे हटने का क्या प्रभाव पड़ेगा ? इस समझौते को लेकर उठाये जा रहे सवालों पर आपकी क्या प्रतिक्रिया है ?

जवाब : पूर्वी लद्दाख में गतिरोध की स्थिति में कैलाश रेंज ने हमें लाभ की स्थिति प्रदान की है। हमें समझना होगा कि इस गतिरोध में चीन अब उस स्थिति में पहुंच गया था जहां उसे कोई लाभ की स्थिति नहीं दिखाई दे रही थी। ऐसे में कैलाश रेंज से पीछे हटने के बाद हमारी लाभ की स्थिति और मोलतोल की ताकत कम हो जायेगी ।

सवाल : लद्दाख में चीन के साथ बाकी बचे हुए मुद्दों के समाधान के लिये क्या रणनीति महत्वपूर्ण है ?

जवाब : इस बात पर सहमति बनी है कि पैंगांग झील से पूर्ण तरीके से सेनाओं के पीछे हटने के बाद वरिष्ठ कमांडर स्तर की बातचीत हो तथा बाकी बचे हुए मुद्दों पर भी हल निकाला जाए । ऐसे में हमें यह देखना होगा कि चीन ने छल-कपट से अतिक्रमण करते हुए लद्दाख में यथास्थिति को बदल दिया है। भारत चाहता है कि यथास्थिति बरकरार रहे। इस पृष्ठभूमि में भारत को ऐसे चीनी आक्रामकता के खिलाफ खड़े होने की रणनीति को नहीं छोड़ना चाहिए । देपसांग और कुछ अन्य सेक्टरों में भी पीछे हटने को लेकर भारत को चीन पर दबाव बनाये रखना चाहिए ।

सवाल : इस क्षेत्र में चीन के साथ संतुलन बनाने के लिये अतिरिक्त क्या करने की जरूरत है ?

जवाब : भारत को एक चीज पर जरूर ध्यान देना चाहिए और अपनी ‘वन-चाइना’ नीति पर पुन: विचार करना चाहिए। तिब्बत चीन की दुखती रग है और ऐसे में कम से कम उसे (भारत) तिब्बत पर चीन की नीतियों का समर्थन करना बंद करना चाहिए ।

भाषा दीपक

प्रशांत

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