भूमि अधिग्रहण को पारदर्शी बनाने के लिए एफआरए, एलएआरआर अधिनियम का एकीकरण जरूरी: समिति

भूमि अधिग्रहण को पारदर्शी बनाने के लिए एफआरए, एलएआरआर अधिनियम का एकीकरण जरूरी: समिति

भूमि अधिग्रहण को पारदर्शी बनाने के लिए एफआरए, एलएआरआर अधिनियम का एकीकरण जरूरी: समिति
Modified Date: December 22, 2025 / 04:45 pm IST
Published Date: December 22, 2025 4:45 pm IST

नयी दिल्ली, 22 दिसंबर (भाषा) संसद की एक समिति ने कहा है कि वन अधिकार अधिनियम (एफआरए), 2006 और और भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन में उचित मुआवजे एवं पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम, 2013 (एलएआरआर अधिनियम) को एकीकृत करने की जरूरत है ताकि भूमि अधिग्रहण की प्रक्रियाएं ज़्यादा न्यायपूर्ण, पारदर्शी और समावेशी बन सकें।

ग्रामीण विकास मंत्रालय से संबंधित संसद की स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट में इस बात पर चिंता भी जताई है कि एफआरए के नियमों का उल्लंघन करके जंगल की भूमि पर कब्ज़ा किया जा रहा है।

कांग्रेस सांसद सप्तगिरि उलाका इस समिति के अध्यक्ष हैं। समिति की रिपोर्ट गत शीतकालीन सत्र के दौरान संसद में पेश की गई।

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समिति ने कहा है, ‘‘समिति को ऐसे कई मामलों के बारे में बताया गया है, जहां वन संरक्षण अधिनियम (एफआरए), 2006 के नियमों का उल्लंघन करके जंगल की भूमि पर कब्ज़ा किया जा रहा है। समिति का मानना है कि जंगल में रहने वाले समुदायों की भूमि और संसाधनों के अधिकारों की रक्षा करने, उनकी सही भागीदारी और सहमति सुनिश्चित करने और उचित पुनर्वास प्रदान करने के लिए एलएआरआर अधिनियम और एफआरए के बीच संबंध ज़रूरी है, ताकि भूमि अधिग्रहण की प्रक्रियाएं ज़्यादा न्यायपूर्ण, पारदर्शी और समावेशी बन सकें।’’

रिपोर्ट में कहा कि समिति चिंता के साथ इसका उल्लेख करती है कि कई जंगल भूमि अधिग्रहण और पुनर्वास पैकेज में प्रभावित परिवारों को बहुत कम एक समान नकद मुआवज़ा दिया जाता है, जो अक्सर प्रति परिवार लगभग 15 लाख रुपये होता है, जिसमें भूमि, घर, सामान्य संसाधनों और जंगल पर आधारित आजीविका के नुकसान की असली कीमत को ध्यान में नहीं रखा जाता है।

समिति ने कहा, ‘‘उदाहरण के लिए, राजस्थान में, सरिस्का बाघ अभयारण्य के मुख्य क्षेत्र से विस्थापित परिवारों को पुनर्वास के बदले विकल्पों में से एक के रूप में 15 लाख रुपये नकद दिए गए हैं, एक ऐसा पैकेज जिसकी लंबे समय तक आजीविका के नुकसान और मज़बूत पुनर्वास की कमी के संबंध में बार-बार आलोचना की गई है।’’

रिपोर्ट के अनुसार, इसलिए समिति एफआरए और एलएआरआर अधिनियम को एकीकृत करने की सिफ़ारिश करती है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि जंगल क्षेत्रों में भूमि अधिग्रहण एफआरए के तहत वन अधिकारों की मान्यता और निपटान के बिना और एफआरए द्वारा आवश्यक ग्राम सभा की लिखित सहमति के बिना आगे नहीं बढ़ सकता।

समिति ने यह सिफारिश भी की है कि सामुदायिक वन संसाधन (सीएफआर) टाइटल को मुआवज़े और पुनर्वास प्रक्रिया के हिस्से के रूप में शामिल किया जाए और पारंपरिक एवं सामुदायिक वन उपयोग अधिकारों के नुकसान को स्पष्ट रूप से आर्थिक विस्थापन के रूप में माना जाए, जिसके लिए नाममात्र एकमुश्त भुगतान के बजाय पूर्ण और उचित पुनर्वास की आवश्यकता हो।

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘कुछ मामलों में सामाजिक प्रभाव मूल्यांकन (एसआईए) और पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन (ईआईए) को औपचारिकता के तौर पर किया जा रहा है, जिसमें अधिग्रहण के पक्ष में रिपोर्ट दी जा रही हैं। एलएआरआर अधिनियम द्वारा अनिवार्य किया गया एसआईए, स्थानीय समुदायों पर भूमि अधिग्रहण के सामाजिक और आर्थिक परिणामों पर ध्यान केंद्रित करता है, जबकि एसआईए, भूमि अधिग्रहण की आवश्यकता वाली परियोजनाओं के पर्यावरणीय प्रभाव का आकलन करने और उसे कम करने के लिए प्रावधान करता है।’’

समिति ने कहा कि ये प्रावधान परियोजनाओं के बारे में सम्यक जानकारी पर आधारित निर्णय लेने और प्रभावित समुदायों पर सामाजिक तथा आर्थिक प्रभावों को सुलझाने के साथ-साथ उनके संभावित प्रतिकूल पर्यावरणीय प्रभावों को कम करने में मदद करते हैं।

इसने कहा, ‘‘समिति यह सुनिश्चित करने के लिए डीओएलआर से पुरजोर सिफारिश करती है कि एलएएआर अधिनियम की परिकल्पना के अनुसार दिशानिर्देशों के अनुरूप ईआईए और एसआईए दोनों का कठोरता से पालन किया जा रहा है।’’

भाषा हक

हक नेत्रपाल

नेत्रपाल


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